।।राजा बलि, शुक्राचार्य और अरब देशों का इतिहास।।
भारतवर्ष के, मूलनिवासी शासकों की फ़ितरत रही है कि, वे हमेशा ही मिल कर नहीं रहे हैं, ये फ़ितरत आज भी जारी है। राजा बलि भी इसी कड़ी का एक जिद्दी राजा था, जिस ने दानवीर बनने के लिए, अपने दूरद्रष्टा गुरु शुक्राचार्य के आदेश को नहीं माना था और विष्णु के, छल प्रपंच से खुद तो मारा ही था, साथ में अपने तीव्र बुद्धि, गुरु शुक्राचार्य जी को भी ले डूबा और भारत के मूलनिवासी लोगों को भी गुलामी की जंजीरों के बंधनों में बॉन्ध दिया था। तत्कालीन मूलनिवासी शासक मक्का मदीना से चल रही केंद्रीय सरकार के अधीन शासन करते थे, यदि ये राजा अपने राजधर्म को समझते हुए, राजधर्म के अनुसार शासन करते तो राजा बलि और उन के गुरु शुक्राचार्य की दुर्गति नहीं हो सकती थी। वे विष्णु और लक्ष्मी को प्रश्रय देने की गलती ना करते तो शुक्राचार्य भी काणा ना होता और ना ही उन्हें केरल नगरी छोड़ कर, सत नगरी मक्का मदीना जाना पड़ता।
शुक्राचार्य और अरब का संबंध:---जब राजा बलि ने, अपनी दानवीरता का अहम नही छोड़ा, तब गुरु शुक्राचार्य केरल को त्याग कर, मक्का मदीना चले गए थे। वे वहां अपने पौत्र और्ब उर्फ अर्व्ब उर्फ हर्ब के पास जा कर रहने लगे थे। शुक्राचार्य वहां पर दस वर्षों तक रहे थे। साइक्स नामक विदेशी लेखक अपनी पुस्तक "हिस्ट्री आफ पर्शिया" में, लिखते हैं कि, और्ब, अर्व्ब, हर्ब शब्द के अपभ्रंश रूप बनते बनते ये शब्द अरब बन गया है। शुक्राचार्य का संबंध पौत्र हर्ब के नाम से इतिहास बन चुका है, जो तर्कसंगत, तर्कसम्मत लगता है, क्योंकि मक्का मदीना से ही सत्पुरुष सम्राट कैलाश जी और उन के पुत्र सिद्धचानो जी महाराज और मातेश्वरी साम्राज्ञी लोना जी ही शासन करते थे। उन्हीं के अधीन कन्याकुमारी तक राज चलता था, मगर उन के बाद केंद्रीय सत्ता कमजोर होती गई, सम्राट शिव भी ईश्वर के अंध भगत अधिक बन गए थे, जिस के कारण, यूरेशियन आक्रांताओं ने, उन की दरियादिली और शराफत का नाजायज लाभ उठाया। उन की साम्राज्ञी गौरजां उर्फ गौरां का कत्ल करबा कर, अपनी पुत्री पार्वती से, शिव को धीमा विष और भांग पिला पिला कर शहीद करवा दिया गया था। राजा बलि ने भी अपनी दानवीरता की जिद्द में अड़े रह कर, दक्षिण भारत का शासन खो दिया था।
वर्तमान मुस्लिम देश अरब:---राजा बलि की मूर्खता के कारण ही शुक्राचार्य जी को, केरल छोड़ना पड़ा था, क्योंकि मूर्ख लोग अपनी जिद्द के कारण अपने गुरु को भी डुबो देते है, इसी लिये शुक्राचार्य समझ गए थे कि, ये आदमी खुद भी डूबेगा और मुझे भी डुबो देगा, हुआ भी ऐसा ही, मगर वे अपनी जान बचा कर मक्का मदीना चले गए। वहीं अपने पौत्र और्ब के पास दस वर्ष तक रहते रहे, इसी पौत्र के नाम के कई अपभ्रंश शब्द बनते बनते अरब शब्द बन गया था, जिस से विशाल भारत का खण्ड अरब देश कहलाता आ रहा है। जिस के बाद अरब भूभाग के भी कई टुकड़े हो गए, जिन्हें आज मुस्लिम अरब देश कहा जा रहा है।
जिस प्रकार, हठी, अहंकारी राजा बलि ने, अपने गुरु शुक्राचार्य का कहा नहीं माना, ठीक वैसा ही इतिहास भारत मे बार बार दोहराया जा रहा है। वर्तमान में, साहिब कांशीराम जी भी, शुक्राचार्य का ही प्रतिरूप हुए हैं, उन्होंने भी, सारे भारत के, मूलनिवासी राजनेताओं कल्याण सिंह, लालू यादव, मुलायम सिंह यादव, पासवान आदि को एक झंडे तले इकठ्ठा करने का प्रयास किया मगर, ये राजा बलि के वंशज नहीं सुधरे और नित नई नई राजनीतिक पार्टियां बना कर, ब्रह्मा, विष्णु के वंशजों की ही सरकारें बना रहे हैं। ये अहंकारी राजनेता मूलनिवासी बोटों को बांट कर, खुद तो गुलाम बन ही रहे मगर साथ में, असहाय मूलभारतीयों को भी मनुवादियों के गुलाम बना रहे हैं। जा जाने ये दानवीर बलि, महाराजा नंद के वंशज राजनेता कब समझेंगे।
रामसिंह आदवंशी।
अध्यक्ष।
विश्व आदधर्म मंडल।
Abheya Das Deoand