रजब दास सतगुरु रविदास जी महाराज के परम शिष्य हुए हैं जो इस्लाम धर्म में पैदा हुए थे लेकिन वह बचपन से ही संत रविदास जी के पास बैठकर सत्संग सुना करते थे कुछ समय बीत गया जब रजब दास जवान हुए तो उनके पिता ने सोचा कि कहीं यह संत रविदास हमारे बेटे को फकीर ना बना दे यह सोचकर रजब दास की शादी रचाने लगते हैं और बरात जाकर उस रास्ते से गुजरे जहां संत रविदास जी आश्रम में बैठे थे जब रजब दास की बारात रविदास आश्रम के सामने आई तो संत रविदास जी भक्तों से पूछने लगते हैं कि क्या बात हो रही है तो एक शिष्य बताया कि गुरु जी आपके शिष्य की बारात जा रही है तब गुरु रविदास जी ने देखा की रजब दास के सर पर सेहरा बंधा हुआ है उस वक्त गुरु रविदास जी ने रविदास को अपनी वाणी के द्वारा क्या प्रेरणा दी l
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रजब रे गजब किया सिर बंधाया मोड
हम ले जाते सतलोक में तू चला नरक की औड
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इतना सुनते ही रजब ने सिर से सेहरा उतार कर फेंक देते हैं लोगों ने बहुत समझाया लेकिन किसी की भी एक ना माने गुरु रविदास जी के चरणों में माफी मांगी और गुरु जी का पूरा बैरागी हो गया उस मालिक ने जो लिख दिया हो ना तो वही था और हुआ भी वही फिर तो वह गुरु जी की सेवा में बराबर लगा रहा और उपदेश सुनता रहा।
एक दिन रजब गुरु रविदास जी से कहने लगते हैं कि गुरु जी सब लोग कहते हैं कि रविदास महाराज में संपूर्ण कला समर्थ है गुरु जी दया करके मुझे भी संपूर्ण कलाओं का ज्ञान करा दो रविदास जी महाराज ने कहां की स्थिर होकर ध्यान से सुनो
रजब दास ने गुरुजी से प्रसन्न किया जी गुरु जी इस जीव के पास कितनी कला है तब रविदास जी महाराज कहने लगे मन मुखी जीव के पास कोई कला नहीं होती केवल इसके पास में एक कला होती है मैं बाकी वह भी न के समान इसके कहने से दृष्टि कला बिना सतगुरु के सत्य असत्य की पहचान नहीं होती सतगुरु के आश्रय मेंं आकर साधना करने से कलाा बढ़नी शुरू हो जाती है इसे दृष्टि कला कहते हैं सच्ची दृष्टि के सामने झूठी बात तब दब जाती है रजब गुरु से कहते हैं कि अब हम तुम्हेंं संपूर्णण कलाओं का ज्ञान कराते हैं समाधि मैं होकर कर सुनो प्रथम कला हमने कही है
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कला, 2- दृष्टि सुनो संत सुजान
रविदास निर्णय करें पारख में पहचान।।
इसका भावार्थ है:-
आंखों को दृष्टि कहते हैं जब तक सच्ची दृष्टि से देखता रहेगा तब तक दृष्टि की समर्थता सत्य बनी रहेगी क्योंकि सच्ची दृष्टि वाले के सामने झूठी बात मिट जाएगी इसी को दृष्टि कला कहते हैं।
हे रजब शिष्य पद मैं 17 कला होती है जब तक सिस्टर के पास 17 कला नया हो तो उसे किसी को भी उपदेश देने का हक नहीं होता जब 17 कला संपूर्ण हो जाए एक दूसरे को उपदेश करने का अधिकार है
रजब ने गुरुजी से फिर पूछा गुरु पद में कितनी कला होती है गुरुजी ने रजब से कहा कि सतगुरु पद में अनंत अपार असीमित कला होती है सतगुरु ईश्वर सतगुरु ही संत परमातम होते हैं
कला:-3 : सरवण कला निर्णय करो रजब सुना चित्त देव
सरवण का आहार शब्द है शब्द ही है सबका देव
भावार्थ है:- जब श्रवण सतगुरु का शब्द सुनता है तो सुनते ही शिष्य के ऊपर नूर चढ़ जाता है और पाप कट जाता है तो श्रवण कला हो जाती है इसी का नाम सरवन कला कहलाता है ।
कला 3:- मनन मान मर्यादा है सब संतों का है लेख
रविदास कहीं निर्णय करें रख मान मर्यादा की टेक
भावार्थ है:- मान मर्यादा का खेल है बिना मान मर्यादा के सब कुछ बेकार है बिना मान मर्यादा के कुछ भी कार्य नहीं कर सकते मान मर्यादा से सब ऋषि मुनि संत महंत राजा प्रजा और प्रकृति सब मर्यादा के आधार है इसका नाम मनन कला है।
कला 4:- अध्ययन करना विषय कला प्राप्त हो सब ज्ञान
मीन मेंक कुछ ना रही कहीं रविदास बखान
भावार्थ:- अध्ययन करने से अपर्याय विद्या कला प्राप्त होती है अर्थात अपरॉय विद्या से लौकिक व्यवहार का ज्ञान हो जाता है कुछ भी गलत नहीं रहता इसी नाम का अध्ययन करना अपरा विद्या है
कला नंबर 5:- वचन कला हमने लिखी निर्णय करके सार
वचन कला महान है कहे रविदास चमार
भावार्थ है:- वचन मात पिता का हो वचन सतगुरु का हो वचन किसी बड़े व्यक्ति का हो चाहे किसी के भी वचन का आज्ञाकारी हो तो उसके पास कॉल भी नहीं आ सकता वचन मानने से उसी के पास एक कला हो जाती है इसी का नाम वचन कला कहता है।
सतनाम सतगुरु अगला पैराग्राफ हम और अगली कल आए हम आपको आने वाले एपिसोड में देंगे अगर हमसे कोई त्रुटि हुई है तो हमें कमेंट में लिखें और कोई नई बात है तो अभी हमें कमेंट में लिखकर बताएं यह हमारे नंबर पर बताएं
अभय दास
स्टार फिल्म स्टूडियो देवबंद
9358 190 235 मेरा व्हाट्सएप नंबर है
अगर कोई नई सूचना नई कहानी है तो मुझे संपर्क करें ताकि मैं अपने समाज का जानकारी से सहयोग करू। सतनाम सतगुरु
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रजब रे गजब किया सिर बंधाया मोड
हम ले जाते सतलोक में तू चला नरक की औड
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इतना सुनते ही रजब ने सिर से सेहरा उतार कर फेंक देते हैं लोगों ने बहुत समझाया लेकिन किसी की भी एक ना माने गुरु रविदास जी के चरणों में माफी मांगी और गुरु जी का पूरा बैरागी हो गया उस मालिक ने जो लिख दिया हो ना तो वही था और हुआ भी वही फिर तो वह गुरु जी की सेवा में बराबर लगा रहा और उपदेश सुनता रहा।
एक दिन रजब गुरु रविदास जी से कहने लगते हैं कि गुरु जी सब लोग कहते हैं कि रविदास महाराज में संपूर्ण कला समर्थ है गुरु जी दया करके मुझे भी संपूर्ण कलाओं का ज्ञान करा दो रविदास जी महाराज ने कहां की स्थिर होकर ध्यान से सुनो
रजब दास ने गुरुजी से प्रसन्न किया जी गुरु जी इस जीव के पास कितनी कला है तब रविदास जी महाराज कहने लगे मन मुखी जीव के पास कोई कला नहीं होती केवल इसके पास में एक कला होती है मैं बाकी वह भी न के समान इसके कहने से दृष्टि कला बिना सतगुरु के सत्य असत्य की पहचान नहीं होती सतगुरु के आश्रय मेंं आकर साधना करने से कलाा बढ़नी शुरू हो जाती है इसे दृष्टि कला कहते हैं सच्ची दृष्टि के सामने झूठी बात तब दब जाती है रजब गुरु से कहते हैं कि अब हम तुम्हेंं संपूर्णण कलाओं का ज्ञान कराते हैं समाधि मैं होकर कर सुनो प्रथम कला हमने कही है
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कला, 2- दृष्टि सुनो संत सुजान
रविदास निर्णय करें पारख में पहचान।।
इसका भावार्थ है:-
आंखों को दृष्टि कहते हैं जब तक सच्ची दृष्टि से देखता रहेगा तब तक दृष्टि की समर्थता सत्य बनी रहेगी क्योंकि सच्ची दृष्टि वाले के सामने झूठी बात मिट जाएगी इसी को दृष्टि कला कहते हैं।
हे रजब शिष्य पद मैं 17 कला होती है जब तक सिस्टर के पास 17 कला नया हो तो उसे किसी को भी उपदेश देने का हक नहीं होता जब 17 कला संपूर्ण हो जाए एक दूसरे को उपदेश करने का अधिकार है
रजब ने गुरुजी से फिर पूछा गुरु पद में कितनी कला होती है गुरुजी ने रजब से कहा कि सतगुरु पद में अनंत अपार असीमित कला होती है सतगुरु ईश्वर सतगुरु ही संत परमातम होते हैं
कला:-3 : सरवण कला निर्णय करो रजब सुना चित्त देव
सरवण का आहार शब्द है शब्द ही है सबका देव
भावार्थ है:- जब श्रवण सतगुरु का शब्द सुनता है तो सुनते ही शिष्य के ऊपर नूर चढ़ जाता है और पाप कट जाता है तो श्रवण कला हो जाती है इसी का नाम सरवन कला कहलाता है ।
कला 3:- मनन मान मर्यादा है सब संतों का है लेख
रविदास कहीं निर्णय करें रख मान मर्यादा की टेक
भावार्थ है:- मान मर्यादा का खेल है बिना मान मर्यादा के सब कुछ बेकार है बिना मान मर्यादा के कुछ भी कार्य नहीं कर सकते मान मर्यादा से सब ऋषि मुनि संत महंत राजा प्रजा और प्रकृति सब मर्यादा के आधार है इसका नाम मनन कला है।
कला 4:- अध्ययन करना विषय कला प्राप्त हो सब ज्ञान
मीन मेंक कुछ ना रही कहीं रविदास बखान
भावार्थ:- अध्ययन करने से अपर्याय विद्या कला प्राप्त होती है अर्थात अपरॉय विद्या से लौकिक व्यवहार का ज्ञान हो जाता है कुछ भी गलत नहीं रहता इसी नाम का अध्ययन करना अपरा विद्या है
कला नंबर 5:- वचन कला हमने लिखी निर्णय करके सार
वचन कला महान है कहे रविदास चमार
भावार्थ है:- वचन मात पिता का हो वचन सतगुरु का हो वचन किसी बड़े व्यक्ति का हो चाहे किसी के भी वचन का आज्ञाकारी हो तो उसके पास कॉल भी नहीं आ सकता वचन मानने से उसी के पास एक कला हो जाती है इसी का नाम वचन कला कहता है।
सतनाम सतगुरु अगला पैराग्राफ हम और अगली कल आए हम आपको आने वाले एपिसोड में देंगे अगर हमसे कोई त्रुटि हुई है तो हमें कमेंट में लिखें और कोई नई बात है तो अभी हमें कमेंट में लिखकर बताएं यह हमारे नंबर पर बताएं
अभय दास
स्टार फिल्म स्टूडियो देवबंद
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अगर कोई नई सूचना नई कहानी है तो मुझे संपर्क करें ताकि मैं अपने समाज का जानकारी से सहयोग करू। सतनाम सतगुरु
Bahut acchi kahani hai.... 👌🙏🙏
जवाब देंहटाएंBahut acchi kahani hai.... 👌🙏🙏
जवाब देंहटाएंक्या बात लिखी है ढूंढते हुए रह जाते हैं लोग पर ऐसी-ऐसी बात नही मिलती है कहीं ।
जवाब देंहटाएंथैंक्स आप सभी का जिसने हमारा ब्लॉग देखा ऐसे ही हमारे साथ जुड़े रहना
जवाब देंहटाएंरज्जब ने गजब किया शीश बंधाया मोड
जवाब देंहटाएंहम ले चले बैकुंठ को वह चला नरक की ओड
संत गुरु रविदास जी
सतगुरु रविदास जी महाराज के उपदेशों को सुनकर रज्बज ने अपना रास्ता बदल दिया और गुरु रविदास जी महाराज की शरणागत हो गया आप की कहानी बिल्कुल सही है
जवाब देंहटाएंआप कोई बात का पता नही है
हटाएंसन्त रजब जी सन्त प्रवर दादू दयाल जी के परम शिष्य थे सन्त रविदास जी के शिष्य नही थे
जवाब देंहटाएं