ऐसा भी कहा जाता है
जिस श्री कृष्ण जी के मंदिर में मीराबाई पूजा करने जाती थी, उसके मार्ग में एक छोटा बगीचा था। उसमें कुछ घनी छाया वाले वृक्ष भी थे। उस बगीचे में भगतों के साथ संत रविदास जी सत्संग कर रहे थे। सुबह के लगभग 10 बजे का समय था। मीरा जी ने देखा कि इन संत से तो मैं पहले भी मिल चुकी हूं और मीरा बाई देखती है कि यह संत शिरोमणि सतगुरु रविदास जी महाराज है जिन्होंने मुझे एक बार पहले गिरधर नागर की तस्वीर भी दी थी चलो आज फिर इनसे भेंट करते यहाँ परम पिता परमात्मा की चर्चा या कथा चल रही है। कुछ देर सुनकर चलते हैं।
संत रविदास जी ने सत्संग में संक्षिप्त सृष्टि रचना का ज्ञान सुनाया। कहा कि श्री कृष्ण जी यानि श्री विष्णु जी से ऊपर अन्य सर्वशक्तिमान परमात्मा है।
यदि भगति करने के बाद भी जन्म-मरण समाप्त नहीं हुआ तो भक्ति करना न करना समान है। जन्म-मरण तो श्री कृष्ण जी (श्री विष्णु) का भी समाप्त नहीं हुआ।। फिर
उसके पुजारियों का कैसे होगा। जैसे हिन्दू संतजन कहते हैं कि गीता का ज्ञान श्री कृष्ण अर्थात् श्री विष्णु जी ने अर्जुन को बताया। गीता ज्ञानदाता गीता अध्याय 2 श्लोक 12, अध्याय 4 श्लोक 5, अध्याय 10 श्लोक 2 में स्पष्ट कर रहा है कि हे अर्जुन! तेरे और मेरे बहुत जन्म हो चुके हैं। तू नहीं जानता, मैं जानता हूँ। इससे स्वसिद्ध है कि श्री कृष्ण जी का भी जन्म-मरण समाप्त नहीं है। यह अविनाशी नहीं है। इसीलिए गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में गीता बोलने वाले ने कहा है कि हे पारथ! तू सर्वभाव से उस परमेश्वर की शरण में जा। उस परमेश्वर की कृपा से ही तू सनातन परम धाम को तथा परम शांति को प्राप्त होगा।
संत रविदास जी के मुख कमल से ये वचन सुनकर परमात्मा के लिए भटक रही मिरा बाई कि आत्मा को नई रोशनी मिली। सत्संग के उपरांत मीराबाई जी ने जगत गुरु रविदास महाराज से प्रसन्न किया कि हे satguru Ravidas ji Maharaj जी! यदि आपकी आज्ञा हो तो मेरा एक प्रश्न है।मेरी शंका का समाधान करो। सतं रविदास जी ने कहा कि प्रश्न करो पुत्री!
प्रश्न:- हे गुरू जी! आज तक मैनें किसी से नहीं सुना कि श्री कृष्ण जी से ऊपर भी कोई परमात्मा है। आज आपके मुख से सुनकर मैं दोराहे पर खड़ी हो गई हूँ। मैं मानती हूँ कि संत झूठ नहीं बोलते। संत रविदास जी ने कहा कि आपके धार्मिक अज्ञानी गुरूओं का दोष है जिन्हें स्वयं ज्ञान नहीं कि आपके सद्ग्रन्थ क्या ज्ञान बताते हैं? देवी पुराण के तीसरे स्कंद में श्री विष्णु जी स्वयं स्वीकारते हैं कि मैं (विष्णु), ब्रह्मा तथा शंकर नाशवान हैं। हमारा आविर्भाव (जन्म) तथा तिरोभाव (मृत्यु) होता रहता है।
मीराबाई बोली कि हे महाराज जी! भगवान श्री कृष्ण मुझे साक्षात दर्शन देते हैं। मैं उनसे संवाद करती हूँ। संत रविदास जी ने कहा कि हे मीराबाई ! आप एक काम करो। भगवान श्री कृष्ण जी से ही पूछ लेना कि आपसे ऊपर भी कोई मालिक है। वे देवता हैं, कभी झूठ नहीं बोलेंगे। मीराबाई को लगा कि वह पागल हो जाएगी यदि श्री कृष्ण जी से भी ऊपर कोई परमात्मा है ।
रात्रि में मीरा जी ने भगवान श्री कृष्ण जी का आह्वान किया। त्रिलोकी नाथ प्रकट हुए। मीरा ने अपनी शंका के समाधान के लिए निवेदन किया कि हे प्रभु! क्या आपसे ऊपर भी कोई परमात्मा है। एक संत ने सत्संग में बताया है। श्री कृष्ण जी ने कहा कि मीरा! परमात्मा तो है, परंतु वह किसी को दर्शन नहीं देता। हमने बहुत समाधि व साधना करके देख ली है। मीराबाई जी ने सत्संग में संत रविदास जी से यह भी सुना था कि उस पूर्ण परमात्मा को मैं प्रत्यक्ष दिखाऊँगा। सत्य साधना करके उसके पास सतलोक में भेज दूँगा। मीराबाई ने श्री कृष्ण जी से फिर प्रश्न किया कि क्या आप जीव का जन्म-मरण समाप्त कर सकते हो? श्री कृष्ण जी ने कहा कि यह संभव नहीं। संत रविदास जी ने कहा था कि मेरे पास ऐसा भक्ति मंत्र है जिससे जन्म-मरण सदा के लिए समाप्त हो जाता है। वह परमधाम प्राप्त होता है जिसके विषय में गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि तत्वज्ञान तथा तत्वदर्शी संत की प्राप्ति के पश्चात् परमात्मा के उस परमधाम की खोज करनी चाहिए जहाँ जाने के पश्चात् साधक फिर लौटकर संसार में कभी नहीं आते। उसी एक परमात्मा की भक्ति करो। मीराबाई ने कहा कि हे भगवान श्री कृष्ण जी! संत जी कह रहे थे कि मैं जन्म-मरण समाप्त कर देता हूँ। अब मैं क्या करूं। मुझे तो पूर्ण मोक्ष की चाह है। श्री कृष्ण जी बोले कि मीरा! आप उस संत की शरण ग्रहण करो, अपना कल्याण कराओ। मुझे जितना ज्ञान था, वह बता दिया। मीरा अगले दिन मंदिर नहीं गई। सीधी संत जी के पास अपनी नौकरानियों के साथ गई तथा दीक्षा लेने की इच्छा व्यक्त की तथा श्री कृष्ण जी से हुई वार्ता भी संत रविदास जी से साझा की। उस समय छूआछात चरम पर थी। ठाकुर लोग अपने को सर्वोत्तम मानते थे। परमात्मा मान-बड़ाई वाले प्राणी को कभी नहीं मिलता। मीरा जी तुरंत रविदास जी के पास गई और बोली, संत जी! मुझे दीक्षा देकर मेरा कल्याण करो। संत रविदास जी ने बताया कि बेटी ! मैं चमार जाति से हूँ। आप ठाकुरों की बेटी हो। आपके समाज के लोग आपको बुरा-भला कहेंगे। जाति से बाहर कर देंगे। पहले आप विचार कर लें। मीराबाई अधिकारी आत्मा थी। परमात्मा के लिए मर-मिटने के लिए सदा तत्पर रहती थी। बोली, संत जी! आप मेरे पिता, मैं आपकी बेटी। मुझे दीक्षा दो। भाड़ में पड़ो समाज। कल को जब मैं अनेकों प्रकार की योनियों में भटक कर नर्क भोगूगीं , तब यह ठाकुर समाज मेरा क्या बचाव करेगा?
मीराबाई ने गुरु पर अटूट विश्वास किया और निर्गुण भक्ति की जिसे आज मीरा की ख्याति देश विदेश में फैली हुई है
श्री कृष्ण जी के मंदिर में मीराबाई पूजा करने जाती थीं क्योंकि वह श्री कृष्ण को अपने पति के रूप में अपने दिमाग में और अपने दिल में बसा चुकी थी । जब मीरा बाल्यावस्था मैं थी उस वक्त उसकी मां छत पर घी मथ रही थी और मीरा अपनी मां के साथ खेल रही थी तभी रास्ते से एक बारात दूल्हे राजा के साथ जा रही थी तभी मीरा ने देखा तो वह अपनी मां से कहने लगी कि मां इतने आदमी बैंड बाजे के साथ और यह एक आदमी घोड़ी पर बैठा जा रहा है यह कहां जा रहा है और कौन है तब उसकी माता कहती है कि बेटा यह दूल्हा है और यह बारात है यह गांव में बरात आई है इसी तरह बैठे तेरी भी बारात आएगी एक दिन तभी मीरा कहती है कि अगर मेरी बारात आएगी तो मेरा दूल्हा कैसा होगा एक बार उसकी मां इस बात को इग्नोर कर देती है मगर मीरा फिर पूछती है अब सोचने लगती है अब मैं क्या उत्तर दु । सामने मंदिर में जो घर में पूजा घर होता है वहां गिरिधर नागर अर्थात कृष्ण भगवान की तस्वीर रखी थी उसकी मां ने इशारा करते हुए कहा कि बेटा तुम्हारा दूल्हा ऐसा होगा जैसे गिरधर नागर इतना सुंदर तब मीरा ने बाल्यावस्था से ही गिरधर नागर को अपना पति मान लिया था और हमेशा उनको अपना पति के रूप मैं ही उनकी पूजा की लेकिन जब गुरु रविदास जी महाराज से भेंट हुई तब उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान हुआ और उन्होंने आध्यात्मिक गुरु सतगुरु रविदास जी महाराज को बनाया।
जय गुरु रविदास ।। जयगुरु समन दास।।
*Abhay das ji Deoband*