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शनिवार, 18 सितंबर 2021

           ।।नामु तेरो आरती।।

             ।। राग धनासरी।



गुरु रविदास जी महाराज ने, विश्व के सभी धर्मों के  नियमों और सिद्धांतों का अनुशीलन और गहन अध्ययन कर के अनुभव किया है, कि सभी धर्मों के प्रचारको ने अपने अपने पैगंबरों के गुणगान किए हैं और अपने अपने भगवानों की स्तुति में अपनी अपनी प्रार्थनाएं इजाद कर रखी हैं, जिन में कोई भी तर्कसंगत स्तुति नजर नहीं आती है, जो कुछ भी निरंकार को अर्पित करते हैं, वह सारे का सारा निरंकार द्वारा निर्मित है। निरंकार ने सृष्टि की रचना इस ढंग से की हुई है, कि एक प्राणी दूसरे प्राणी के ऊपर जीवन यापन करने के लिए निर्भर किया हुआ है, मगर उसी की दी हुई सामग्री को मनुष्य निरंकार को अर्पण कर के, अपनी भक्ति का थोथा प्रदर्शन करता है, इसलिए गुरु रविदास जी ने इन धर्मांध लोगों को उन की वास्तविकता का अहसास करवाते हुए कहा है, कि यह संसार "कूप भरिउ जैसे दादरा कछु देश विदेश न बूझ" अर्थात यह सारा संसार वैसे ही भरा हुआ है, जैसे कुएं के बीच मेंढक भरे हुए हैं, क्योंकि ये सभी मेंढक कुएं को ही अपना संसार मानते हैं, इसी प्रकार देश-विदेशों में रह रहे सभी धर्मों के लोग, संचालक भी सत्य को समझ बूझ नहीं सके हैं।

गुरु जी सृष्टि के सृजक के बारे में हमें बताते हैं कि, "एक ही एक अनेक हुई विस्थारिउ" अर्थात एक से ही धरती के ऊपर अनेक हुए हैं और उसी (आदपुरुष) से धरती पर समूचे प्राणी जगत का विस्तार हुआ है, फिर उसी की बनाई हुई वस्तुओं को मानव निरंकार को नैवेद्य कर के उसे प्रसन्न करने का प्रयास करता है, जो निरर्थक है। इसी लिए गुरु जी फरमाते हैं, कि  हे परमपिता परमेश्वर अर्थात आदपुरुष धरती के ऊपर ऐसी कोई वस्तु नहीं है, जो आप को अर्पित की जा सके और ऐसा कोई शब्द भी नहीं है, जिस को संगीतमय कर के आप की आरती गाई जाए और आरती उतारी जाए। गुरुजी निम्नलिखित शब्दों में तर्कसंगत आरती सँगत को भेंट कर के, सँगत को उपकृत करते हैं:---

नामु तेरो आरती मजने मुरारे।। 

हरि के नाम बिने झूठे सगल पसारे।।१।।रहाउ।।

गुरु रविदास जी महाराज ईश्वर की स्तुति में गाए जाने वाली सभी आरतियों को रद्द करते हुए फरमाते हैं, कि हे आदिपुरुष! यदि आप की स्तुति में गाई जाने वाली सभी आरतियों का तर्कसंगत और वास्तविकता के आधार पर विश्लेषण किया जाए, तो यही परिणाम सामने आता है कि, आप का नाम ही आरती है और आप के नाम का जाप करना ही मेरे लिए शाही स्नान है, इस के बिना सारी सृष्टि का प्रसार सब झूठ है।

नाम तेरो आसनों नामु तेरो उरसा

नामु तेरो केसरो लै छिटकारे।

नामु तेरो अंबुला नामु तेरो चन्दनो

घसि जपै नामु लै तुझहि कउ चारे।।१।।

गुरु रविदास महाराज, आदपुरुष को संबोधित करते हुए फरमाते हैं, कि हे आदपुरुष! आप का नाम ही भक्ति करने वाला आसन है और उरसा (सिला जिस के ऊपर तिलक लगाने के लिए चंदन घिसा जाता है) है। आप का नाम ही आप की मूर्ति के ऊपर छिड़का जाने वाला केसर है। आप का नाम ही पानी और चंदन है, जिन को सिला के ऊपर रगड़ कर, आप का नाम ले कर आप को (चारे) चढ़ाया जाता है अर्थात तिलक लगाया जाता है। 

नामु तेरो दीवा नामु तेरो बाती

नामु तेरो तेलु लै माहि पसारे।।

नामु तेरो की जोति लगाई

भइउ उजिआरे भवन सगलारे।।२।।

गुरु रविदास जी महाराज फरमाते हैं कि हे परम पिता परमेश्वर! आपका नाम ही दीपक है और उस के बीच प्रज्वलित होने वाली बाती भी आप का ही नाम है। उस दीपक में जलने वाला तेल आप का ही नाम सिमरन है, आप के पवित्र नाम सिमरन की ज्योति ही दिए से निकलती है, जिस से सारा ज्योतिर्मंडल ही प्रकाशित होकर जगमग करता है।

नामु तेरो तागा नामु फूलमाला

भर अठारह सगल झुठारे।।

तेरो कीआ तुझहि कउ अरपउ

नामु तेरो तुहि चंवर ढोलारे।।३।।

गुरु रविदास जी महाराज फरमाते हैं, कि हे परम पिता परमेश्वर! आप का नाम ही धागा है और उस में गूंथे जाने वाले फूलों का समूह फूलमाला भी आप ही हैं। आप की पूजा के लिए अठारह प्रकार की वनस्पतियों को अर्पित करना सारा झूठ है। यह सब कुछ आप ने ही पैदा किया हुआ है, जिसे सांसारिक जीवों ने जूठा कर रखा है, जो आप को अर्पित करने की योग्य नहीं है। इसलिए हे आदिपुरुष! आप की पैदा की हुई सृष्टि में से किसी भी प्रकार की सामग्री आप को कैसे अर्पित करूं? यदि ऐसा करूं तो फिर मैं अपनी तरफ से आप को क्या अर्पित करूंगा? इसलिए मैं तन मन से आप के सिमरन की सत्य आरती कर के, आप के नाम रूपी चंवर को आप के ऊपर झुलाता हूं।

दस अठा अठसठे चारे खाणी

इहो बरतणी है सगल संसारे।।

कहै रविदास नामु तेरो आरती

सतिनामु है हरि भोग तुहारे।।४।।३।।

गुरु रविदास जी महाराज फरमाते हैं, कि हे परम पिता परमेश्वर! सारा संसार अठारह पुराणों में लिखी हुई, कल्पित झूठी कहानियों को ध्यान में रख कर के अठाहट तीर्थों का स्नान कर के चार प्रकार का खाना खा कर, संसार के लोग कैसा व्यवहार कर के, आप की कैसी पूजा करते हैं? अर्थात चार प्रकार का खाना खाने वाले सभी जीव पवित्र नहीं है, इसलिए उन का छुआ हुआ आप को अर्पित करना मेरे लिए उचित नहीं है। इसलिए हे परमपिता परमेश्वर आप का नाम ही आप की आरती उतारना है और सतनाम का जाप करना आप के लिए सच्ची श्रद्धा से भोग लगाना है।

पद अर्थ:-- आरती-हिंदू धर्म की रीति के अनुसार थाल के बीच दीवा आदि रख कर मूर्ति के आगे थाल को घुमाया जाता है और भजन गाए जाते हैं। मजनू-तीर्थों का स्नान। मुरार-प्रभु पसारे- खलार, आडंबर प्रसार। आसनों- कपड़ा जिस के ऊपर बैठ कर मूर्ति की पूजा की जाती है। उरसा- चंदन रगड़ना वाला पत्थर। अंबुला- पानी। चारे-चढ़ाना, अर्पित करना। माही-बीच। पसारे- प्रसारित, पाना। भवन-घर। सगला-सारी सृष्टि। भार अठारह- संसार की सारी वनस्पति के हर एक पौधे का एक-एक पता इकट्ठा कर के अठारह भार बनते हैं। अरपु-भेंट करना, तर्पण करना। ढोलारे-झुलाना। दस अठा- अठारह पुराण। अठ छठे- हिंदुओं के अठाहट तीरथ। चारे खाणी-चार प्रकार का खाना, अंडज, जेरज, स्वेतज, उतभुज जीवों का भोजन।

 

जीवन चार दिन का मेला रे

      ।। जीवन चार दिन का मेला रे।।


गुरु रविदास जी महाराज किसी जाति विशेष या धर्म विशेष के समर्थक नहीं थे, उन्होंने मानव निर्मित धर्मों, जातियों की बुराइयों का तर्कसंगत पोस्टमार्टम किया हुआ है। जिस में उन्होंने सभी प्रकार के आडंबरों, पाखंडों का खंडन किया है। भोले भाले लोगों को लूटने वाले ठगों, लुटेरों का बुरी तरह पर्दाफाश किया हुआ है। गुरुजी जीवन की वास्तविकता और सत्य को प्रकट करते हुए इस शब्द में फरमाते हैं, कि मनुष्य ही, मनुष्य को लूट कर, ठग कर बड़ी निर्दयतापूर्वक शोषण करता है, जबकि यह जीवन क्षणिक है।

जीवन चारि दिन का मेला रे।

बामन झूठा, वेद झूठा, झूठा ब्रह्म अकेला रे।।

गुरु रविदास जी महाराज फरमाते हैं, कि यह जीवन एक मेंला है, जो सिर्फ चार दिन का है और उस के बाद यह मेला अर्थात मनुष्य का मिलन समाप्त हो जाता है। ब्राह्मणों ने जो यह वेदों, पुराणों में सच झूठ लिख कर के संगत को मूर्ख बना कर लूट मचाई हुई है, उस के प्रति संगत को समझाया है कि, पंडित वेद और ब्रह्मा के नाम पर घड़ा गया ब्रह्म शब्द भी झूठ है।

मंदिर भीतर मूरति बैठी, पूजती बाहर चेला रे। लड्डू भोग चढ़ावति, मूरति के ढिग केला रे।।

गुरु रविदास जी महाराज फरमाते हैं, कि संगत को लूटने के लिए मंदिरों का निर्माण किया गया है और उन के बीच पत्थर की मूर्तियां स्थापित की गईं हैं, जिन की पुजारी खुद साफ, सफाई ना कर के अपने गुलाम चेलों से ही साफ सफाई और पूजा आदि का काम लेते हैं। लोग मूर्ति को लड्डुओं, प्रसाद आदि का भोग चढ़ाते हैं।मूर्तियों के पास सेव, संतरे केले आदि अर्पित करते हैं।

पत्थर मूरति कछु न खाति, खाते बामण चला रे।

जनता लुटती बामन सारे, प्रभु देति न धेला रे।।

गुरु रविदास जी महाराज ढोंगियों, पाखंडियों के पाखंडों, आडंबरों, कपटों को उजागर करते हुए, फरमाते हैं, कि मंदिर में स्थापित पत्थर की मूर्ति कुछ भी नहीं खाती है और केवल उस मंदिर के बीच बैठे गुरु और चेला ही खाते हैं। यह ब्राह्मण छल कपट कर के लोगों को ठगते हैं, जिस से जनता लूटी लूटी जा रही है, और परमपिता परमेश्वर को धेला अर्थात खोटा सिक्का तक नहीं देते हैं। 

पाप पुण्य, पुनर्जन्म का, बामन दीना खेला रे। सवर्ग नरक बैकुंठ पधारो, गुरु शिष्य चेला रे।।

गुरु रविदास जी महाराज फरमाते हैं, कि ब्राह्मण तिलकधारियों ने, मनुष्य को पुनर्जन्म और पाप पुण्य के जाल में फंसा हुआ है, स्वर्ग नरक का मानसिक आतंक फैला कर के लोगों को डर से भयभीत किया हुआ है। स्वर्ग में भेजने के नाम पर गुरु और चेला लोगों को लूटते हैं और संगत को इस खेल के बीच उलझाया हुआ है।

जितना दान देवोगे, उतना निकसे तेला रे।

बामन जात बहकाए, जंह तँह मचे बबेला रे।।

तिलकधारी ब्राह्मणों ने लोगों को इस कदर अपनी ओर आकर्षित किया हुआ है, कि लोग उन के जाल में मच्छलियों की तरह फंस जाते हैं। दान लेने के लिए, लोगों को कहते हैं कि, जितना आप देंगे, उतना ही आप को प्रभु देंगे। जितना बीज कोहलू में डालोगे उतना ही तेल निकलेगा। मानसिक रूप से प्रताड़ित करते हुए तर्क देते हुए कहते हैं, जितना कोई बांटता है, उतना ही उसे मिलता है। ये ब्राह्मण जनता को लूटने के लिए बहकाते और फुसलाते हैं, अगर कोई उन का विरोध करे तो उस के खिलाफ जगह जगह पर बवाल पैदा करते हैं।

छोड़ि बामन अ संग मेरे, रविदास अकेला रे। 

गुरु रविदास जी महाराज, सर्वश्रेष्ठ, सर्वोच्च इस ज्योतिर्मंडल के ज्योतिर्ज्ञान के सर्वोत्तम अकेले ज्योतिरपुंज गुरु हुए हैं। वे इन सब आडंबरों और पाखंडों का खंडन करते हुए, जनता को, संगत को समझाते हैं, कि हे मेरी प्रिय सँगते! इन ब्राह्मणों का साथ छोड़ कर के, मेरे पास आ जाओ, मैं अकेला हूं और मैं आप को इस जीवन को सुखी बनाने का मंत्र बताता हूं।

शब्दार्थ:-- चारि दिन-क्षणिक, कुछ समय का। मेला-मिलन, इकठ्ठ। बामन-यूरेशियन लोग। ब्रह्म-ब्रह्मा का वंशज, ब्रह्मा से ही ब्रह्म, ब्रह्मज्ञान, ब्रह्मपुत्र, ब्रह्मलीन, ब्राह्मण, ब्रह्मजोत आदि शब्द घड़े गए हैं, जो काल्पनिक यूरेशियन अति मानव के नाम पर शब्द शब्दकोश में लिखे गए हैं। चेला-पुजारी का शिष्य। ढिग-पास, मूर्ति के मुंह के समीप। धेला-पुराना सिक्का जो अब तुच्छ है। खेला-खेल। बैकुंठ-स्वर्ग का झांसा। निकसे-निकलना। तेला-तेल। मचे-शोर पड़ना। बहकाए-फुसलाना। बबेला-बबाल, बात का बतंगड़।

नोट:---इस शब्द को जनश्रुति के आधार पर लिखा गया है, क्योंकि गुरु जी के महानिर्वाण के बाद उन का सम्पूर्ण साहित्य ब्राह्मणों ने जला दिया था, जिस के कारण अनुयायियों ने अपने कंठस्थ शब्दों को अपनी भाषा में लिखा है। इस शब्द की भाषा शैली गुरु रविदास जी की भाषा शैली से मेल नहीं खाती है।