।।नामु तेरो आरती।।
।। राग धनासरी।
गुरु रविदास जी महाराज ने, विश्व के सभी धर्मों के नियमों और सिद्धांतों का अनुशीलन और गहन अध्ययन कर के अनुभव किया है, कि सभी धर्मों के प्रचारको ने अपने अपने पैगंबरों के गुणगान किए हैं और अपने अपने भगवानों की स्तुति में अपनी अपनी प्रार्थनाएं इजाद कर रखी हैं, जिन में कोई भी तर्कसंगत स्तुति नजर नहीं आती है, जो कुछ भी निरंकार को अर्पित करते हैं, वह सारे का सारा निरंकार द्वारा निर्मित है। निरंकार ने सृष्टि की रचना इस ढंग से की हुई है, कि एक प्राणी दूसरे प्राणी के ऊपर जीवन यापन करने के लिए निर्भर किया हुआ है, मगर उसी की दी हुई सामग्री को मनुष्य निरंकार को अर्पण कर के, अपनी भक्ति का थोथा प्रदर्शन करता है, इसलिए गुरु रविदास जी ने इन धर्मांध लोगों को उन की वास्तविकता का अहसास करवाते हुए कहा है, कि यह संसार "कूप भरिउ जैसे दादरा कछु देश विदेश न बूझ" अर्थात यह सारा संसार वैसे ही भरा हुआ है, जैसे कुएं के बीच मेंढक भरे हुए हैं, क्योंकि ये सभी मेंढक कुएं को ही अपना संसार मानते हैं, इसी प्रकार देश-विदेशों में रह रहे सभी धर्मों के लोग, संचालक भी सत्य को समझ बूझ नहीं सके हैं।
गुरु जी सृष्टि के सृजक के बारे में हमें बताते हैं कि, "एक ही एक अनेक हुई विस्थारिउ" अर्थात एक से ही धरती के ऊपर अनेक हुए हैं और उसी (आदपुरुष) से धरती पर समूचे प्राणी जगत का विस्तार हुआ है, फिर उसी की बनाई हुई वस्तुओं को मानव निरंकार को नैवेद्य कर के उसे प्रसन्न करने का प्रयास करता है, जो निरर्थक है। इसी लिए गुरु जी फरमाते हैं, कि हे परमपिता परमेश्वर अर्थात आदपुरुष धरती के ऊपर ऐसी कोई वस्तु नहीं है, जो आप को अर्पित की जा सके और ऐसा कोई शब्द भी नहीं है, जिस को संगीतमय कर के आप की आरती गाई जाए और आरती उतारी जाए। गुरुजी निम्नलिखित शब्दों में तर्कसंगत आरती सँगत को भेंट कर के, सँगत को उपकृत करते हैं:---
नामु तेरो आरती मजने मुरारे।।
हरि के नाम बिने झूठे सगल पसारे।।१।।रहाउ।।
गुरु रविदास जी महाराज ईश्वर की स्तुति में गाए जाने वाली सभी आरतियों को रद्द करते हुए फरमाते हैं, कि हे आदिपुरुष! यदि आप की स्तुति में गाई जाने वाली सभी आरतियों का तर्कसंगत और वास्तविकता के आधार पर विश्लेषण किया जाए, तो यही परिणाम सामने आता है कि, आप का नाम ही आरती है और आप के नाम का जाप करना ही मेरे लिए शाही स्नान है, इस के बिना सारी सृष्टि का प्रसार सब झूठ है।
नाम तेरो आसनों नामु तेरो उरसा
नामु तेरो केसरो लै छिटकारे।
नामु तेरो अंबुला नामु तेरो चन्दनो
घसि जपै नामु लै तुझहि कउ चारे।।१।।
गुरु रविदास महाराज, आदपुरुष को संबोधित करते हुए फरमाते हैं, कि हे आदपुरुष! आप का नाम ही भक्ति करने वाला आसन है और उरसा (सिला जिस के ऊपर तिलक लगाने के लिए चंदन घिसा जाता है) है। आप का नाम ही आप की मूर्ति के ऊपर छिड़का जाने वाला केसर है। आप का नाम ही पानी और चंदन है, जिन को सिला के ऊपर रगड़ कर, आप का नाम ले कर आप को (चारे) चढ़ाया जाता है अर्थात तिलक लगाया जाता है।
नामु तेरो दीवा नामु तेरो बाती
नामु तेरो तेलु लै माहि पसारे।।
नामु तेरो की जोति लगाई
भइउ उजिआरे भवन सगलारे।।२।।
गुरु रविदास जी महाराज फरमाते हैं कि हे परम पिता परमेश्वर! आपका नाम ही दीपक है और उस के बीच प्रज्वलित होने वाली बाती भी आप का ही नाम है। उस दीपक में जलने वाला तेल आप का ही नाम सिमरन है, आप के पवित्र नाम सिमरन की ज्योति ही दिए से निकलती है, जिस से सारा ज्योतिर्मंडल ही प्रकाशित होकर जगमग करता है।
नामु तेरो तागा नामु फूलमाला
भर अठारह सगल झुठारे।।
तेरो कीआ तुझहि कउ अरपउ
नामु तेरो तुहि चंवर ढोलारे।।३।।
गुरु रविदास जी महाराज फरमाते हैं, कि हे परम पिता परमेश्वर! आप का नाम ही धागा है और उस में गूंथे जाने वाले फूलों का समूह फूलमाला भी आप ही हैं। आप की पूजा के लिए अठारह प्रकार की वनस्पतियों को अर्पित करना सारा झूठ है। यह सब कुछ आप ने ही पैदा किया हुआ है, जिसे सांसारिक जीवों ने जूठा कर रखा है, जो आप को अर्पित करने की योग्य नहीं है। इसलिए हे आदिपुरुष! आप की पैदा की हुई सृष्टि में से किसी भी प्रकार की सामग्री आप को कैसे अर्पित करूं? यदि ऐसा करूं तो फिर मैं अपनी तरफ से आप को क्या अर्पित करूंगा? इसलिए मैं तन मन से आप के सिमरन की सत्य आरती कर के, आप के नाम रूपी चंवर को आप के ऊपर झुलाता हूं।
दस अठा अठसठे चारे खाणी
इहो बरतणी है सगल संसारे।।
कहै रविदास नामु तेरो आरती
सतिनामु है हरि भोग तुहारे।।४।।३।।
गुरु रविदास जी महाराज फरमाते हैं, कि हे परम पिता परमेश्वर! सारा संसार अठारह पुराणों में लिखी हुई, कल्पित झूठी कहानियों को ध्यान में रख कर के अठाहट तीर्थों का स्नान कर के चार प्रकार का खाना खा कर, संसार के लोग कैसा व्यवहार कर के, आप की कैसी पूजा करते हैं? अर्थात चार प्रकार का खाना खाने वाले सभी जीव पवित्र नहीं है, इसलिए उन का छुआ हुआ आप को अर्पित करना मेरे लिए उचित नहीं है। इसलिए हे परमपिता परमेश्वर आप का नाम ही आप की आरती उतारना है और सतनाम का जाप करना आप के लिए सच्ची श्रद्धा से भोग लगाना है।
पद अर्थ:-- आरती-हिंदू धर्म की रीति के अनुसार थाल के बीच दीवा आदि रख कर मूर्ति के आगे थाल को घुमाया जाता है और भजन गाए जाते हैं। मजनू-तीर्थों का स्नान। मुरार-प्रभु पसारे- खलार, आडंबर प्रसार। आसनों- कपड़ा जिस के ऊपर बैठ कर मूर्ति की पूजा की जाती है। उरसा- चंदन रगड़ना वाला पत्थर। अंबुला- पानी। चारे-चढ़ाना, अर्पित करना। माही-बीच। पसारे- प्रसारित, पाना। भवन-घर। सगला-सारी सृष्टि। भार अठारह- संसार की सारी वनस्पति के हर एक पौधे का एक-एक पता इकट्ठा कर के अठारह भार बनते हैं। अरपु-भेंट करना, तर्पण करना। ढोलारे-झुलाना। दस अठा- अठारह पुराण। अठ छठे- हिंदुओं के अठाहट तीरथ। चारे खाणी-चार प्रकार का खाना, अंडज, जेरज, स्वेतज, उतभुज जीवों का भोजन।