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गुरुवार, 21 अक्टूबर 2021

मिलत पिआरे प्राण नाथु कवन भगति ते।।

 ।।मिलत पिआरे प्राण नाथु कवन भगति ते।।

                 ।।राग मल्हार।।



मैंने पहले भी कहा था कि, गुरु रविदास जी महाराज जन्मजात परिपूर्ण सन्त, गुरु, सर्वोच्च आध्यात्म के केंद्र हुए हैं, जिन का धरती के ऊपर कोई भी साम्य नहीं रखता है। जिन व्याख्याकारों ने गुरु रविदास जी को साधक के रूप में चित्रित कर के संबोधित करते हुए शब्दों की व्याख्या की है, उन्होंने गुरु जी के कद को घटाने का ही काम किया गया है। गुरु जी ने, सांसारिक कमजोरियों के भंडार मनुष्य की मुक्ति के लिए, आदपुरुष से अरजोई करते हुए, उस के पास जीव जगत और मानव के कल्याणार्थ वकालत की है। वे धरती के ऊपर आदिपुरुष के भेजे गए सम्पूर्ण अवतार थे, जिन्होंने ब्राह्मणों के आतंक से केवल भारत के मूलनिवासियों को ही नहीं, बल्कि समूचे विश्व के लोगों को मुक्त कराने के लिए अपने आप को अनेकों तसीहे सहन करने के लिए प्रस्तुत किया था। गुरु जी ने शांतिपूर्ण तरीके से ब्राह्मणों को सत्य को समझने के लिए प्रेरित किया मगर भूले भटके ये लोग सत्य को नहीं समझ सके और गुरु जी को अपना दुश्मन मानते रहे। ब्राह्मणों की नींव ही छलकपट की दहलीज पर टिकी हुई है, बेईमानी इन की रग रग में रच चुकी है, इन की सफेद रंग की धोती, चंदन के तिलक और शंख केवल मात्र पापों को छुपाने के मूलमंत्र ही हैं, जिन का शिकार मूलनिवासी होते आए हैं। गुरु रविदास जी महाराज ने, जो कुछ किया वह ब्राह्मणों के ठीक विपरीत किया और समझाने का प्रयास किया है, कि आप पथभ्रष्ट ब्राह्मण हो मगर इन लोगों ने गुरु जी के सुकृत्यों को हमेशा ही विपरीत और ऋणात्मक ही लिया। गुरु जी ने जिस सिला के ऊपर रैदास और जगजीवन दास चमड़े के जूते बनाते हैं, उसी को गंगा में तैराया था, जब कि ब्राह्मणों ने अपने पवित्र पत्थर के देवता तारने का ढोंग रचा मगर असफल रहे और वे गंगा में डूब गए थे, गुरु जी ब्राह्मणों के प्रदूषित जल से नहीं नहाते थे, इसीलिये वे ब्राह्मणों से ऊपर गंगा स्नान करते थे, मगर जब ब्राह्मणों ने राजा के पास झूठा पर्चा कटवाया और कहा, कि महाराज, रविदास हम से ऊपर नहाता है और पानी को गंदा करता है, जिस का न्याय किया जाए, मगर जब ब्राह्मण राजा को गंगा तट पर ले गए और पूछा कि रविदास कहाँ स्नान करते हैं? ब्राह्मणों ने जिस स्थान को बताया था, वहां से तो गंगा ही विपरीत दिशा में वह रही थी। जब संत मीराबाई गुरु जी की शिष्या बन गई, तब उस के पीयर और सुसराल वालों ने गुरु जी को घात रख कर, सतसंग करने के बहाने चितौड़गढ़ महल में बुलाया और अपने काले कंबलों में छुरे, तलवारें ले कर पंडाल में बैठ गए थे, जब गुरु जी ने शब्द कीर्तन शुरू किया और उन के शब्दों की धुन उन छली हत्यारों, पापियों के अंतःकरण को चीरने लगी, तो वे सभी मंत्रमुग्ध हो गए और उन के बरछे, तलवारें आत्मविस्मृत अवस्था में धरती के ऊपर गिर पड़े, जिस से उन के समस्त पाप कर्म जगजाहिर हो गए। जगन्नाथपुरी में ब्राह्मण पंडे पुजारी भीलों के चढ़ावे तो डकार जाते थे, लेकिन उन्हें कथा और आरती सुनने नहीं देते थे, जिस अन्याय को दूर करने के लिए गुरु जी खुद वहां गए। जब उन्हें भीलों के साथ जगन्नाथ के मंदिर से निकाल दिया गया था, तब गुरु जी ने, मन्दिर के दूसरी ओर मुंह कर के अछूत भीलों के साथ सस्वर आरती गाई थी। जब उन की आंखें खुलीं तो जगन्नाथ की मूर्ति उन के सामने थी, फिर ऐसे परिपूर्ण गुरु को संबोधित कर के अर्थ निकालना सूर्य को दीपक दिखाना ही है। गुरु रविदास जी ने इस शब्द में साधक को फरमाया है कि, हे भाई! प्राणनाथ अर्थात आदपुरुष किस प्रकार मिल सकते हैं:---

मिलत पिआरे प्राण नाथु कवन भगति ते।।

साध सँगति पाई परम गते।।रहाउ।।

गुरु रविदास जी महाराज संगत को पूछते हैं, कि प्राणों से प्रिय नाथ अर्थात आदपुरुष मनुष्य को किस भक्ति से मिल सकते हैं? गुरु रविदास जी महाराज खुद ही साध सँगत को उतर देते हुए फरमाते हैं, कि साध संगत के बीच रह कर ही, हम परमपिता परमेश्वर को प्राप्त कर सकते हैं, अर्थात आदपुरुष को प्राप्त करने के लिए केवल साध सँगत की ही जरुरत है।

मैले कपरे कहां लउ धोवउ।।

आवैगी नींद कहां लगु सोवउ।।१।।

गुरु रविदास जी फरमाते हैं कि, मैले कपड़े पहन कर नींद कहां आती है और कोई कैसे सो सकता है? इसलिए मैले कुचैले कपड़ों को कहां धोया जा सकता है? अर्थात गुरु रविदास जी महाराज, प्रिय साध संगत को फरमाते हैं, कि जिस प्रकार ज्योतिर्मंडल में चलने वाली वायु से कपड़े गंदे हो जाते हैं और उस की दुर्गंध के बीच मनुष्य सो भी नहीं पाते हैं, वैसे ही काम, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार और माया के प्रदूषण से आत्मा रूपी कपड़ा गंदा हो जाता है और उस गंदगी के कारण मनुष्य सुख चैन की जिंदगी नहीं गुजार सकता है। उस का अंतःकरण अपवित्र हो जाता है और संसारिक बन्धनों में पड़ कर अज्ञानता के बीच ही भटकता फिरता रहता है, यदि उसे साध संगत नहीं मिलती है, तो वह आजीवन इसी मूर्खता की गंदगी में पड़ा रहता है।

जोई जोई जोरिउ सोई सोई फाटिउ।।

झूठे वनजि उठि ही गईं हाटिउ।।२।।

गुरु रविदास जी महाराज अपने अनुभवों को व्यक्त करते हुए फरमाते हैं, कि हे साध संगत जी! आप के मिलने से पहले जो जो हमने, काम, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार और माया के कारण जोड़ जोड़ कर संग्रह किया था, वह सब कुछ आप के मिलने पर वैसे ही बर्बाद हो गया जिस प्रकार पुराने कपड़े फट जाते हैं। जो जो झूठा व्यापार आप के मिलने से पहले किया था, उस का सारा ही बाजार बर्बाद हो गया है अर्थात ज्योतिर्विज्ञान ही संगत के मिलने पर ही प्राप्त हो सका है और मन के अंदर पांचों विकारों के झूठ के बाजार बंद हो गए हैं।

कहु रविदास भइउ जब लेखिउ।।

जोई जोई कीनो सोई सोई देखिउ।।३।। 

गुरु रविदास जी महाराज फरमाते हैं, कि जीवन के अंत में जब अच्छे और बुरे कर्मों का लेखा जोखा होता है, उस समय ही ज्ञात होता है कि जीवन में जो जो कर्म किए हैं, वही उस समय दिखाई देते हैं। इसीलिए गुरु महाराज समझाते हैं कि, साध संगत के बीच रह कर ही ज्योतिर्ज्ञान की प्राप्ति होती है और उस से पहले के कर्मों की यदि पड़ताल की जाए, तो स्पष्ट हो जाता है, कि बुरे कर्मों का लेखा जोखा समाप्त हो गया है, यह सब कुछ साध संगत की बदौलत ही ऐसा होता है।

शब्दार्थ:--- प्राणनाथु- श्वासों के मालिक, आदिपुरुष। ते-से। परम गते-चरम सीमा, अध्यात्म की उच्चतम अवस्था। मेले कपरे-गंदे कपड़े, पांच विकारों से मलिन आत्मा। कहा लउ-कब तक। नींद-निंद्रा, अज्ञानता की नींद। फाटिउ-फटा हुआ, दूर हो जाना। झूठे वनजि-झूठ का व्यापार, बुरे कर्मों का व्यापार। उठि ही गई-बर्बाद हो गई। हाटिउ-बाजार। भयउ-होता है।

।। जीवन चार दिन का मेला रे।।

      ।। जीवन चार दिन का मेला रे।।

गुरु रविदास जी महाराज किसी जाति विशेष या धर्म विशेष के समर्थक नहीं थे, उन्होंने मानव निर्मित धर्मों, जातियों की बुराइयों का तर्कसंगत पोस्टमार्टम किया हुआ है। जिस में उन्होंने सभी प्रकार के आडंबरों, पाखंडों का खंडन किया है। भोले भाले लोगों को लूटने वाले ठगों, लुटेरों का बुरी तरह पर्दाफाश किया हुआ है। गुरुजी जीवन की वास्तविकता और सत्य को प्रकट करते हुए इस शब्द में फरमाते हैं, कि मनुष्य ही, मनुष्य को लूट कर, ठग कर बड़ी निर्दयतापूर्वक शोषण करता है, जबकि यह जीवन क्षणिक है।

जीवन चारि दिन का मेला रे।

बामन झूठा, वेद झूठा, झूठा ब्रह्म अकेला रे।।


गुरु रविदास जी महाराज फरमाते हैं, कि यह जीवन एक मेंला है, जो सिर्फ चार दिन का है और उस के बाद यह मेला अर्थात मनुष्य का मिलन समाप्त हो जाता है। ब्राह्मणों ने जो यह वेदों, पुराणों में सच झूठ लिख कर के संगत को मूर्ख बना कर लूट मचाई हुई है, उस के प्रति संगत को समझाया है कि, पंडित वेद और ब्रह्मा के नाम पर घड़ा गया ब्रह्म शब्द भी झूठ है।

मंदिर भीतर मूरति बैठी, पूजती बाहर चेला रे। लड्डू भोग चढ़ावति, मूरति के ढिग केला रे।।

गुरु रविदास जी महाराज फरमाते हैं, कि संगत को लूटने के लिए मंदिरों का निर्माण किया गया है और उन के बीच पत्थर की मूर्तियां स्थापित की गईं हैं, जिन की पुजारी खुद साफ, सफाई ना कर के अपने गुलाम चेलों से ही साफ सफाई और पूजा आदि का काम लेते हैं। लोग मूर्ति को लड्डुओं, प्रसाद आदि का भोग चढ़ाते हैं।मूर्तियों के पास सेव, संतरे केले आदि अर्पित करते हैं।

पत्थर मूरति कछु न खाति, खाते बामण चला रे।

जनता लुटती बामन सारे, प्रभु देति न धेला रे।।

गुरु रविदास जी महाराज ढोंगियों, पाखंडियों के पाखंडों, आडंबरों, कपटों को उजागर करते हुए, फरमाते हैं, कि मंदिर में स्थापित पत्थर की मूर्ति कुछ भी नहीं खाती है और केवल उस मंदिर के बीच बैठे गुरु और चेला ही खाते हैं। यह ब्राह्मण छल कपट कर के लोगों को ठगते हैं, जिस से जनता लूटी लूटी जा रही है, और परमपिता परमेश्वर को धेला अर्थात खोटा सिक्का तक नहीं देते हैं। 

पाप पुण्य, पुनर्जन्म का, बामन दीना खेला रे। सवर्ग नरक बैकुंठ पधारो, गुरु शिष्य चेला रे।।

गुरु रविदास जी महाराज फरमाते हैं, कि ब्राह्मण तिलकधारियों ने, मनुष्य को पुनर्जन्म और पाप पुण्य के जाल में फंसा हुआ है, स्वर्ग नरक का मानसिक आतंक फैला कर के लोगों को डर से भयभीत किया हुआ है। स्वर्ग में भेजने के नाम पर गुरु और चेला लोगों को लूटते हैं और संगत को इस खेल के बीच उलझाया हुआ है।

जितना दान देवोगे, उतना निकसे तेला रे।

बामन जात बहकाए, जंह तँह मचे बबेला रे।।

तिलकधारी ब्राह्मणों ने लोगों को इस कदर अपनी ओर आकर्षित किया हुआ है, कि लोग उन के जाल में मच्छलियों की तरह फंस जाते हैं। दान लेने के लिए, लोगों को कहते हैं कि, जितना आप देंगे, उतना ही आप को प्रभु देंगे। जितना बीज कोहलू में डालोगे उतना ही तेल निकलेगा। मानसिक रूप से प्रताड़ित करते हुए तर्क देते हुए कहते हैं, जितना कोई बांटता है, उतना ही उसे मिलता है। ये ब्राह्मण जनता को लूटने के लिए बहकाते और फुसलाते हैं, अगर कोई उन का विरोध करे तो उस के खिलाफ जगह जगह पर बवाल पैदा करते हैं।

छोड़ि बामन अ संग मेरे, रविदास अकेला रे। 

गुरु रविदास जी महाराज, सर्वश्रेष्ठ, सर्वोच्च इस ज्योतिर्मंडल के ज्योतिर्ज्ञान के सर्वोत्तम अकेले ज्योतिरपुंज गुरु हुए हैं। वे इन सब आडंबरों और पाखंडों का खंडन करते हुए, जनता को, संगत को समझाते हैं, कि हे मेरी प्रिय सँगते! इन ब्राह्मणों का साथ छोड़ कर के, मेरे पास आ जाओ, मैं अकेला हूं और मैं आप को इस जीवन को सुखी बनाने का मंत्र बताता हूं।

शब्दार्थ:-- चारि दिन-क्षणिक, कुछ समय का। मेला-मिलन, इकठ्ठ। बामन-यूरेशियन लोग। ब्रह्म-ब्रह्मा का वंशज, ब्रह्मा से ही ब्रह्म, ब्रह्मज्ञान, ब्रह्मपुत्र, ब्रह्मलीन, ब्राह्मण, ब्रह्मजोत आदि शब्द घड़े गए हैं, जो काल्पनिक यूरेशियन अति मानव के नाम पर शब्द शब्दकोश में लिखे गए हैं। चेला-पुजारी का शिष्य। ढिग-पास, मूर्ति के मुंह के समीप। धेला-पुराना सिक्का जो अब तुच्छ है। खेला-खेल। बैकुंठ-स्वर्ग का झांसा। निकसे-निकलना। तेला-तेल। मचे-शोर पड़ना। बहकाए-फुसलाना। बबेला-बबाल, बात का बतंगड़।

नोट:---इस शब्द को जनश्रुति के आधार पर लिखा गया है, क्योंकि गुरु जी के महानिर्वाण के बाद उन का सम्पूर्ण साहित्य ब्राह्मणों ने जला दिया था, जिस के कारण अनुयायियों ने अपने कंठस्थ शब्दों को अपनी भाषा में लिखा है। इस शब्द की भाषा शैली गुरु रविदास जी की भाषा शैली से मेल नहीं खाती हैl


Abheya Das Deoband ...........



शनिवार, 18 सितंबर 2021

           ।।नामु तेरो आरती।।

             ।। राग धनासरी।



गुरु रविदास जी महाराज ने, विश्व के सभी धर्मों के  नियमों और सिद्धांतों का अनुशीलन और गहन अध्ययन कर के अनुभव किया है, कि सभी धर्मों के प्रचारको ने अपने अपने पैगंबरों के गुणगान किए हैं और अपने अपने भगवानों की स्तुति में अपनी अपनी प्रार्थनाएं इजाद कर रखी हैं, जिन में कोई भी तर्कसंगत स्तुति नजर नहीं आती है, जो कुछ भी निरंकार को अर्पित करते हैं, वह सारे का सारा निरंकार द्वारा निर्मित है। निरंकार ने सृष्टि की रचना इस ढंग से की हुई है, कि एक प्राणी दूसरे प्राणी के ऊपर जीवन यापन करने के लिए निर्भर किया हुआ है, मगर उसी की दी हुई सामग्री को मनुष्य निरंकार को अर्पण कर के, अपनी भक्ति का थोथा प्रदर्शन करता है, इसलिए गुरु रविदास जी ने इन धर्मांध लोगों को उन की वास्तविकता का अहसास करवाते हुए कहा है, कि यह संसार "कूप भरिउ जैसे दादरा कछु देश विदेश न बूझ" अर्थात यह सारा संसार वैसे ही भरा हुआ है, जैसे कुएं के बीच मेंढक भरे हुए हैं, क्योंकि ये सभी मेंढक कुएं को ही अपना संसार मानते हैं, इसी प्रकार देश-विदेशों में रह रहे सभी धर्मों के लोग, संचालक भी सत्य को समझ बूझ नहीं सके हैं।

गुरु जी सृष्टि के सृजक के बारे में हमें बताते हैं कि, "एक ही एक अनेक हुई विस्थारिउ" अर्थात एक से ही धरती के ऊपर अनेक हुए हैं और उसी (आदपुरुष) से धरती पर समूचे प्राणी जगत का विस्तार हुआ है, फिर उसी की बनाई हुई वस्तुओं को मानव निरंकार को नैवेद्य कर के उसे प्रसन्न करने का प्रयास करता है, जो निरर्थक है। इसी लिए गुरु जी फरमाते हैं, कि  हे परमपिता परमेश्वर अर्थात आदपुरुष धरती के ऊपर ऐसी कोई वस्तु नहीं है, जो आप को अर्पित की जा सके और ऐसा कोई शब्द भी नहीं है, जिस को संगीतमय कर के आप की आरती गाई जाए और आरती उतारी जाए। गुरुजी निम्नलिखित शब्दों में तर्कसंगत आरती सँगत को भेंट कर के, सँगत को उपकृत करते हैं:---

नामु तेरो आरती मजने मुरारे।। 

हरि के नाम बिने झूठे सगल पसारे।।१।।रहाउ।।

गुरु रविदास जी महाराज ईश्वर की स्तुति में गाए जाने वाली सभी आरतियों को रद्द करते हुए फरमाते हैं, कि हे आदिपुरुष! यदि आप की स्तुति में गाई जाने वाली सभी आरतियों का तर्कसंगत और वास्तविकता के आधार पर विश्लेषण किया जाए, तो यही परिणाम सामने आता है कि, आप का नाम ही आरती है और आप के नाम का जाप करना ही मेरे लिए शाही स्नान है, इस के बिना सारी सृष्टि का प्रसार सब झूठ है।

नाम तेरो आसनों नामु तेरो उरसा

नामु तेरो केसरो लै छिटकारे।

नामु तेरो अंबुला नामु तेरो चन्दनो

घसि जपै नामु लै तुझहि कउ चारे।।१।।

गुरु रविदास महाराज, आदपुरुष को संबोधित करते हुए फरमाते हैं, कि हे आदपुरुष! आप का नाम ही भक्ति करने वाला आसन है और उरसा (सिला जिस के ऊपर तिलक लगाने के लिए चंदन घिसा जाता है) है। आप का नाम ही आप की मूर्ति के ऊपर छिड़का जाने वाला केसर है। आप का नाम ही पानी और चंदन है, जिन को सिला के ऊपर रगड़ कर, आप का नाम ले कर आप को (चारे) चढ़ाया जाता है अर्थात तिलक लगाया जाता है। 

नामु तेरो दीवा नामु तेरो बाती

नामु तेरो तेलु लै माहि पसारे।।

नामु तेरो की जोति लगाई

भइउ उजिआरे भवन सगलारे।।२।।

गुरु रविदास जी महाराज फरमाते हैं कि हे परम पिता परमेश्वर! आपका नाम ही दीपक है और उस के बीच प्रज्वलित होने वाली बाती भी आप का ही नाम है। उस दीपक में जलने वाला तेल आप का ही नाम सिमरन है, आप के पवित्र नाम सिमरन की ज्योति ही दिए से निकलती है, जिस से सारा ज्योतिर्मंडल ही प्रकाशित होकर जगमग करता है।

नामु तेरो तागा नामु फूलमाला

भर अठारह सगल झुठारे।।

तेरो कीआ तुझहि कउ अरपउ

नामु तेरो तुहि चंवर ढोलारे।।३।।

गुरु रविदास जी महाराज फरमाते हैं, कि हे परम पिता परमेश्वर! आप का नाम ही धागा है और उस में गूंथे जाने वाले फूलों का समूह फूलमाला भी आप ही हैं। आप की पूजा के लिए अठारह प्रकार की वनस्पतियों को अर्पित करना सारा झूठ है। यह सब कुछ आप ने ही पैदा किया हुआ है, जिसे सांसारिक जीवों ने जूठा कर रखा है, जो आप को अर्पित करने की योग्य नहीं है। इसलिए हे आदिपुरुष! आप की पैदा की हुई सृष्टि में से किसी भी प्रकार की सामग्री आप को कैसे अर्पित करूं? यदि ऐसा करूं तो फिर मैं अपनी तरफ से आप को क्या अर्पित करूंगा? इसलिए मैं तन मन से आप के सिमरन की सत्य आरती कर के, आप के नाम रूपी चंवर को आप के ऊपर झुलाता हूं।

दस अठा अठसठे चारे खाणी

इहो बरतणी है सगल संसारे।।

कहै रविदास नामु तेरो आरती

सतिनामु है हरि भोग तुहारे।।४।।३।।

गुरु रविदास जी महाराज फरमाते हैं, कि हे परम पिता परमेश्वर! सारा संसार अठारह पुराणों में लिखी हुई, कल्पित झूठी कहानियों को ध्यान में रख कर के अठाहट तीर्थों का स्नान कर के चार प्रकार का खाना खा कर, संसार के लोग कैसा व्यवहार कर के, आप की कैसी पूजा करते हैं? अर्थात चार प्रकार का खाना खाने वाले सभी जीव पवित्र नहीं है, इसलिए उन का छुआ हुआ आप को अर्पित करना मेरे लिए उचित नहीं है। इसलिए हे परमपिता परमेश्वर आप का नाम ही आप की आरती उतारना है और सतनाम का जाप करना आप के लिए सच्ची श्रद्धा से भोग लगाना है।

पद अर्थ:-- आरती-हिंदू धर्म की रीति के अनुसार थाल के बीच दीवा आदि रख कर मूर्ति के आगे थाल को घुमाया जाता है और भजन गाए जाते हैं। मजनू-तीर्थों का स्नान। मुरार-प्रभु पसारे- खलार, आडंबर प्रसार। आसनों- कपड़ा जिस के ऊपर बैठ कर मूर्ति की पूजा की जाती है। उरसा- चंदन रगड़ना वाला पत्थर। अंबुला- पानी। चारे-चढ़ाना, अर्पित करना। माही-बीच। पसारे- प्रसारित, पाना। भवन-घर। सगला-सारी सृष्टि। भार अठारह- संसार की सारी वनस्पति के हर एक पौधे का एक-एक पता इकट्ठा कर के अठारह भार बनते हैं। अरपु-भेंट करना, तर्पण करना। ढोलारे-झुलाना। दस अठा- अठारह पुराण। अठ छठे- हिंदुओं के अठाहट तीरथ। चारे खाणी-चार प्रकार का खाना, अंडज, जेरज, स्वेतज, उतभुज जीवों का भोजन।

 

जीवन चार दिन का मेला रे

      ।। जीवन चार दिन का मेला रे।।


गुरु रविदास जी महाराज किसी जाति विशेष या धर्म विशेष के समर्थक नहीं थे, उन्होंने मानव निर्मित धर्मों, जातियों की बुराइयों का तर्कसंगत पोस्टमार्टम किया हुआ है। जिस में उन्होंने सभी प्रकार के आडंबरों, पाखंडों का खंडन किया है। भोले भाले लोगों को लूटने वाले ठगों, लुटेरों का बुरी तरह पर्दाफाश किया हुआ है। गुरुजी जीवन की वास्तविकता और सत्य को प्रकट करते हुए इस शब्द में फरमाते हैं, कि मनुष्य ही, मनुष्य को लूट कर, ठग कर बड़ी निर्दयतापूर्वक शोषण करता है, जबकि यह जीवन क्षणिक है।

जीवन चारि दिन का मेला रे।

बामन झूठा, वेद झूठा, झूठा ब्रह्म अकेला रे।।

गुरु रविदास जी महाराज फरमाते हैं, कि यह जीवन एक मेंला है, जो सिर्फ चार दिन का है और उस के बाद यह मेला अर्थात मनुष्य का मिलन समाप्त हो जाता है। ब्राह्मणों ने जो यह वेदों, पुराणों में सच झूठ लिख कर के संगत को मूर्ख बना कर लूट मचाई हुई है, उस के प्रति संगत को समझाया है कि, पंडित वेद और ब्रह्मा के नाम पर घड़ा गया ब्रह्म शब्द भी झूठ है।

मंदिर भीतर मूरति बैठी, पूजती बाहर चेला रे। लड्डू भोग चढ़ावति, मूरति के ढिग केला रे।।

गुरु रविदास जी महाराज फरमाते हैं, कि संगत को लूटने के लिए मंदिरों का निर्माण किया गया है और उन के बीच पत्थर की मूर्तियां स्थापित की गईं हैं, जिन की पुजारी खुद साफ, सफाई ना कर के अपने गुलाम चेलों से ही साफ सफाई और पूजा आदि का काम लेते हैं। लोग मूर्ति को लड्डुओं, प्रसाद आदि का भोग चढ़ाते हैं।मूर्तियों के पास सेव, संतरे केले आदि अर्पित करते हैं।

पत्थर मूरति कछु न खाति, खाते बामण चला रे।

जनता लुटती बामन सारे, प्रभु देति न धेला रे।।

गुरु रविदास जी महाराज ढोंगियों, पाखंडियों के पाखंडों, आडंबरों, कपटों को उजागर करते हुए, फरमाते हैं, कि मंदिर में स्थापित पत्थर की मूर्ति कुछ भी नहीं खाती है और केवल उस मंदिर के बीच बैठे गुरु और चेला ही खाते हैं। यह ब्राह्मण छल कपट कर के लोगों को ठगते हैं, जिस से जनता लूटी लूटी जा रही है, और परमपिता परमेश्वर को धेला अर्थात खोटा सिक्का तक नहीं देते हैं। 

पाप पुण्य, पुनर्जन्म का, बामन दीना खेला रे। सवर्ग नरक बैकुंठ पधारो, गुरु शिष्य चेला रे।।

गुरु रविदास जी महाराज फरमाते हैं, कि ब्राह्मण तिलकधारियों ने, मनुष्य को पुनर्जन्म और पाप पुण्य के जाल में फंसा हुआ है, स्वर्ग नरक का मानसिक आतंक फैला कर के लोगों को डर से भयभीत किया हुआ है। स्वर्ग में भेजने के नाम पर गुरु और चेला लोगों को लूटते हैं और संगत को इस खेल के बीच उलझाया हुआ है।

जितना दान देवोगे, उतना निकसे तेला रे।

बामन जात बहकाए, जंह तँह मचे बबेला रे।।

तिलकधारी ब्राह्मणों ने लोगों को इस कदर अपनी ओर आकर्षित किया हुआ है, कि लोग उन के जाल में मच्छलियों की तरह फंस जाते हैं। दान लेने के लिए, लोगों को कहते हैं कि, जितना आप देंगे, उतना ही आप को प्रभु देंगे। जितना बीज कोहलू में डालोगे उतना ही तेल निकलेगा। मानसिक रूप से प्रताड़ित करते हुए तर्क देते हुए कहते हैं, जितना कोई बांटता है, उतना ही उसे मिलता है। ये ब्राह्मण जनता को लूटने के लिए बहकाते और फुसलाते हैं, अगर कोई उन का विरोध करे तो उस के खिलाफ जगह जगह पर बवाल पैदा करते हैं।

छोड़ि बामन अ संग मेरे, रविदास अकेला रे। 

गुरु रविदास जी महाराज, सर्वश्रेष्ठ, सर्वोच्च इस ज्योतिर्मंडल के ज्योतिर्ज्ञान के सर्वोत्तम अकेले ज्योतिरपुंज गुरु हुए हैं। वे इन सब आडंबरों और पाखंडों का खंडन करते हुए, जनता को, संगत को समझाते हैं, कि हे मेरी प्रिय सँगते! इन ब्राह्मणों का साथ छोड़ कर के, मेरे पास आ जाओ, मैं अकेला हूं और मैं आप को इस जीवन को सुखी बनाने का मंत्र बताता हूं।

शब्दार्थ:-- चारि दिन-क्षणिक, कुछ समय का। मेला-मिलन, इकठ्ठ। बामन-यूरेशियन लोग। ब्रह्म-ब्रह्मा का वंशज, ब्रह्मा से ही ब्रह्म, ब्रह्मज्ञान, ब्रह्मपुत्र, ब्रह्मलीन, ब्राह्मण, ब्रह्मजोत आदि शब्द घड़े गए हैं, जो काल्पनिक यूरेशियन अति मानव के नाम पर शब्द शब्दकोश में लिखे गए हैं। चेला-पुजारी का शिष्य। ढिग-पास, मूर्ति के मुंह के समीप। धेला-पुराना सिक्का जो अब तुच्छ है। खेला-खेल। बैकुंठ-स्वर्ग का झांसा। निकसे-निकलना। तेला-तेल। मचे-शोर पड़ना। बहकाए-फुसलाना। बबेला-बबाल, बात का बतंगड़।

नोट:---इस शब्द को जनश्रुति के आधार पर लिखा गया है, क्योंकि गुरु जी के महानिर्वाण के बाद उन का सम्पूर्ण साहित्य ब्राह्मणों ने जला दिया था, जिस के कारण अनुयायियों ने अपने कंठस्थ शब्दों को अपनी भाषा में लिखा है। इस शब्द की भाषा शैली गुरु रविदास जी की भाषा शैली से मेल नहीं खाती है।


बुधवार, 18 अगस्त 2021

सुख सागर सुरतरु चिंतामणि

  जगत गुरु रविदास जी महाराज जब ब्राह्मणों के साथ में विचार गोष्ठी हो रही थी तब जगत गुरु रविदास जी महाराज ब्राह्मणों को इस वाणी के माध्यम से समझाते हैं और उस वक्त सभी ब्राह्मण सतगुरु रविदास जी महाराज के सानिध्य में आकर उनको अपना गुरु मान बैठे थे।आइए आप और हम भी समझते हैं इस बाणी की व्याख्या राम सिंह आदवंशी ने की है

        ।।सुख सागर सुरतरु चिंतामणि।।

                             ।।राग सोरठ।।

ब्राह्मणों ने ऐसे ऐसे अविष्कार किये हुए हैं, कि जिन को सुन कर आदमी तो क्या आदपुरष भी सकते में पड़ जाते होंगे, क्योंकि इन लोगों ने चार चार मुखड़ों वाले आदमियों का खोज की हुई है, कोई शेषनाग की भी रचना की हुई है, जो अपने सारथी को पूर्ण संरक्षण देकर उस की रक्षा करता है। कोई बंदर के मुंह की तरह वानर रूप में ईजाद किया गया है, इसी तरह कई पेड़ भी ऐसे ही खोज डाले हैं, जिन को देव तरु कहा जाता है और कई ऐसी मणियाँ हैं, जो चिंताओं को नष्ट कर देती है, ऐसी देवियाँ भी है जो चिंताओं को खत्म कर देती है मगर उसके  बावजूद भी लोग सुखी नहीं रहते हैं, इन्हीं अलौकिक शक्तियों का पोस्टमार्टम कर के गुरु रविदास जी महाराज ने इस शब्द में फरमाया है:---

सुख सागर सुरतरु चिंतामणि।

कामधेनु बसि जा के।।

चारि पदारथ असतट दसा सिधि।

नव निधि करतल ता के ।।१।।

गुरु रविदास जी महाराज परमपिता परमेश्वर आदपुरुष की सर्वोच्चता का वर्णन करते हुए फरमाते हैं, कि हे ब्राह्मण! जिस सुख के सागर अर्थात आदपुरुष के वश में आप के स्वर्ग की कामधेनु गाय और चिंताओं को नष्ट करने वाले चिंतामणि जैसे पत्थर हैं, कल्प वृक्ष जैसे देव वृक्ष आप की इच्छाओं को पूरे करने वाले हैं, चारों पदार्थ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, नौ निधियां, और अठारह सिद्धियां आदि ये शक्तियाँ काम करतीं हैं, तुम इन का यशोगान करते हैं और उन की ही भक्ति और साधना करते हैं, परंतु जिस आदपुरष ने इन को बनाया है, उस की भक्ति आप लोग क्यों नहीं करते हो?

हरि हरि हरि न जपि रसना।।

अवर सभी तिआगि वचन रचना।।१।।रहाउ।।

गुरु रविदास जी महाराज फरमाते हैं, कि है महा बुद्धिमान ब्राह्मण! तू अपनी जिह्वा से हरि को पाने के लिए सोहम का जाप क्यों नहीं करता है? क्यों आदमी द्वारा निर्मित वेदों, पुराणों आदि धर्म ग्रंथों को त्याग कर केवल आदपुरुष का ही सिमरन क्यों नहीं करता है?

नाना खिआन पुरान वेद विधि।

चौउतीस अखर माहीं।। 

गुरु रविदास जी महाराज ब्राह्मणों को समझाते हुए फरमाते हैं, कि हे ब्राह्मणों! आप कल्पित विधाताओं के वेदों पुराणों के कल्पित विचारों के ऊपर क्यों विश्वास करते हो? देवनागरी लिपि के चौतीस अक्षरों में वेद व्यास आदि लेखकों द्वारा रचे गए परोपकारी साहित्य का गहन अध्ययन कर के, आपस में विचार-विमर्श करके शाश्वत सत्य को क्यों नहीं समझते हो? हरि के सिमरन के बराबर ये सभी रचनाएं व्यर्थ हैं, फिर भी तू हरि का सिमरन क्यों नहीं करता है? कल्पित साहित्य को आप क्यों महत्व दे कर के उन में लिखे गए धार्मिक विचारों को क्यों अपनी पूजा का साधन मानते हो।

बिआस विचारि कहिउ परमारथ।

राम नाम सरि नाहीं।।२।।

गुरु रविदास जी महाराज फरमाते हैं, कि जिस ब्यास ने, वेदों, पुराणों में परोपकारी साहित्य की रचना की है, वह तो राम नाम के समान नहीं है, फिर तू हे ब्राह्मण! इस पर विचार क्यों नहीं करता है? कि ये मनुष्य द्वारा रचित साहित्य अधूरा ज्ञान का भंडार है और निराकार ईश्वर का स्मरण क्यों नहीं करता है?

सहज समाधि उपाधि रहत फुनि।

बडै भागि लिव लागी।। 

गुरु रविदास जी महाराज ब्राह्मण को समझाते हुए बताते हैं, सरल समाधि लगा कर के मन में तनिक भी दुख नहीं रहते हैं अर्थात व्यक्ति सुखी रहता है, हम तो बड़े सौभाग्यशाली हैं कि हमारी लग्न आदपुरष से लगी हुई है, तूँ भी मॉनव कृत कल्पित ग्रथों के अज्ञान से मुक्त हो कर आदपुरष से ही लिव लगाओ, तभी सुखी जीवन जी सकते हो।

कहि रविदास परगासु हिरदै धरि।

जनम मरण भै भागी।।३।।४।।

गुरु रविदास जी महाराज जनमानस को समझाते हुए फरमाते हैं, कि जिस के हृदय में परमपिता परमेश्वर अर्थात आदपुरुष का दिव्य ज्योतिर्ज्ञान प्रकाशमान हो जाता है और वह आदमी उस प्रकाश को हृदय में धारण कर लेता है, उस का जन्म मरण का डर भी खत्म हो जाता है अर्थात उस आदमी को ईश्वर के दर्शन हो जाते हैं, जिस से उसे मृत्यु का कोई भय नहीं सताता है।

शब्दार्थ :--- सुरतरु-देव तरु, कल्प वृक्ष, कल्पित वृक्ष जो बाधाओं को मिटाता है।चिंतामणि-चिंताओं को दूर करने वाली हिंदुओं की कल्पित मणी/पत्थर। कामधेनु-स्वर्ग में रहने वाली हिंदुओं की कल्पित गाय। चारि पदारथ-जीवन में प्रयोग होने वाले चारों पदार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। असट दसा-अठारह। नव निद्धि-नौ खजाने। करतल-हथेलियां। जपहि-जपता है। रसना-रस लेने वाली अर्थात जिह्वा। वचन-कथन, विचार। रचना-लिखित, लेख। नाना-अनेकों। खिआन-प्रसंग, कथा। बिधि-विधाता। चउतीस-देवनागरी लिपि के चौतीस वर्ण। बिआस-व्यास महाऋषि। परमारथ-परोपकार, दूसरों का भला। सहज-सरल, स्वाभाविक। समाधि-एकाग्रता से आदपुरष का ध्यान लगाना। उपाधि-दुख, क्लेश। फुनि-दुबारा, पुनः। हिरदै धरि-मन में धारण करना।

व्याख्या ,रामसिंह आदवंशी।

अध्यक्ष।

विश्व आदधर्म मंडल।

अखिल भारतीय संत शिरोमणि रविदास मिशन

  अभय दास देवबंद।

शुक्रवार, 30 जुलाई 2021

सगल भवन के नाईका। इक खिन दरसु दिखाई जी

         ।।कूप भरियो जैसे दादरा।।

               ।।गौउड़ी पूर्वी।।

गुरु रविदास जी महाराज ने पिछले शब्द में,


(मैं राम नाम धन लादिया, विखु  लादी संसारी)

स्पष्ट कर दिया है, कि मैं ने अमूल्य राम नाम का धन अपनी गाड़ी में भरा हुआ है, बाकी सभी ने अपने छकड़े विष से ही भर रखे हैं। केवल मैं ही ज्योतिर्ज्ञान का परिपूर्ण अनुभवी व्यापारी हूं और जो जो लोग ईमानदार, सत्यनिष्ठ, जिज्ञासु हैं, आध्यात्मिक विचार रखते हैं, वही मेरा सामान खरीद कर सच्चा व्यापार कर सकते हैं, मैं उन को सच्चे व्यापार का भेद भी समझा सकता हूँ। गुरु महाराज ने देश विदेश में भ्रमण कर  के यह अनुभव किया था, कि सभी धर्मों के बफादार फरमाबरदार, नेतृत्व करने वाले खुद ही पथभ्रष्ट हैं, खुद ही अपने पिछलगुओं को दया के पुजारी नहीं बना सके, आए दिन ये हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, यहूदी, पारसी, आपस में खून खराबा करते रहते हैं, एक दूसरे का बड़ी बेदर्दी से कत्लेआम कर के, दूसरों को अपना गुलाम बनाने के लिए दिन रात अपनी क्रूर बादशाहत कायम करने के लिए लोगों का अंधाधुंध खून बहाते रहते हैं, फिर इन बादशाहों के देवताओं, अवतारों, पीरों, पैग़ंबरों ने इन लोगों को कैसी पढ़त पढ़ाई हुई है? एक देश का शासक दूसरे देश के जान माल को तबाह कर के, खून की नदियाँ बहा कर उस के धन दौलत को लूट कर ले जाते हैं, ये कैसे धर्म हैं?  गुरु रविदास जी ने अनुभव किया है कि:---

कूप भरियो जैसे दादिरा।

कछु देश विदेसु ना बूझ।।

ऐसो मेरा मनु बिखिआ बिमोहिआ।

कछु उआर पारू ना सूझ।।१।।

गुरु रविदास जी फरमाते हैं, कि हे परम पिता परमेश्वर! यह सारा संसार ही कुएं के मेंढकों की तरह भरा हुआ है और लोगों को काम, क्रोध, मोह, लोभ और अहंकार के अतिरिक्त कुछ भी दिखाई नहीं देता है। ये कुएं के मेंढक, कुएं को ही अपना संसार समझते हैं। कुएं के बाहर क्या क्या है ? इन्हें कोई पता नहीं चलता है। जब पानी बरसता है तो खूब टरटराते हैं, जब कुँए में पानी कम रह जाता है, तब अपना मुंह बंद कर लेते हैं। ऐसे ही देश विदेश के लोगों का हाल है, ये लोग भी विषय-विकारों में डूबे रहते हैं। काम, क्रोध, मोह, लोभ और अहंकार की धधकती हुई अग्नि में जलते रहते हैं। हे आदपुरष! आप की किसी को कोई याद नहीं आती है। इन को देख कर मेरा मन भी अस्थिर हो कर इन के प्रति मोहित हो रहा है, जिस प्रकार इन मेंडकों को कुएँ से बाहर कुछ दिखाई नहीं देता है, उसी तरह मुझ पर कुछ असर हो रहा है।

कुछ लोगों ने व्याख्या की हुई है कि गुरु रविदास जी अपने लिए फरमाते हैं कि, मैं अज्ञानी हूँ, मैं भी कुएँ के मेंडकों की तरह पांच विकारों के वशीभूत हो कर माया के चक्कर में फंस गया हूँ, मुझे आर पार अर्थ लोक परलोक नजर नहीं आ रहा है, ये कथन गुरु जी के ज्योतिर्ज्ञान के सामने तर्कसंगत नहीं लगता है, क्योंकि गुरु महाराज तो जन्मजात ही ज्योतिर्ज्ञानी थे, उन्होंने जन्म लेते समय ही भानी दाई की आंखों में रोशनी डाल कर अपनी शक्ति का लोहा मनवा लिया था, फिर कोई कैसे लिख सकता कि वे कुएँ के मेंडकों की तरह खुद को लिख रहे हैं, वे तो सांसारिक जीवों को परख कर फरमाते हैं कि हे आदपुरष! कहीं मैं भी इन भटके हुए लोगों को देख कर भटक ना जाऊं, इसलिए आप मुझे दर्शन देते रहो, ताकि मेरा आत्मबल बना रहे, मैं इन भटके हुए लोगों को सन्मार्ग पर लाता रहूं। 

बड़े दुख की बात है कि सभी व्याख्याकार गुरु जी को भगत लिखते आए हैं, जब कि विश्व में कोई भी गुरु, पीर, औलिया उन का कोई भी साम्य नहीं रखता, गुरु नानक देव जी भी गुरु रविदास जी महाराज के ही अनुयायी और शिष्य थे, तो फिर कोई कैसे गुरु जी को भगत लिख कर उन के सम्मान को आंच पहुंचा सकता। कोई कैसे उन को कुएँ के मेंढक के साथ तुलना कर सकते हैं। कोई भी इन लिखने वालों का विरोध भी नहीं करता है।

सगल भवन के नाईका।

इक खिन दरसु दिखाई जी।।१।।रहाउ।।

गुरु रविदास महाराज जी ने सारे धर्मों का गहन अध्ययन करने के उपरांत यह अनुभव किया था, कि किसी भी धर्म में कोई भी संपूर्ण गुरु नहीं है और ना ही किसी के पास ज्योतिर्ज्ञान है, कोई भी ऐसा गुरु नहीं है जो मेरा गुरु बनने लायक हो, इसलिए गुरु रविदास जी आदपुरष के पास प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभ! आप ही सारी सृष्टि के नायक हो, आप ही मेरे गुरु हैं, मुझे आ कर दर्शन देकर सशक्त बना दो, आप के अतिरिक्त कोई भी मेरी ज्ञान की पिपासा को शांत नहीं कर सकता, इस से गुरु जी के ज्योतिर्ज्ञान के बारे में सिद्ध हो जाता है कि, धरती के ऊपर कोई ऐसा सम्पूर्ण गुरु नहीं था, जो उन को मार्गदर्शन कर सकता था।

गुरु रविदास जी महाराज आद पुरुष के पास संसार की दुर्दशा का वर्णन करते हुए फरमाते हैं कि इस सारी कायनात के मालिक आदपुरष आप ही हैं। आप ही चर-अचर जगत के रक्षक और पालनहार हो, मुझे इन लोगों के उद्धार के लिए अपने ज्योतिर्ज्ञान को स्थिर रखने के लिए एक बार अपने दर्शन दे दो, ताकि मेरे मन का आत्मबल बना रहे और मैं काम, क्रोध, मोह, लोभ और अहंकार में डूबे हुए लोगों को इन फनियरों से बचाने के लिए सच्चा मार्गदर्शन करता रहूं और उन्हें भटकने से रोकता रहूं।

मलिन भई मति माधवा।

तेरी गति लखि न जाई।।

करहु किरपा भरम चुकाई।

मैं सुमति देहु समझाई।।२।।

गुरु रविदास महाराज जी फरमाते हैं, कि देश विदेश के लोगों की बुद्धि भ्रष्ट ही नहीं दूषित हो गई है और पांच ठगों से भ्रमित हो गई है। मैं भी आप की चाल को समझ नहीं पा रहा हूं अर्थात आपके अलौकिक ज्योतिर्ज्ञान को समझ नहीं पा रहा हूं, कृपया करके मेरे भ्रम को भी समाप्त कर दो। मुझे ऐसी सुबुद्धि दो कि मेरी समझ काम कर सके, क्योंकि सामाजिक बुराइयों और काम, क्रोध, मोह, लोभ और अहंकार के कारण सारी सृष्टि पथ भ्रष्ट हो चुकी है और मैं भी उन्हें देख कर भ्रमित हूं, इसलिए मुझे भी सुमति प्रदान करो

जोगीसर पावहि नहीं।

तुअ गन कथनु अपार।।

प्रेम भगति कै कारणे।

कहु रविदास चमार।।३।।१।। 

गुरु रविदास महाराज, आदपुरुष की अपरंपार शक्ति को देख कर के, उन के ज्योतिर्ज्ञान को अनुभव करते हुए कहते हैं, कि विश्व में कोई भी योगीश्वर आप का अंत (भेद) नहीं पा सका है और ना ही कोई आज भी नहीं पा सकता है। कोई आप के बारे में पूर्ण रूप से जान नहीं सकता है। मैं रविदास चमार भी जन कल्याण के लिए प्रेम भक्ति के द्वारा आप के दर पर याचक बन कर प्रार्थना कर रहा हूं, कि जनकल्याण के लिए, आप मुझे अपनी दिव्य ज्ञान ज्योति प्रदान करो

शब्दार्थ: कूप-कुआं। दादिरा-मेंढक, ड्डू। देशु-देश। विदेसु-विदेश। बूझ-जानना। बिखिआ-विष, जहर, काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार। बिमोहिआ-आकर्षित होंना, मोहित होंना। आर-नदी का पहला छोर, किनारा, तट। पार-नदी का दूसरा किनारा। सूझ-समझ। सगल- सारा। भवन-घर लक्ष्यार्थ मानव शरीर।  नाईका-नायक, नेता अर्थात भगवान। इक-एक। छिन-क्षण। दरसु-दर्शन। मलिन-मैली, दूषित। मति-बुद्धि। माधवा-परमात्मा। गति-चाल, अंतरात्मा की आवाज। लखी-देखी। भरम-संदेह, शक। चुकाई-चुकाना, उठाना, खत्म करना, मिटाना। सुमति-अच्छी बुद्धि। पावहि-पाना, प्राप्त करना। जोगीसर-योगीश्वर। कहु-कहना। तुअ-आप। कथनु-कथन, कहा हुआ। कै-के लिये। कारणे-कारण। अपार-असीम, वहुत वहुत। 

रामसिंह आदवंशी।

Abhay das ji

रविवार, 11 जुलाई 2021

चार पदारथ

    चार पदार्थ

         अध्यात्म, 
सूरत .निरत .शब्द .स्वांस, 
          कर्मरूप में, 
धर्म, अर्थ काम मोक्ष, 
          देहरूप में, 
मन .बुद्धि. चित .अहंकार, 
        वचनरूप में, 
सत्य, प्रेम, करुणा, सील,

ज्ञान वैराग्य प्रेम चिंतन

बुधवार, 28 अप्रैल 2021

साहेब कांशी राम जी

मेरा समाज निचोड़ कर फेंके नींबू के छिलके की तरह है- साहेब कांशी राम 



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पम्मी लालोमज़ारा (बंगा, नवांशहर) बात है 1991 की. लोकसभा के चुनावों के दौरान कुमारी मायावती को एक एस.पी. के थप्पड़ मारने के बदले में उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार ने पोटा कानून लगाकर इलाहबाद की नैनी केन्द्रीय जेल में बंद कर दिया था. पंजाब के हरभजन सिंह लाखा भी उनके साथ ही जेल में बंद थे. कार्यकर्ताओं में मायूसी का आलम था. मायूसी के इस आलम को दूर करने के लिए साहेब ने दिल्ली में एक जागरूकता रैली का आयोजन किया. रैली के बाद कुछ कार्यकर्ता कंपनी बाग़ में रुक गए और साहेब उनके बीचोबीच बैठ गए. साहेब ने एक बिशन सिंह नाम के कार्यकर्ता को देखकर कहा ‘तुम्हें देखकर मुझे अपनी माँ (बिशन कौर) की याद आ जाती है.’ बिशन सिंह साहेब को कुछ कहना चाहता था तो साहेब ने ये बात भांप कर उसे पूछा, ‘क्या कहना चाहते हो? कहो!’ बिशन सिंह ने कहना शुरू किया, ‘साहेब जी, आप दिन रात इतनी मेहनत करते हो. लेकिन अपने समाज की बात आगे नहीं बढ़ रही. क्यों?’


साहेब ने पास में बैठे जय सिंह निगम को एक विक्रेता की और इशारा करते हुए कहा, ‘वो जो नींबू पानी बेचता है, उससे एक निचोड़े हुए नींबू का छिलका उठा के ला.’ साहेब ने जय सिंघ से वह नींबू का छिलका लेकर अपनी हथेली पर रख लिया और ऊपर से थोड़ा सा पानी डाला. फिर उसे मसला और और दो-तीन कार्यकर्ताओं के दो-चार बूँदें निचोड़ कर पूछा कि बताओ, इसमें किस चीज़ का स्वाद आ रहा है? सबने अपना एक मत जताते हुए कहा, ‘नींबू का स्वाद!’


साहेब ने थोड़ा आश्चर्य जताते हुए सवाल किया, ‘ये तो नींबू का छिलका था, इसमें तो जरा भी रस नहीं था. फिर इसमें नींबू का स्वाद भला कहाँ से आ गया?’


साहेब की बात पर सभी चुप रह गए. कोई कुछ न बोला. साहेब ने सबकी और देखा और बोलना शुरू किया, ‘अपना समाज भी दरअसल निचुड़े-सूखे नींबू की तरह है. इसपर आप थोड़ा सा पानी डालो, यानि सोये हुए समाज को जगाने की कोशिश करो, इसका स्वाद नींबू वाला ही आता है यानि समाज बहुजन समाज बन जाता है. मैं इस काम में दिन रात लगा हुआ हूँ. लेकिन हमारा समाज बहुत बड़ा है और उसे जगाने वाले लोग कम हैं. इसलिए मेरे समाज के लोगों को समझने में देर लग रही है.


( मैं कांशीराम बोल रहा हूं "किताब लेने के लिए संपर्क करें  9501143755 लेखक पंमी लाल़ो मजारा, बंगा-नवांशहर , पंजाब। )

गुरुवार, 22 अप्रैल 2021

ग्रेट चमार महान विद्वान ज्ञानी दीत्त सिंह चमार

 सिख धर्म के सबसे महान विद्वान ज्ञानी दित्त सिंह चमार - ज्ञानी दित्त सिंह जी का जन्म 21 अप्रैल 1850 में गांव बस्सी पठाना , लाहौर पाकिस्तान में एक चमड़े का काम करने वाले चमार परिवार में हुआ जिनको सिख धर्म में रविदासिया सिख के नाम से जाना जाता है । अपनी प्राइमरी शिक्षा उन्होंने गुरबख्श सिंह और लाला दयानंद जी से गांव तिऊर , ज़िला अम्बाला , हरियाणा से प्राप्त की । इस दौरान उन्होंने उर्दू , गुरमुखि और फारसी भाषा में महारत हासिल की । 1881 में जब सिखों की गिनती सिर्फ 16 लाख रह गई थी तब इनके प्रचार की बदौलत ही सिखों की गिनती बढ़नी शुरू हुई थी , जब और धर्मों के लोग भी सिखी के साथ जुड़ना शुरू हो गए थे । 


👉 इन्होंने अपने 51 साल के जीवन में 70 से भी ज्यादा किताबें लिखी ।

👉 दुनिया के सबसे पहिले पंजाबी प्रोफेसर ।

👉 सिंह सभा लहर की संस्थापना और खालसा कालेज अमृतसर की संस्थापना इन्होंने ने की थी ।

👉 स्नातन धर्म के उस समय के सबसे बड़े विद्वान स्वामी दयानंद को 4 बार विचार चर्चा में हराया । 

👉 1873 में जब ईसाई मिशनरियों और आर्य समाज का प्रचार जोरों पर था और लोग सिख धर्म से दूर हो रहे थे तब दिन रात एक करके लोगों को सिख धर्म के साथ जोड़कर उसकी नींव मजबूत की ।

                              आखिर ये महान चमार  06-09-1901 को इस संसार को छोड़कर चला गया । अगर यह हीरा किसी और जाति का होता तो इसके नाम से कालेज , यूनिवर्सिटी आदि बनाई जाती , चमार होने की वजह से इनका ज़्यादा नाम नहीं लिया जाता । लेकिन हमें हमेशा इस बात का गर्व रहेगा सिख धर्म को जब सबसे बड़े मुश्किल समय से गुजरना पड़ रहा था तो उसको बचाने वाला हमारे महान चमार वंश का योद्धा था । चलो इस से हमें एक बहुत बड़ी सीख मिलती है कि किसी और धर्म के लिए अपना पूरा जीवन लगाने के बाद भी चमार विद्वान इतिहास के पन्नों में ही गुम होकर रह गए । तो हमें अपने आज़ाद रविदासिया धर्म का प्रचार करना चाहिए , गुरु रविदास जी की बानी पढ़कर उसमें नई-नई खोज करनी चाहिए । क्योंकि जिनका अपना धर्म नहीं होता उनका अच्छे से अच्छे इतिहास दूसरे धर्मों में मिश्रित होकर खत्म हो जाता है । जब तक कोई कौम अपने इतिहास के सुनहरी पन्नों में से प्रेरणा नहीं लेती तब तक उनमे नेतृत्व करने का जीतने का जज़्बा पैदा नहीं होता । इस लिए हमें अपने रविदासिया धर्म के साथ जुड़ना चाहिए ताकि हमारा इतिहास रविदासिया धर्म के अधीन लिखा जाए और आने वाली पीढियां उसको पढ़कर प्रेरणा लेकर ज़िन्दगी का हर मैदान फतिह ( जीत ) कर सकें ।

                                                        अभयदास जी देवबंद

बुधवार, 24 मार्च 2021

इस मिशन के 1000 संत 400 आश्रम चलाते है भारत में

                                 गुरु रविदास जी ने अपनी वाणी के में समझाया है




सतगुरु स्वामी समनदास महाराज जी का एक गुरु घर बन रहा है जो वर्ल्ड लेवल पर होगा ?
















                           गुरु रविदास जी ने अपनी वाणी के में समझाया है 

कि एक हंस एक समुद्र से दूसरे समुद्र की ओर जा ही रहा था कि उसे एक कुआं दिखता है. 


वह बहुत थक चुका था ,उसने सोचा कि क्यों ना यहां पर बैठ कर आराम कर लिया जाए. जिस कुएं के किनारे वह बैठता है उसी कुएं के अंदर एक मेंढक रहता है .


 उस कुए के अंदर जो मेंढक था उस मेंढक ने हंस को देखकर पूछा:- " मित्र तुम कौन हो और कहां से आए हो” ?


 हंस ने कहा :- " मैं पक्षी हूं समुद्र किनारे रहता हूं और मोती चुन कर कर खाता हूं .


 समुद्र का नाम सुनते ही मेंढक के मन में सवाल आया कि समुद्र कितना बड़ा है ?

      

 हंस ने जवाब दिया ;- ' बहुत बड़ा हैं !


मेंढक* ने थोड़ी दूर पीछे हट कर कहा कि इतना बड़ा होगा?


हंस ने कहा:-” नहीं मित्र, इससे बहुत बड़ा|”


मेंढक ने बड़ा सा चक्कर लगाकर पूछा:-‘ इतना बड़ा?’


 हंस ने हंसकर कहा की समुद्र , तो कुए से भी कहीं गुना बड़ा होता है !


तब मेंढक बोला:-” तू झूठ बोल रहा है, बेईमान है| इससे बड़ा तो हो ही नहीं सकता |”


हंस ने सोचा कि इस मुर्ख मेंढक को समझाने से अच्छा है कि यहां से चला जाए और हंस वहां से अपने समुद्र की ओर चल दिया|


 गुरु रविदास जी ने पूरे भारत और विदेशों में पैदल घूम घूम कर जन जाग्रति फैलाई इसी कारण उनके अनुयाई पूरे भारत के अलावा अन्य कई देशों में भी पाए जाते हैं 


 मनुष्य को बहुत सरल तरीके से समझाया था ठीक यही हाल हमारे समाज का है क्युकी ये लोग कभी किसी की बात को नहीं मानते क्युकी ये अपनी उस व्यवस्था से कभी बाहर ही नहीं निकलना चाहते ।


समाज को दिन दुनिया का पता कैसे चले बस विरोधी भाषा का प्रयोग करते है कभी किसी महापुरुष संत गुरु की बताई भाषा का चिंतन मनन नहीं करते ।


सिक्ख धर्म 300 साल पहले ही बना है वे लोग अपने गुरुओं की बातो को सुनकर पढ़कर मानकर दुनिया में फैले ओर अपने गुरुओं का नाम रोशन किया ,


लेकिन हमारे #चमार समाज में हजारों महारथी संत गुरु महापुरुष आए और इन्हे समझा कर चले गए यदि ये उनकी बाते मान लेते तो ये जो आज भी अपने रोने रोते रहते है इन्हे रोने की जरूरत ना पड़ती :- अगर इस समाज ने अपने गुरुओं को माना होता तो आज दुनिया में इनका भी सम्मान होता ।


लेकिन कहने को हम सबसे ज्यादा लेकिन सबसे बिखरे हुए हमारे लोग :- कोई ईसाई बन गया कोई सिक्ख बन गया कोई मुसलमान तो कोई बौद्ध , धर्म परिवर्तन की दलदल में गिरते चले गए लेकिन कभी अपने पूर्वजों के दर्शन को नहीं समझा ,


आज भी हमारे समाज में गुरु रविदास जी के लाखो संत सत्संग के माध्यम से समाज में जागृति फैला रहे है । 

#पंजाब #हरियाणा #उत्तरप्रदेश #उत्तराखंड आदि राज्यो में गुरुओं के डेरे आश्रमों से मिशन संत मिशन चला रहे है गुरुओं की वणियो से प्रचार करते है ,ओर मानव मानव का भेद ख़तम करके एक अखंड समाज का निर्माण के रहे है हम सभी को उनका सहयोग करना चहिए ।


अखिल भारतीय संत शिरोमणि सतगुरु रविदास मिशन 

गुरु गद्दी शुक्रताल अध्यक्ष व संस्थापक सतगुरु स्वामी #समनदास जी महाराज ?


इस मिशन के 1000 संत 400 आश्रम चलाते है भारत में ओर गाव गाव में सत्संग की साखा लगाकर गुरु रविदास जी की मूल विचारधारा का प्रचार करते है निगुरे लोगो को गुरु मुखी बना रहे है और मांस मदिरा का त्याग करा कर शाकाहारी सदाचारी जीवन जीने का मूल मंत्र दे रहे हैं ,सत्संग और परमार्थ करा रहे है ।


यह सभी कार्यक्रम सतगुरु स्वामी #समनदास महाराज जी के अध्यक्षता में होते हैं ?

सतगुरु स्वामी समनदास महाराज जी का एक गुरु घर बन रहा है जो वर्ल्ड लेवल पर होगा ?


                                उत्तर प्रदेश जिला मुजफ्फरनगर सुक्र्ताल एतिहासिक नगरी 

                       आज के समय में आपके बीच युगपुरुष जीती जागती तस्वीर है 

हमारे देश भारत में बहुत बड़े बड़े महापुरुष हुए हैं दो संसार में अपना नाम चमका कर गए और आज संसार उनका गुणगान करता है आज के समय में आपके बीच युगपुरुष जीती जागती तस्वीर है जिनका नाम पूरे भारत में वह संसार में प्रचलित हो गया है उनका नाम संत शिरोमणि सतगुरु समनदास जी महाराज के नाम से प्रचलित है सतगुरु स्वामी समनदास जी महाराज का संसार इस जन्म सन 1922 को भादो पूर्णिमा को हुआ ग्राम लाख जिला मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश में हुआ था उनका बचपन का नाम हुकमचंद था पिता का नाम श्री फूल सिंह व माता का नाम लक्ष्मी देवी था यह लाख में अपना सादा जीवन निर्वाह कर रहे थे चमार जाति में इनका जन्म हुआ चित्र साल पहले 1926 के हालात चमारों का हाल आप से छिपा नहीं है इतिहास गवाह है कैसे रहते थे हुकम चंद जी अपने माता-पिता के साथ खेतों में काम करवाते थे और काश कार के यहां धूप में यह बरसात में सभी ऋतु में काम करना पढ़ता था क्योंकि किसान के यहां काम करना बड़ा कठिन है और मात्र एक यही काम था कि जिसको ज्यादातर हमारे लोग करते थे जिस समय हुकुमचंद e10 11 वर्ष के थे तब खेत में एक पेड़ के नीचे दोपहर में बैठे हुए थे और उन्हें उस समय संसार की वस्तुओं में कोई दिलचस्पी नहीं थी वह सोचते रहते थे जैसे उन्हें कुछ प्राप्त करना हो इसी बीच उनके पास एक साधु आए और उन्होंने हुकुमचंद से पानी पीने के लिए मांगा तब हुकुमचंद बोले महाराज मैं चमार हूं मेरे हाथ से आप कैसे पानी पियोगे शादी बोले हुकुमचंद तुम कितने भोले हो तुम पानी पिलाओ हुकुमचंद जी घड़े में पानी लेकर आते हैं और सतगुरु समनदास जी महाराज पानी लेकर आते समय कुछ साधु को बड़े ध्यान से देखते हैं वह देखते हैं की एक ताकत पर बैठे और ताकत से नीचे तक उनके काले लंबे बाल लटक रहे हैं और चेहरे पर काले रंग की बड़ी-बड़ी दाढ़ी और चेहरे पर एक अजीब तेज चमक रहा है हुकम चंद जी ने देखा और हुकुम चंद जी मन ही मन में सोच रहे हैं यह सारी बातें कि इतनी धूप पड़ रही है और यह आसमान से कैसे नीचे आ गए यह जरूर कोई सिद्ध महात्मा है तब हुकुमचंद जी ने साधु को पानी पिलाया और पानी पीते पीते साधु महाराज से ज्ञान का उपदेश सुनाएं लगते हैं उनके अंदर ही सतगुरु अखंड ज्योति का स्वरूप दिखाया तभी से हुकुमचंद जी को अखंड ज्ञान हो गया जब मैं वहां से घर आए उन्हें संत की भांति ही बात कर रहे थे उन्होंने एकांत के लिए उपलों का धुना लगाया और धोना लगाकर कमरे में बैठ गए उनके घर वाले परेशान हो गए पिता फूल सिंह ने उन्हें काम करने को कहा परंतु हैं उनके भजन में मस्त है उन्होंने पिता फूल सिंह को विस्तार से समझाया परंतु मैं सोचने लगे कि इस पर किसी जादू टोने का असर हो गया है ऑपरेट प्रायर का मुझे लगता है उन्होंने एक सियाणा को बुलाया और उस सियाणा ने एक झाड़ू मंगाई और पिता फूल सिंह जी ने उसे झड़ लाकर दे दी वहां बहुत भीड़ हो गई लोग और काफी बच्चे पर औरतों भी थी और बहुत से डर के परेशान भी हो रहे थे कभी हुकुमचंद का पूरा हम पर ना आ जाए इसलिए लोग बाग डर भी रहे थे सियाणा ने जब झाड़ू को उठाया और उठाना चाहा चाहा तो सियाणा पर झाड़ू नहीं उठी और उसके हाथ आपस में चिपक गए उसने बहुत छुड़ाने की कोशिश की मगर उसके हाथ अपने हाथ से छूट नहीं रहे थे मानो किसी ने उसके हाथ रस्सी से जकड़ दिए हो दो दो आदमियों ने उसके हाथ छुड़ाने की कोशिश की मगर सियाणा हाथ नहीं छूटा सका तब सियाणा परेशान हो जाता है और महाराज जी से माफी मांगने लगते हैं कि है महाराज मुझे माफ कर दो आप जरूर कोई बड़ी शक्तियां तब हुकुम सिंह जी कहते हैं कि बता आज के बाद तो पागल नहीं बनाओगे लोगों का तब वह कहते हैं कि नहीं मैं पागल नहीं बनाऊंगा तब महाराज जी ने कहा खोल अपने हाथ तो उसने अपने आप को हाथ खोले और आप खुल गए सब सियाणा एक पल भी वहां नहीं रुका और भाग गया और इस बात का पर्चा पूरे गांव में आग की तरह फैल गया सभी को यह जानकारी हो गई की फूल सिंह के लड़के हुकुमचंद को कोई शक्ति मिल गई है तनु फूल सिंह जिस किसान के यहां लगे हुए थे वह किसान भी आता है और हुकम चंद जी को काम पर लौटने के लिए मनाने लगते हैं मगर हुकम चंद जी ने कहा कि मैं जिस काम के लिए आया हूं मुझे वह काम करना है तुम्हारा काम नहीं करना है इतनी बात सुनकर किसान को गुस्सा आ जाता है और वह फूल सिंह जी से कहते हैं कि तुम्हारा लड़का किसी काम का नहीं है और ना यह काम करेगा तुम मेरे ₹2000 दे दो बस मैं ऐसे काम पर नहीं ले जाता इतनी बात सुनकर हुकुमचंद जी बोले कि तुम अपनी चादर यहां बिचाओ मैं देता हूं तुम्हें पैसे तब हुकुम चंद जी ने जो उपले अपने धूणी मैं लगाए थे और उसके लाल लाल अंगारे हो रहे थे हुकुमचंद जी आग में से अंगारे निकाल निकाल कर उसकी चादर पर रखते गए और उनकी चादर पर रूपों का ढेर लग गया किसान यह करतब देख रहे थे सभी किसान को अपनी गलती पर पछतावा हुआ और वह हुकम चंद जी से माफी मांगने लगते हैं तब हुकुम संजू से कहते कि यह रुपया  लेऔर जाओ मगर किसान मगर किसान अपनी चादर और रुपए छोड़कर वहां से हाथ जोड़कर निकल जाते हैं हुकम चंद जी ने वह रुपए फिर वही रख दिया जहां से उन्होंने उठाता इस बात का चर्चा पूरे लाख गांव में जोर शोर से हो जाता हैl

        Abhay Das 

Deoband 9358190235



सोमवार, 15 फ़रवरी 2021

एकलव्य कौन थे

 ।।सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर एकलव्य के अंगूठे का कत्ल।।



जब से भारतीय मूलनिवासी यूरेशियन के गुलाम हुए हैं, तभी से मूलभारतीयों, मूलनिवासियों और आदवंशियों के महापुरुषों को या तो कत्ल किया गया है या उन की विलक्षण प्रतिभा का भी नामो निशान मिटाया जाता आ रहा है। सम्राट शिव शंकर का मर्डर, शंबूक का कत्ल, रावण का छल से कत्ल, राजा बलि का हाथ बॉन्ध कर के कत्ल, एकलव्य की प्रतिभा का निशान मिटाने के लिए, उस के अंगूठे का कत्ल इतिहास आज तक भुला नहीं सका। 

एकलव्य कौन थे:---एकलव्य निषादराज का राजकुमार था, वनवासी तो तीर धनुष चलाने में, जन्मजात ही पारंगत होते हैं, फिर उन्हें कौन माई का लाल था, जो एकलव्य जैसे तीव्र बुद्धि के मालिक को तीर चलाना सीखा सकता था। वन में, एकलव्य धनुष चलाने का अभ्यास कर रहा था, जिसे द्रोणाचार्य का कुत्ता परेशान कर रहा था। एकलव्य ने, उस का मुंह तीरों से बन्द कर दिया था, जिसे देख कर द्रोणाचार्य सहित पांडव पुत्रों के होश उड़ गए थे, उन के पैरों तले मिट्टी खिसक गई, क्योंकि तीर कुत्ते के मुंह के अंदर घुस कर उस की जिह्वा को बंद कर बैठे थे, जैसा करना अर्जुन के वश का नहीं था। अर्जुन कुत्ते को देख कर, द्रोणाचार्य को गुस्से में कहने लगा, गुरु जी ! आप कहते थे कि आप से बड़ा कोई भी धनुर्धर नहीं होगा, कुत्ते को देख कर, आप को पसीना आ गया है, मेरे तो होश ही उड़ गए हैं, हम तो इन तीरों को देख कर ही, पशोपेश में पड़ गए हैं कि हमारा क्या होगा, हमारे पीछे तो पहले ही दुर्योदन पड़ा हुआ है।

द्रोणाचार्य ने, अर्जुन को ढाढस बंधाते हुए कहा, वत्स चिंता मत करो, जो हम करेंगे उस का आप को अनुमान नहीं है। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर का ताज आप के ही मात्थे पर सजेगा। ये वनवासी आप के सामने आ ही नहीं सकेगा। देखते चलो हमारा चमत्कार। द्रोणाचार्य ने, अपनी ब्राह्मणवादी क्रूर चाल चली और अपनी मूर्ति बना कर, एकलव्य के अभ्यास स्थल पर स्थापित कर दी, दूसरे दिन द्रोणाचार्य भी अपने शिष्यों को लेकर, एकलव्य के शिक्षण स्थल पर पँहुच गया। छली द्रोणाचार्य ने एकलव्य को कहा, वत्स आप मेरी मूर्ति बना कर, मुझ से धनुर्धर विद्या सीख रहे हो, आप ने मुझे गुरु बना कर, मुझ से वीर धनुर्धर बनने का प्रयास किया है, तो फिर मुझे गुरु दक्षिणा क्यों नहीं देते हो ? एकलव्य ने द्रोणाचार्य को कहा, मैं कहाँ आप से धनुर्धर विद्या सीख रहा हूँ ? हम तो वनवासी लोग, आप लोगों से अधिक तीर चलाते हैं,हम आप से अधिक तीर चलाना जानते हैं, हम तो हररोज मार शिकार करते हैं, आप हमारे से मुकाबला कर के देख लो। क्रूर द्रोणाचार्य और पांडवों ने, जबरन एकलव्य को अकेला पा कर, उस का दहिने हाथ का अंगूठा काट दिया और प्रचारित कर दिया कि एकलव्य ने, स्वयं ही गुरु दक्षिणा में, अंगूठा काट कर देदिया। 

वास्तव में, मनुवादी हमेशा ऐसा ही छल करते आए हैं, वर्तमान में भी, मूलनिवासी, आदिवासी  प्रतिभासंपन्न युवाओं का भविष्य, इसी तरह ही समाप्त करते हैं। आज जितने बड़े बड़े पदों के लिए कंपीटीशन परीक्षाएं और प्रतियोगिताएं हो रही हैं, उन में मूलनिवासी युवा ही टॉप करते हैं, जिस के कारण ही, कांग्रेस और भाजपा आदि मनुवादी सरकारों ने, रोजगार देने के लिए ठेका प्रणाली शुरू कर रखी है ताकि ये ठेकेदार केवल मनुवादियों को ही नौकरियां दे कर, मूलनिवासी, मूलभारतीयों को बेकार रख सकें। मूलनिवासी राजनेताओं को, केवल एक ही राजनीतिक पार्टी बना कर, सत्ता छीनने का प्रयास करना चाहिए ताकि मूलनिवासी शासन स्थापित कर के न्याय पूर्वक भारतीयों को, एक समान अवसर उपलब्ध करवाए जा सकें।

रामसिंह आदवंशी।

अध्यक्ष।

विश्व आदधर्म मंडल।

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गुरु आदि परगास ग्रँथ के रचयिता स्वामी ईशरदास जी महाराज,

 ।।पंजाब विधानसभा सन 1937 के सदस्य।।


सन 1936-1937 में गुलाम भारतवर्ष में पहले विधानसभा चुनाव चुनाव हुए थे, जिस में साहिबे कलाम मंगू राम जी ने, चुनाव लड़ कर आदधर्म का परचम सारे विश्व में, लहराया था। वे इसी चुनाव में अछूतों को आरक्षण लागू करवाने में भी सफल हो गए थे। भारतवर्ष का संविधान तो 1947 में बनना श्रु हुआ था और लागू 1950 में हुआ था, मगर ये महाउपलब्धि परमपूज्य साहिबे कलामें मंगू राम मुगोवाल जी, गुरु आदि परगास ग्रँथ के रचयिता स्वामी ईशरदास जी महाराज, बीडीओ हजारा सिंह पिपलांवाला पंजाब और स्वामी अच्छूतानंद जी महाराज कानपुर उतर प्रदेश के


आंदोलनकारियों, प्रदर्शनकारियों की ही थी। पंजाब विधानसभा के 175 विधायकों के लिये चुनाव मार्च 1937 में हुए थे, जिन का विवरण निम्नलिखित है।


1 सर्व माननीय मेजर सरदार सर सिकन्दर हयात खान पश्चिम पंजाब।


2 सरदार बहादुर डॉक्टर सरदार सर सुंदर सिंह बटाला सिख ग्रामीण।


3 राव बहादुर चौधरी छोटू राम झझर सेंट्रल सामान्य ग्रामीण।


4 माननीय मिस्टर मनोहर लाल विश्वविद्यालय।


5 नबाबजादा मेजर मलिक खिजार हयात खान टिवाणा, खुशहाब मुहम्मदन ग्रामीण।


6 मियां अब्दुल हयात खान, दक्षिण पूर्व टाउन मोहम्मदन ग्रामीण।


7 श्रीमती रशीदा लातीफ, आंतरिक लाहौर मुहम्मदन स्त्री शहरी।


8 खान बहादुर नबाब मलिक अल्ला बख़्श खान , शाहपुर मुहम्मदन शहरी।


9 सरदार प्रताप सिंह, अमृतसर दक्षिण सिख ग्रामीण।


10 खान बहादुर नबाब मुजफ्फर खान, अटोक उतर, मुहम्मदन ग्रामीण।


11 सरदार मेजर मुहम्मद नबाज खान, अटोक सेंट्रल मुहम्मदन ग्रामीण।


12 सरदार सोहन सिंह जोश, अमृतसर सिख ग्रामीण।


13 चौधरी सर सहाबुद्दीन, सियालकोट दक्षिण मुहम्मदन ग्रामीण।


14 डॉक्टर मुहम्मद आलम, रावलपिंडी डिवीजन टाउन मुहम्मदन शहरी।


15 डॉक्टर शेफुद्दीन किचलू, अमृतसर शहर, मुहम्मदन शहरी।


16 शेख फैज मुहम्मद, डेरा गाजी खान, सेंट्रल मुहम्मदन ग्रामीण।


17 सरदार नरोत्तम सिंह, दक्षिण पूर्व पंजाब सिख ग्रामीण।


18 सरदार गोपाल सिंह, लुधियाना और फिरोजपुर सामान्य, आरक्षित सीट ग्रामीण।


19 चौधरी मुहम्मद यासीन खान, उतर पश्चिम गुड़गांव मुहम्मदन ग्रामीण।


20 राय साहिब चौधरी हेतराम, हिसार दक्षिण सामान्य, ग्रामीण।


21 श्री खालिद लतीफ गाऊबा, आंतरिक लाहौर, मुहम्मदन शहरी।


22 मलिक बरक़त अली, पूर्व टाउन मुहम्मदन शहरी।


23 मलिक हबीबुल्ला खान, सरगोदा मुहम्मदन ग्रामीण।


24 चाननसिंह, कसूर सिख ग्रामीण।


25 सरदार साहिब सरदार संतोख सिंह, पूर्व टाउन सिख शहरी।


26 सरदार कपूर सिंह, लुधियाना पूर्व सिख ग्रामीण।


27 चौधरी जल्लालूद्दीन अंबर, पश्चिम सेंट्रल पंजाब भारतीय क्रिश्चियन।


28 महंत प्रेम सिंह, गुजरात और शाहपुर सिख ग्रामीण।


29 सरदार मुजफ्फर अली खान, लाहौर मुहम्मदन ग्रामीण।


30 सरदार हरि सिंह, कांगड़ा और उत्तर होशियारपुर सिख ग्रामीण।


31 सरदार लालसिंह, लुधियाना सेंट्रल सिख ग्रामीण।


32 सरदार साहिब सरदार उज्जल सिंह, पश्चिम टाउन सिख शहरी।


33 डॉक्टर गोपी चन्द भार्गब, लाहौर शहर सामान्य शहरी।


34 प्रोफेसर डब्ल्यू रोबर्ट यूरोपियन।


35 लाला दुनी चन्द अंबाला और शिमला सामान्य ग्रामीण।


36 कैप्टन दीना नाथ, कांगड़ा दक्षिण सामान्य ग्रामीण।


37 मियां मुहम्मद इफ्तिखारूद्दीन, कौर मुहम्मदन ग्रामीण।


38 श्रीमती जहाँआरा शाह नबाज, आउटर लाहौर मुहम्मदन स्त्री शहरी।


39 लाला भीम सेन सच्चर, उतर पश्चिम टाउन सामान्य शहरी।


40 चौधरी कृष्णा गोपाल दत्त, उतर पूर्व टाउन सामान्य शहरी।


41 चौधरी टिक्का राम, रोहतक उतर सामान्य ग्रामीण।


42 शेख करामात अली, ननकाना साहिब मुहम्मदन ग्रामीण।


43 मास्टर काबुल सिंह, जालंधर पूर्व सिख ग्रामीण।


44 खान साहिब चौधरी रियासत अली, हफीजावाद मुहम्मदन ग्रामीण।


45 चौधरी मुहम्मद हसन,लुधियाना मुहम्मदन ग्रामीण।


46 राजा गजानफर अली खान, पिंड दादन खान मुहम्मदन ग्रामीण।


47 सरदार रूर सिंह, फिरोजपुर पूर्व सिख ग्रामीण।


48 चौधरी करतार सिंह, होशियारपुर पश्चिम।


49 टिक्का जगजीतसिंह बेदी, मुंटगुमरी पूर्व सिख ग्रामीण।


50 पंडित मुनी लाल कालिया, लुधियाना और फिरोजपुर सामान्य ग्रामीण।


51 नबाबजादा मुहम्मद फैज अली खान, करनाल मुहम्मदन ग्रामीण।


52 डॉक्टर संतराम सेठ, अमृतसर शहर सामान्य शहरी।


53 मखदूमजादा हाजी सियोद मोहम्मद रजा शाह जिल्लानी, सूजावाद मुहम्मदन ग्रामीण।


54 लाला सुदर्शन, पूर्वी टाउन सामान्य शहरी।


55 मौलवी गुलाम मौउद्दीन, शेखुपुरा मुहम्मदन ग्रामीण।


56 पंडित श्री राम शर्मा, दक्षिण टाउन सामान्य शहरी।


57 मीर मकबूल महमूद, अमृतसर मुहम्मदन ग्रामीण।


58 लाला भगत राम छोटा, जालंधर सामान्य ग्रामीण।


60 मिस्टर एस पी सिंघा, पूर्वी सेंट्रल पंजाब भारतीय क्रिश्चियन।


61 सरदार हरजाब सिंह, होशियारपुर दक्षिण सिख ग्रामीण।


62 श्रीमती रघुवीर कौर, अमृतसर सिख स्त्री।


63 सैयद अफजल अली हसन, शाहदरा मुहम्मदन ग्रामीण।


64 श्रीमती पार्वती जय चन्द, लाहौर शहर सामान्य स्त्री।


65 राय बहादुर मिस्टर मुकन्द लाल पुरी, रावलपिंडी डिवीजन सामान्य ग्रामीण।


66 डॉक्टर सर गोकल चन्द नारंग, पश्चिम लाहौर डिवीजन सामान्य ग्रामीण।


67 नबाब खान शाह नबाज खान, फिरोजपुर सेंट्रल मुहम्मदन ग्रामीण।


68 नबाब सर मलिक मुहम्मद हयात खान नूर, उतर पंजाब।


69 खान बहादुर नबाब चौधरी फैजल अली, गुजरात पूर्वी मुहम्मदन ग्रामीण।


70 मियां अब्दुल अजीज, आउटर लाहौर मुहम्मदन शहरी।


71 सरदार दसौंदा सिंह, जगराओं सिख ग्रामीण।


72 खान बहादुर नबाब सर मुहम्मद जमाल खान, लेघारि, तुमानदार।


73 राय साहिब लाल गोपाल दास, कांगड़ा उतर सामान्य ग्रामीण।


74 मिस्टर सी राय, अमृतसर सियालकोट सामान्य ग्रामीण।


75 राव बहादुर कैपटन राव बलवीर सिंह, उतर पश्चिम गुड़गांव सामान्य ग्रामीण।


76 खान बहादुर मियां अहमद यार खान दौलताना मैलसी मुहम्मदन ग्रामीण।


77 चौधरी फकीर खान, तरनतारन मुहम्मदन ग्रामीण।


78 खान बहादुर मिंयाँ मुस्ताक अहमद गुरमानी, मुजफ्फरगढ़ उतर मुहम्मदन ग्रामीण।


79 पीर अकबर अली शाह, फाजिलका  मुहम्मदन ग्रामीण।


80 सैयद मुबारक अली शाह, झांग सेंट्रल मुहम्मदन ग्रामीण।


81 खान हैबत खान दाहा, खानेबाल मुहम्मदन ग्रामीण।


82 चौधरी साहिब दाद खान, हिसार मुहम्मदन ग्रामीण।


83 मियां नुरुल्ला, लायलपुर मुहम्मदन ग्रामीण।


84 खुआजा गुलाम समंद, दक्षिण टाउन मुहम्मदन ग्रामीण।


85 राय बहादुर सरदार विशाखा सिंह, अमृतसर सेंट्रल सिख ग्रामीण।


86 भगत हंसराज, अमृतसर और सियालकोट सामान्य आरक्षित सीट ग्रामीण।


87 राय बहादुर बिंदा सारन, पंजाब कॉमर्स और उद्योग।


88 राय बहादुर लाला शाम लाल, पश्चिम मुल्तान डिवीजन सामान्य ग्रामीण।


89 महंत गिरधारी दास, दक्षिण पूर्वी मुल्तान डिवीजन सामान्य ग्रामीण।


90 सेठ राम नारायण अरोड़ा, लायलपुर और झांग सामान्य ग्रामीण।


91 ठाकुर रिपुदमन सिंह,गुरदासपुर सामान्य ग्रामीण। 


92 लाला शिव दयाल, दक्षिण पश्चिम टाउन सामान्य शहरी।


93 राय भगवंत सिंह, कांगड़ा पूर्व सामान्य ग्रामीण।


94 पीर मोयुद्दीन लाल बादशाह, अटोक दक्षिण मुहम्मदन ग्रामीण।


95 खान साहिब मिंयाँ नूर अहमद खान, दीपालपुर मुहम्मदन ग्रामीण।


96 सैयद अमजद अली शाह, फिरोजपुर पूर्व मुहम्मदन ग्रामीण।


97 चौधरी उमर हयात खान, भालबल मुहम्मदन ग्रामीण।


98 कैप्टन आशिक़ हुसैन, मुल्तान मुहम्मदन ग्रामीण।


99 खान साहिब राय शहादत खान, जारांवाला मुहम्मदन ग्रामीण।


100 खान बहादुर कैप्टन मलिक मुजफ्फर खान, मिंयाँवाली दक्षिण मुहम्मदन ग्रामीण।


101 खान साहिब चौधरी पीर मुहम्मद, दक्षिण पूर्व गुजरात मुहम्मदन ग्रामीण।


102 राजा मुहम्मद सरफ़राज़ खान, चकवाल मुहम्मदन ग्रामीण।


103 खान बहादुर मखदूम सैयद, मिझाम्मद हसन अलीपुर मुहम्मदन ग्रामीण।


104 खान बहादुर सरदार मुहम्मद हसन खान गुरचानी, डेरा गाजीखान दक्षिण मुहम्मदन ग्रामीण।


105 सरदार उत्तम सिंह दुग्गल, उतर पश्चिम पंजाब सिख ग्रामीण।


106 सेठ किशन दास, जालंधर सामान्य आरक्षित सीट ग्रामीण।


107 लाला सीता राम, ट्रेड यूनियन लेबर।


108 दीवान चमन लाल, पूर्व पंजाब नान यूनियन पंजाब।


109 राय साहिब लाला आत्मा राम, हिसार उतर सामान्य ग्रामीण।


110 मौलवी मझार अली आझार, उतर पूर्वी टाउन मुहम्मदन शहरी।


111 पंडित भगत राम, कांगड़ा पश्चिम सामान्य ग्रामीण।


112 ख्वाजा गुलाम हुसैन, मुल्तान डिवीजन टाउन, मुहम्मदन शहरी।


113 खान साहिब चौधरी फजलद्दीन, अजनाला मुहम्मदन ग्रामीण।


114 चौधरी मुहम्मद अब्दुल रहमान खान, जालंधर उतर मुहम्मदन ग्रामीण।


115 मिंयाँ फतेह मुहम्मद, गुजरात उतर, मुहम्मदन ग्रामीण।


116 मिंयाँ अहमद बख़्श खान, उतर पंजाब, नान यूनियन लेबर।


117 सरदार बलि मुहम्मद सियाल हिराज, कबीरवाला मुहम्मदन ग्रामीण।


118 चौधरी नसीरूद्दीन, गुजरांवाला उतर मुहम्मदन ग्रामीण।


119 सूबेदार मेजर फरमान अली खान, गुजर खान मुहम्मदन ग्रामीण।


120 खान बहादुर राजा मुहम्मद अकरम खान, झेलम मुहम्मदन ग्रामीण।


121 खान साहिब नबाब मुहम्मद सादात अली खान, समूँद्री मुहम्मदन ग्रामीण।


122 चौधरी अली अकबर, गुरदासपुर पूर्व मुहम्मदन ग्रामीण।


123 लियूटीनेंट सोढ़ी हरनाम सिंह, फिरोजपुर उतर सिख ग्रामीण।


124 खान साहिब चौधरी मुहम्मद सफी अली खान, रोहतक मुहम्मदन ग्रामीण।


125 सरदार अजीत सिंह, दक्षिण पश्चिम पंजाब सिख ग्रामीण।


126 चौधरी प्रेम सिंह, दक्षिण पूर्व गुड़गांव, सामान्य आरक्षित सीट ग्रामीण।


127 सरदार साहिब सरदार गुरबचन सिंह, जालंधर पश्चिम सिख ग्रामीण।


128 चौधरी अनन्त राम, करनाल दक्षिण सामान्य ग्रामीण।


129 चौधरी राम स्वरूप, रोहतक सेंट्रल सामान्य ग्रामीण।


130 सरदार मूला सिंह, होशियारपुर पश्चिम सामान्य आरक्षित सीट ग्रामीण।


131 मिंयाँ बद्दर मोयुद्दीन कादरी, बटाला मुहम्मदन ग्रामीण।


132 खान तालिब हुसैन खान, झांग पश्चिम मुहम्मदन ग्रामीण।


133 मखदूमजादा हाजी सैयद मुहम्मद बिलयात हुसैन जीलानी, लोधराम मुहम्मदन ग्रामीण।


134ख्वाजा गुलाम मुर्तज़ा, डेरा गाजीखान उतर मुहम्मदन ग्रामीण।


135 मिंयाँ अब्दुल राब, जालंधर दक्षिण मुहम्मदन ग्रामीण।


136 चौधरी मुहम्मद हुसैन, गुजरांवाला पूर्व मुहम्मदन ग्रामीण।


137 राणा नसरुल्ला खान, होशियारपुर पश्चिम मुहम्मदन ग्रामीण।


138 खान मुहम्मद यूसफ़ खान, रावलपिंडी सदर मुहम्मदन ग्रामीण।


139 सूफी अब्दुल हमीद खान, अंबाला और शिमला मुहम्मदन ग्रामीण।


140 पीर नसीरूद्दीन शाह, टोबा टेक सिंह मुहम्मदन ग्रामीण।


141 लाला हरनाम दास, लायलपुर और झांग सामान्य आरक्षित सीट ग्रामीण।


142 सरदार तारा सिंह, फिरोजपुर दक्षिण सिख ग्रामीण।


143 चौधरी जुगल किशोर, अंबाला और शिमला सामान्य आरक्षित सीट ग्रामीण।


144 सरदार प्रीतम सिंह, फिरोजपुर पश्चिम सिख ग्रामीण।


145 चौधरी फकीर चन्द, करनाल उतर सामान्य आरक्षित सीट ग्रामीण।


146 सरदार इंद्र सिंह, गुरदासपुर उतर सिख ग्रामीण।


147 राय हरि चन्द, ऊना सामान्य ग्रामीण।


148 लियूटीनेंट सरदार नौनिहाल सिंह मॉन, शेखुपुरा पश्चिम सिख ग्रामीण।


149 चौधरी रनपत, करनाल उतर सामान्य ग्रामीण।


150 राय फैज मुहम्मद खान, कांगड़ा और पूर्वी होशियारपुर मुहम्मदन ग्रामीण।


151राजा फतेह खान, रावलपिंडी पूर्व मुहम्मदन ग्रामीण।


152 चौधरी अब्दुल रहीम, शक्कर गढ़ मुहम्मदन ग्रामीण।


153 चौधरी मुहम्मद सरफ़राज़ खान, सियालकोट उतर मुहम्मदन ग्रामीण।


154 चौधरी अहमद यार खान, उतर पश्चिम गुजरात मुहम्मदन ग्रामीण।


155 चौधरी गुलाम रसूल, सियालकोट सेंट्रल मुहम्मदन ग्रामीण।


156 सरदार मुहम्मद हुसैन, चुनियन मुहम्मदन ग्रामीण।


157 चौधरी अब्दुल रहीम, दक्षिण पूर्वी गुड़गांव मुहम्मदन ग्रामीण।


158 मलिक फतेह शेर खान, मिंटगुमरी मुहम्मदन ग्रामीण।


159 खान साहिब गुलाम कादिर खान, मिंयाँवाली उटर मुहम्मदन ग्रामीण।


160 चौधरी जहांगीर खान, ओकरा मुहम्मदन ग्रामीण।


161 मिंयाँ फैजल करीम बख़्श, मुजफ्फरगढ़ सदर, मुहम्मदन ग्रामीण।


162 मिंयाँ सुल्तान महमूद हतियाना, पाक पाटन, मुहम्मदन ग्रामीण।


163 चौधरी मुहम्मद अशरफ, दक्षिण पश्चिम  गुजरात मुहम्मदन ग्रामीण।


164 सरदार बलवंत सिंह, सियालकोट सिख ग्रामीण।


165 चौधरी सुमेर सिंह, दक्षिण पूर्व गुड़गांव सामान्य ग्रामीण।


166 सरदार जोगिंद्र सिंह मॉन, गुजरांवाला और शाहदरा सिख ग्रामीण।


167 चौधरी सूरज मल, हांसी सामान्य ग्रामीण।


168 सरदार जगजीत सिंह मॉन, सेंट्रल पंजाब लैंड होल्डर।


सात व्यक्ति दो दो विधानसभाओं से चुने गए थे, जिन के खाली पड़े पद बाद में भरे गए थे

ABHEYDAS DeOBAND

                

सोमवार, 8 फ़रवरी 2021

भारतवर्ष कैसे सोने की चिड़िया कहलाता है।

 


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सबसे पहले भारत वर्ष का नाम जम्मू दीप था और आज जिसका नाम भारतवर्ष है वह एक टुकड़ा मात्र है जिसे आर्यवर्त भी कहते हैं जम्मू दीप में पहले देव असुर थे और बाद में कुरू वंश
और पूरू वंश लड़ाई मैं भारतवर्ष बहुत खंडों में बांटा आपस में झगड़े के कारण टुकड़ों में बट गया जम्मू दीप धरती के बीचो बीच है जम्मू दीप का विस्तार 100000 योजन है जम्मू दीप पर जामुन के अधिक पेड़ होने के कारण इस द्वीप का नाम जम्मू  द्वीप पड़ा था इसमें छह पर्वत है.
1.प्लक्ष
2.शाल्मली
3.कुश
4. क्रॉच
5.शाक्य
6. पुष्कर
पुराणानुसार पृथ्वी के ये नौ खंड या ये विभाग, भारत, इलावृत्त, किंपुरुष, भद्र, केतुमाल, हरि, हिरण्य, रम्य और कुश।समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं 
मच्छेल।यवन की लड़ाई के कारण भारत जम्मू दीप में शरण दिए जाने लगे यहां हिंदू और जम्मू देवासी की आपस के मेल ना खाने और अपना हिंदुत्व को बढ़ावा देने से सभी आपस में अलग-अलग बट गए और फिर बौद्ध काल में यह मान सम्मान की लड़ाई अपने चरम सीमा पर पहुंच गई तब चाणक्य की बुद्धि से चंद्रगुप्त मौर्य की समझ से ज्ञान से भारतवर्ष का संपूर्ण विस्तार दोबारा से किया गया चंद्रगुप्त जी सभी को एक छत्र के नीचे लाने में सफल हुए इनके बाद सम्राट अशोक के बाद बृह्धृत को धोखे से मार कर उनसे सत्ता कब जाएगी और जितना भारत में धन था वह सब लूट लिया गया।
नोट,-अगर लेख में कोई त्रुटि हो तो उसे सही लिखकर भेजें
अभय दास देवबंद

सोमवार, 25 जनवरी 2021

सतगुरु समनदास ब्रह्मज्ञानी

                        सतनाम सतगुरु -


सतगुरु समनदास ब्रह्मज्ञानी अगमपुर के वासी पूर्ण अविनाशी।

धरती जब पाप के बोझ से कांपने लगती है, जलने लगती है मनुष्य ही मनुष्य को खाने लगता है मानवता खत्म हो जाती है दुनिया त्राहि-त्राहि मान हो जाती है डर ओर भय का खोप बढ जाता है तो उस समय उस अदृश्य शक्ति की याद आती है जो किसी ने न देखी ओर न पढ़ी हैं।

केवल बड़े बुजुर्गों के मुख से कहानी ओर किस्सो में सुनी है जिसे कुछ पढें लिखे लोग वैज्ञानिक उपकरणों के माध्यम से देखना ओर पकड़ना चाहते हैं जो कि असम्भव है क्योंकि वह अदृश्य शक्ति तो भौतिक एवं रासायनिक उपकरणों से ही नही बल्कि मानुष दिमाग की सोच बुद्धि और कल्पना से भी बहुत दूर है।। ये मानुष ओर मानुष के उपकरण उसे कैसे पकड़ सकते है अभी तक तो मानुष ने मानुष की ही खोज नही की है कितने पुर्जे बाड़ी में लगे हुए हैं और कैसे लगे किस किस रसायन के लगे हैं। और चैलेंज करता है उस अदृश्य शक्ति के अस्तित्व को।

छोडिये इन बातों को मै बात कर रहा था जब धरती पाप के बोझ से कांपने लगती है अपना संतुलन खोने लगती है तो दुनिया में प्रलय ओर महाप्रलय तक भी आ जाती है, आकाश भी अंगार उगलने लगता है जिसके कारण मानव सभ्यता भी नष्ट हो जाती है।

उसी प्रलय ओर महाप्रलय को रोकने के लिए वो अदृश्य शक्ति संतो के रूप में प्रकृट होती है जो मनुष्य को सत्य का बौद्ध कराती है और असत्य से हटाकर पुरुषार्थ और भक्ति के मार्ग पर लगाती है जिस कारण धरती ओर धरती पर रहने वाले मनुष्यों का जीवन बच जाता है।

 उस अदृश्य शक्ति को संतो की भाषा में सतगुरु कहते हैं। समय के अनुसार आते हैं और चले जाते हैं जैसे - - सतगुरु रविदास जी महाराज, सतगुरु समनदास जी महाराज, चेतादास जो महाराज, अष्टावक्र,ऐसे बहुत सारे संतो का आवागमन हुआ है जिनके अंदर वो अदृश्य शक्ति विराजमान रही है उसको केवल महसूस किया जा सकता है न कि देख पाये या उसे छू पाये।

ताजा उदाहरण सतगुरु स्वामी समनदास जी महाराज रहे हैं जिनको जानना व पढ पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था। लेकिन वे हर किसी को पढ लेते थे। वे हमेशा लोक ओर परलोक की बात करते थे।

आगे की अगली पोस्ट में करेंगे।

सतनाम सतगुरु

(स्टार फिल्म स्टूडियो देवबंद )

अभय दास 9358190235








गुरु की शरण में तेरा हीरा जन्म सुधर जाएगा