।। जीवन चार दिन का मेला रे।।
गुरु रविदास जी महाराज किसी जाति विशेष या धर्म विशेष के समर्थक नहीं थे, उन्होंने मानव निर्मित धर्मों, जातियों की बुराइयों का तर्कसंगत पोस्टमार्टम किया हुआ है। जिस में उन्होंने सभी प्रकार के आडंबरों, पाखंडों का खंडन किया है। भोले भाले लोगों को लूटने वाले ठगों, लुटेरों का बुरी तरह पर्दाफाश किया हुआ है। गुरुजी जीवन की वास्तविकता और सत्य को प्रकट करते हुए इस शब्द में फरमाते हैं, कि मनुष्य ही, मनुष्य को लूट कर, ठग कर बड़ी निर्दयतापूर्वक शोषण करता है, जबकि यह जीवन क्षणिक है।
जीवन चारि दिन का मेला रे।
बामन झूठा, वेद झूठा, झूठा ब्रह्म अकेला रे।।
गुरु रविदास जी महाराज फरमाते हैं, कि यह जीवन एक मेंला है, जो सिर्फ चार दिन का है और उस के बाद यह मेला अर्थात मनुष्य का मिलन समाप्त हो जाता है। ब्राह्मणों ने जो यह वेदों, पुराणों में सच झूठ लिख कर के संगत को मूर्ख बना कर लूट मचाई हुई है, उस के प्रति संगत को समझाया है कि, पंडित वेद और ब्रह्मा के नाम पर घड़ा गया ब्रह्म शब्द भी झूठ है।
मंदिर भीतर मूरति बैठी, पूजती बाहर चेला रे। लड्डू भोग चढ़ावति, मूरति के ढिग केला रे।।
गुरु रविदास जी महाराज फरमाते हैं, कि संगत को लूटने के लिए मंदिरों का निर्माण किया गया है और उन के बीच पत्थर की मूर्तियां स्थापित की गईं हैं, जिन की पुजारी खुद साफ, सफाई ना कर के अपने गुलाम चेलों से ही साफ सफाई और पूजा आदि का काम लेते हैं। लोग मूर्ति को लड्डुओं, प्रसाद आदि का भोग चढ़ाते हैं।मूर्तियों के पास सेव, संतरे केले आदि अर्पित करते हैं।
पत्थर मूरति कछु न खाति, खाते बामण चला रे।
जनता लुटती बामन सारे, प्रभु देति न धेला रे।।
गुरु रविदास जी महाराज ढोंगियों, पाखंडियों के पाखंडों, आडंबरों, कपटों को उजागर करते हुए, फरमाते हैं, कि मंदिर में स्थापित पत्थर की मूर्ति कुछ भी नहीं खाती है और केवल उस मंदिर के बीच बैठे गुरु और चेला ही खाते हैं। यह ब्राह्मण छल कपट कर के लोगों को ठगते हैं, जिस से जनता लूटी लूटी जा रही है, और परमपिता परमेश्वर को धेला अर्थात खोटा सिक्का तक नहीं देते हैं।
पाप पुण्य, पुनर्जन्म का, बामन दीना खेला रे। सवर्ग नरक बैकुंठ पधारो, गुरु शिष्य चेला रे।।
गुरु रविदास जी महाराज फरमाते हैं, कि ब्राह्मण तिलकधारियों ने, मनुष्य को पुनर्जन्म और पाप पुण्य के जाल में फंसा हुआ है, स्वर्ग नरक का मानसिक आतंक फैला कर के लोगों को डर से भयभीत किया हुआ है। स्वर्ग में भेजने के नाम पर गुरु और चेला लोगों को लूटते हैं और संगत को इस खेल के बीच उलझाया हुआ है।
जितना दान देवोगे, उतना निकसे तेला रे।
बामन जात बहकाए, जंह तँह मचे बबेला रे।।
तिलकधारी ब्राह्मणों ने लोगों को इस कदर अपनी ओर आकर्षित किया हुआ है, कि लोग उन के जाल में मच्छलियों की तरह फंस जाते हैं। दान लेने के लिए, लोगों को कहते हैं कि, जितना आप देंगे, उतना ही आप को प्रभु देंगे। जितना बीज कोहलू में डालोगे उतना ही तेल निकलेगा। मानसिक रूप से प्रताड़ित करते हुए तर्क देते हुए कहते हैं, जितना कोई बांटता है, उतना ही उसे मिलता है। ये ब्राह्मण जनता को लूटने के लिए बहकाते और फुसलाते हैं, अगर कोई उन का विरोध करे तो उस के खिलाफ जगह जगह पर बवाल पैदा करते हैं।
छोड़ि बामन अ संग मेरे, रविदास अकेला रे।
गुरु रविदास जी महाराज, सर्वश्रेष्ठ, सर्वोच्च इस ज्योतिर्मंडल के ज्योतिर्ज्ञान के सर्वोत्तम अकेले ज्योतिरपुंज गुरु हुए हैं। वे इन सब आडंबरों और पाखंडों का खंडन करते हुए, जनता को, संगत को समझाते हैं, कि हे मेरी प्रिय सँगते! इन ब्राह्मणों का साथ छोड़ कर के, मेरे पास आ जाओ, मैं अकेला हूं और मैं आप को इस जीवन को सुखी बनाने का मंत्र बताता हूं।
शब्दार्थ:-- चारि दिन-क्षणिक, कुछ समय का। मेला-मिलन, इकठ्ठ। बामन-यूरेशियन लोग। ब्रह्म-ब्रह्मा का वंशज, ब्रह्मा से ही ब्रह्म, ब्रह्मज्ञान, ब्रह्मपुत्र, ब्रह्मलीन, ब्राह्मण, ब्रह्मजोत आदि शब्द घड़े गए हैं, जो काल्पनिक यूरेशियन अति मानव के नाम पर शब्द शब्दकोश में लिखे गए हैं। चेला-पुजारी का शिष्य। ढिग-पास, मूर्ति के मुंह के समीप। धेला-पुराना सिक्का जो अब तुच्छ है। खेला-खेल। बैकुंठ-स्वर्ग का झांसा। निकसे-निकलना। तेला-तेल। मचे-शोर पड़ना। बहकाए-फुसलाना। बबेला-बबाल, बात का बतंगड़।
नोट:---इस शब्द को जनश्रुति के आधार पर लिखा गया है, क्योंकि गुरु जी के महानिर्वाण के बाद उन का सम्पूर्ण साहित्य ब्राह्मणों ने जला दिया था, जिस के कारण अनुयायियों ने अपने कंठस्थ शब्दों को अपनी भाषा में लिखा है। इस शब्द की भाषा शैली गुरु रविदास जी की भाषा शैली से मेल नहीं खाती है।
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