मंगलवार, 18 दिसंबर 2018
रविवार, 2 दिसंबर 2018
सोमवार, 5 नवंबर 2018
शनिवार, 3 नवंबर 2018
शुक्रवार, 2 नवंबर 2018
गुरुवार, 1 नवंबर 2018
सोमवार, 15 अक्टूबर 2018
शुक्रवार, 12 अक्टूबर 2018
मंगलवार, 18 सितंबर 2018
बुधवार, 5 सितंबर 2018
बुधवार, 15 अगस्त 2018
मंगलवार, 14 अगस्त 2018
क्या संविधान लिखकर वाकई कोई कारनामा किया
1895 में पहली बार बाल गंगाधर तिलक ने संविधान लिखा था अब इससे ज्यादा मैं इस संविधान पर न ही बोलूँ वह ज्यादा बेहतर है, फिर 1922 में गांधीजी ने संविधान की मांग उठाई, मोती लाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना और पटेल-नेहरू तक न जाने किन किन ने और कितने संविधान पेश किये । ये आपस् में ही एक प्रारूप बनाता तो दूसरा फाड़ देता, दुसरा बनाता तो तीसरा फाड़ देता और इस तरह 50 वर्षों में कोई भी व्यक्ति भारत का एक (संविधान) का प्रारूप ब्रिटिश सरकार के सम्पक्ष पेश नही कर सके। उससे भी मजे की बात कि संविधान न अंग्रेजों को बनाने दिया और न खुद बना सके। अंग्रेजों पर यह आरोप लगाते कि तुम संविधान बनाएंगे तो उसे हम आजादी के नजरिये से स्वीकार कैसे करें। बात भी सत्य थी लेकिन भारत के किसी भी व्यक्ति को यह मालूम नही था कि इतने बड़े देश का संविधान कैसे होगा और उसमे क्या क्या चीजें होंगी? लोकतंत्र कैसा होगा? कार्यपालिका कैसी होगी? न्यायपालिका कैसी होगी? समाज को क्या अधिकार, कर्तव्य और हक होंगे आदि आदि..
अंग्रेज भारत छोड़ने का एलान कर चुके थे लेकिन वो इस शर्त पर कि उससे पहले तुम भारत के लोग अपना संविधान बना लें जिससे तुम्हारे भविष्य के लिए जो सपने हैं उन पर तुम काम कर सको। इसके बावजूद भी कई बैठकों का दौर हुआ लेकिन कोई भी भारतीय संविधान की वास्तविक रूपरेखा तक तय नही कर सका। यह नौटँकीयों का दौर खत्म नही हो रहा था,साइमन कमीशन जब भारत आने की तैयारी में था उससे पहले ही भारत के सचिव लार्ड बर्कन हेड ने भारतीय नेताओं को चुनौती भरे स्वर में भारत के सभी नेताओं, राजाओं और प्रतिनिधियों से कहा कि इतने बड़े देश में यदि कोई भी व्यक्ति संविधान का मसौदा पेश नही करता तो यह दुर्भाग्य कि बात है। यदि तुम्हे ब्रिटिश सरकार की या किसी भी सलाहकार अथवा जानकार की जरूरत है तो हम तुम्हारी मदद करने को तैयार है और संविधान तुम्हारी इच्छाओं और जनता की आशाओं के अनुरूप हो। फिर भी यदि तुम कोई भी भारतीय किसी भी तरह का संविधानिक मसौदा पेश करते हैं हम उस संविधान को बिना किसी बहस के स्वीकार कर लेंगे। मगर यदि तुमने संविधान का मसौदा पेश नही किया तो संविधान हम बनाएंगे और उसे सभी को स्वीकार करना होगा।
यह मत समझना कि आजकल जैसे कई संगठन संविधान बदलने की बातें करते हैं और यदि अंग्रेज हमारे देश के संविधान को लिखते तो हम आजादी के बाद उसे संशोधित या बदल देते। पहले आपको यह समझना आवश्यक है कि जब भी किसी देश का संविधान लागू होता है तो वह संविधान उस देश का ही नही मानव अधिकार और सयुंक्त राष्ट्र तथा विश्व समुदाय के समक्ष एक दस्तावेज होता है जो देश का प्रतिनिधित्व और जन मानस के अधिकारों का संरक्षण करता है। दूसरी बात किसी भी संविधान के संशोधन में संसद का बहुमत और कार्यपालिका तथा न्यायपालिका की भूमिका के साथ समाज के सभी तबकों की सुनिश्चित एवं आनुपातिक भागीदारी भी अवश्य है। इसलिए फालतू के ख्याल दिमाग से हटा देने चाहिए। दुसरा उदाहरण।
जापान एक विकसित देश है। अमेरिका ने जापान के दो शहर हिरोशिमा और नागासाकी को परमाणु हमले से ख़ाक कर दिया था उसके बाद जापान का पुनरूत्थान करने के लिए अमेरिका के राजनेताओं, सैन्य अधिकारियों और शिक्षाविदों ने मिलकर जापान का संविधान लिखा था। फरवरी 1946 में कुल 24 अमेरिकी लोगों ने जापान की संसद डाइट के लिए कुल एक सप्ताह में वहां के संविधान को लिखा था जिसमे 16 अमेरिकी सैन्य अधिकारी थे। आज भी जापानी लोग यही कहते है कि काश हमे भी भारत की तरह अपना संविधान लिखने का अवसर मिला होता। बावजूद इसके जापानी एक धार्मिक राष्ट्र और अमेरिका एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र होते हुए दोनों देश तरक्की और खुशहाली पर जोर देते हैं।
लार्ड बर्कन की चुनौती के बाद भी कोई भी व्यक्ति संवैधानिक मसौदा तक पेश नही कर सका और दुनिया के सामने भारत के सिर पर कलंक लगा। इस सभा में केवल कांग्रेस ही शामिल नही थी बल्कि मुस्लिम लीग, हिन्दू महासभा जिसकी विचारधारा आज बीजेपी और संघ में सम्मिलित लोग थे। राजाओं के प्रतिनिधि तथा अन्य भी थे। इसलिए नेहरू इंग्लैण्ड से संविधान विशेषज्ञों को बुलाने पर विचार कर रहे थे। ऐसी बेइज्जती के बाद गांधीजी को अचानक डॉ अम्बेडकर का ख्याल आया और उन्हें संविधान सभा में शामिल करने की बात की।
इस समय तक डॉ अम्बेडकर का कहीं कोई जिक्र तक नही था, सरदार पटेल ने यहाँ तक कहा था कि डॉ अम्बेडकर के लिए दरबाजे तो क्या हमने खिड़कियाँ भी बन्द की हुई है अब देखते हैं वो कैसे संविधान समिति में शामिल होते हैं। हालाँकि संविधान के प्रति समर्पण को देखते हुए पटेल ने बाबा साहेब को सबसे अच्छी फसल देने वाला बीज कहा था। कई सदस्य, कई समितियां, कई संशोधन, कई सुझाव और कई देशों के विचारों के बाद केवल बीएन राव के प्रयासों पर जिन्ना ने पानी फेर दिया जब जिन्ना ने दो दो संविधान लिखने पर अड़ गए। एक पाकिस्तान के लिए और एक भारत के लिए।
पृथक पाकिस्तान की घोषणा के बाद पहली बार 9 दिसम्बर 1946 से भारतीय संविधान पर जमकर कार्य हुए। इस तरह डॉ अम्बेडकर ने मसौदा तैयार करके दुनिया को चौंकाया। आज वो लोग संविधान बदलने की बात करते हैं जिनके पूर्वजों ने जग हंसाई करवाई थी। मसौदा तैयार करने के पश्चात आगे इसे अमलीजामा पहनाने पर कार्य हुआ जिसमें भी खूब नौटँकियां हुई .. अकेले व्यक्ति बाबा साहेब थे जिन्होंने संविधान पर मन से कार्य किये। पूरी मेहनत और लगन से आज ही के दिन पुरे 2 साल 11 माह 18 दिन बाद बाबा साहेब ने देशवासियों के सामने देश का अपना संविधान रखा जिसके दम पर आज देश विकास और शिक्षा की ओर अग्रसर बढ़ रहा है और कहने वाले कहते रहें मगर बाबा साहेब के योगदान ये भारत कभी नही भुला सकता है। हम उनको संविधान निर्माता के रूप तक सीमित नही कर सकते, आर्किटेक्ट ऑफ़ मॉडर्न इंडिया यूँ ही नही कहा गया कुछ तो जानना पड़ेगा उनके योगदान, समर्पण, कर्तव्य और संघर्षों को।
Abheya Das Deoband,
सोमवार, 13 अगस्त 2018
एतिहासिक संदेश भारतीय सविधान रचेयता के नाम
शनिवार, 11 अगस्त 2018
मायावती की जीवनी
मायावती की जीवनी लिखने वाले अजॉय बोस लिखतें है की 'कांशीराम, मायावती के साथ बहुत अच्छा भावनात्मक जुड़ाव रखते थे. कांशीराम का गुस्सैल स्वभाव, खरी-खरी भाषा व जरूरत पड़ने पर हाथ के इस्तेमाल पर मायावती की तर्कपूर्ण खरी-खरी बातें भारी पड़ती थी. समान आक्रामक स्वभाव वाले दलित चेतना के लिए समर्पित इन दोनों लोगो के काम का अंदाज़ जुदा होते हुए भी एक दुसरे का पूरक था, जहां कांशीराम लोगो से घुलना मिलना, राजनैतिक संघर्ष और गपशप में यकीन रखते थे वही मायावती अंतर्मुखी रहते हुए राजनैतिक बहसों को समय की बर्बादी मानती थीं. मायावती का ये अंदाज़ अब भी बरकरार है. वे आज भी चुपचाप अपना काम करती हैं. राजनैतिक अटकलबाजियों में ना तो वो खुद शामिल होती हैं ना ही पार्टी के कार्यकर्ताओं को शामिल होने देती हैं. अस्सी के दशक में जब वे आम अध्यापिका थीं तब भी वे अपनी शख्सियत के मुताबिक़ पूछा करती थी "अगर हम हरिजन की औलाद है तो क्या गांधी शैतान की औलाद थे." अपने इसी तेज तर्रारी व खरी तेजाबी जुबान से ,जब उन्होंने वर्णवादी व्यवस्था को मनुवादी कह कह कर हिंदी क्षेत्रों में लताड़ना शुरू किया तो वर्षो से दबे हुए दलित समाज ने उन्हें अपनी आवाज़ और अपने लिए युद्धरत एक सिपाही को मायावती के रूप में पाया. कांग्रेस में वोटबैंक की मानिंद सिमटे रहने वाले दलित अधिकारी नेता अब आज़ाद महसूस करने लगे और अस्सी के दशक का 'हरिजन' कब राजनैतिक व्यक्तित्व को प्राप्त कर 'दलित' बन गया ये पता ही नहीं चला. मायावती को समझने के लिए उनकी आत्मकथा
'मेरा संघर्षमय जीवन एवं बहुजन समाज मूवमेंट का सफरनामा'
के पन्ने पलटने होंगे. हर चेतना संपन्न दलित की तरह मायावती में भी दलित आंदोलन की पहली समझ बाबा साहब डा. अंबेडकर की जीवनी और उनकी किताबें पढ़कर आई. इन किताबों से मायावती का पहला परिचय उनके पिता ने कराया. मायावती अपनी आत्मकथा में लिखती हैं, 'तब मैं आठवीं कक्षा में पढ़ती थी. एक दिन मैने पिताजी से पूछा कि अगर मैं भी डा.अंबेडकर जैसे काम करूं तो क्या वे मेरी भी पुण्यतिथि बाबा साहब की तरह ही मनाएंगे?' मायावती के विरोधी भले ही उनको लेकर मनगढ़ंत कहानियां गढ़ते फिरें और उन पर तानाशाही का आरोप लगाते रहें, मायावती का राजनीतिक जीवन इतना आसान नहीं रहा है. मायावती पहले बामसेफ और फिर डीएस फोर में सक्रिय हुईं. दोनों संगठनों की स्थापना क्रमश: 1978 और 1981 में हुई थी. उस समय इन संगठनों से मायावती का जुड़ाव यह साबित करता है कि सत्ता उनका साध्य नहीं थी. वह खुद तय किए उद्देश्य के लिए लड़ रही थीं. यह वह समय था जब दलित आंदोलन का कोई भविष्य नहीं दिखता था, कोई मानने को तैयार नहीं था कि बहुजन आंदोलन कभी सफल भी होगा. मायावती जी आज जिस मुकाम पर हैं, वहां तक पहुंचने के लिए उन्होंने कड़ा संघर्ष किया है. निजी जिंदगी में परिवार के स्तर पर भी उन्होंने बहुत तकलीफें सही. 1984 में बहुजन समाज पार्टी बनने पर ही मायावती सक्रिय राजनीति में उतरीं, लेकिन पिता उनके राजनीति में जाने के विरोधी थे. पिता ने कहा कि अगर कांशीराम का साथ नहीं छोड़ा तो उन्हें परिवार से अलग कर दिया जाएगा. अपनी आत्मकथा में मायावती लिखती हैं, 'पिता जानते थे लड़की घर छोड़कर नहीं जा सकती. उन्होंने मुझ पर दबाव बनाया, लेकिन मैंने उनकी नहीं सुनी.' इसके बाद मायावती ने घर छोड़ दिया. उनका साथ दिया बड़े भाई ने. पास में था तो बस सात साल की नौकरी से बचा कुछ पैसा. वह कहती हैं कि 'मैं भाई के साथ अलग कमरा लेकर रहती थी. कमरा कांशीराम जी ने दिलवाया था. जल्दी ही लोगों ने दुष्प्रचार शुरू कर दिया.' खुद कांशीराम ने भी लिखा है कि राजनीति में प्रवेश करते ही मायावती की बेहिसाब मुश्किलें शुरू हो गईं.' अपनी पहली राजनीतिक जीत के लिए उन्हें कई साल का इंतजार करना पड़ा. 1984 में बसपा के गठन के बाद से ही मायावती ने कैराना से चुनावी सफ़र शुरू किया. इस मुकाबले में जीत तो कांग्रेस प्रत्याशी की हुई, पर मायावती ने भी अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराई. इस चुनाव में मायावती ने 44,445 वोटों के साथ तीसरा स्थान प्राप्त किया. फिर आया 1985 बिजनौर का उपचुनाव. इस चुनाव में वह 61,504 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहीं. मायावती को चाहने वालों की तादाद बढ़ रही थी और साथ ही वोटों की संख्या भी. 1987 में हरिद्वार सीट से 1,25,399 वोटों के साथ वह दूसरे स्थान पर रही. 1988 के महत्वपूर्ण इलाहाबाद की लोकसभा सीट के उपचुनाव में वी पी सिंह व कांग्रेस के अनिल शास्त्री के एतिहासिक मुकाबले में तीसरी बड़ी दावेदारी कांशीराम के नेतृत्व में इसी बहुजन समाज पार्टी ने पेश किया. इतने प्रयासों के बाद सन् 1989 में बिजनौर से 1,83,189 वोटों के साथ वे पहली बार संसद के लिए चुन ली गई. 1984 में 'बीएसपी की क्या पहचान, नीला झंडा-हाथी निशान'
व बाबा तेरा मिशन अधूरा मायावती करेंगी पूरा,
के नारों के साथ बसपा ने 1993 में सपा (पिछड़े मुस्लिम) व बसपा (अति पीछड़े व दलित) गठबंधन कर, 'मिले मुलायम-कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम' का नारा दिया. लगा भाजपा के पूरे राम मंदिर आंदोलन को धुल चटा सवर्णों के धर्म व राजनैतिक आंदोलन की रीढ़ ही तोड़ दी गई है. कांशीराम की तरह वे उत्तर प्रदेश से बाहर की नहीं थी. वे यूपी की बेटी थी, वे दलित की बेटी थी. मायावती की इसी ज़मीनी पकड़ और आक्रामकता के चलते 1989 में बसपा महज दो लोकसभा सीटो पर 9.93 फीसदी मत से बढ़कर 1999 आते आते 14 सीट और 22.8 फीसदी मतों पर पहुंच गई. 1995 में भाजपा के साथ हाथ मिला दलित की ये बेटी पहली दलित महिला मुख्यमंत्री बन गई. इस देश के अलावा देश के बाहर के लोगों के लिए भी एक अचंभे की बात थी. यह वह वक्त था, जब मायावती विश्व के फलक पर अचानक एक कद्दावर नेता के रूप में उभरी थी. उनकी इन्हीं उपलब्धियों की बदौलत प्रतिष्ठित 'न्यूज वीक' पत्रिका उन्हें दुनिया की आठ सर्वाधिक ताकतवर महिलाओं में शुमार कर चुकी हैं. मुख्यमंत्री का पद संभालने के बाद उन्होंने बहुजन नायकों और बहुजन हितों पर खासा ध्यान दिया. मायावती ने अम्बेडकर ग्राम योजना लाकर अनुसूचित जाति बहुल गांव में सरकारी निवेश को बढ़ा दिया. थानों में दलित अधिकारियों की नियुक्ति कर दलित उत्पीडन पर रोक लगा दी व दलित महापुरुषों के नाम पर नए जिले घोषित कर दलितों को मोह लिया. तब से ही दलितों के साथ ही पछड़े वर्ग में भी मायावती का खासा प्रभाव रहा. सी एस डी एस की रिपोर्ट को माने तो सन 1996 में बसपा को 27% कुर्मी, 24.7% कोईरी वोट मिले. समाजवादी पार्टी तो मायावती और बसपा के बढ़ते कदम से इतनी बौखला गई कि उसके लोगों ने मायावती पर हमला तक कर दिया. मुलायम की पार्टी के कुछ लोगों द्वारा गेस्ट हॉउस में मायावती के ऊपर किये गए जानलेवा हमले में सवर्ण नेताओं खासकर ब्रह्मदत्त द्विवेदी द्वारा बचाई गई मायावती ने सन् 2005 में बसपा में ही सवर्ण नेतृत्व उभारना शुरू कर दिया. इसको वकील से यूपी के महाधिवक्ता बनाये गए सतीश चन्द्र मिश्र ने मूर्त रूप दे डाला. मायावती ने सवर्ण और ब्राह्मण नेताओं को ज्यादा महत्त्व देना ,कांशीराम द्वारा बनाया गया 15 बनाम 85 फीसदी का बहुजन सामाजिक समीकरण को 25% दलित, 9% ब्राह्मण+20% अति पिछड़ों का समीकरण कर दिया. कांग्रेस के जाते ही जो ब्राह्मण नेतृत्व विहीन हो गए थे वे सतीशचंद्र के नेतृत्व में 2007 में बड़ी संख्या में बसपा से जुड़े, यहां तक कि 42 ब्राह्मण जीतकर बसपा की पहली बार बनी पूर्ण बहुमत सरकार का हिस्सा बने. यह सब मायावती की बेहतरीन राजनीतिक सूझ-बूझ का ही नतीजा था. उनके विरोधी भले ही कुछ भी कहें, लेकिन ताज एक्सप्रेस वे और बुद्ध इंटरनेशनल सर्किल मायावती के मुख्यमंत्रित्वकाल की ऐसी उपलब्धि है, जिसके बारे में उनके राजनीतिक प्रतिद्वंदी सोच भी नहीं सकते थे. वरिष्ठ लेखिका अरुणधति राय भी विरोधियों के इसी कुप्रचार का शिकार थीं. लेकिन नोएडा में बुद्ध इंटरनेशनल सर्किल पर देखने के बाद अपने एक संस्मरण में उन्होंने मायावती की तारीफ के पुल बांधे थे. प्रशासक के रूप में 'बहन जी' का तेवर हमेशा उग्र रहा है और उन्होंने समझौता नहीं किया. उत्तर प्रदेश के एक बड़े किसान नेता महेन्द्रसिंह टिकैत द्वारा एक जन सभा में जिसमें, अजीत सिह भी मौजूद थे, मायावती को गालियां दी गई. बहन जी ने टिकैत की गिरफ्तारी का आदेश दिया. टिकैत बिजनौर से मजबूत आधार वाले अपने गांव सिसौली (मुजफ्फर नगर) लौट आया. गांव की घेराबन्दी कर दी गई. पानी बिजली काट दी गई. अंत में बड़बोला टिकैत अपनी औकात में आ गया. उसने गिड़गिडा़ते हुए मुख्यमंत्री मायावती से माफी मांगी और उसको गिरफ्तार कर लिया गया. वहीं मुलायम राज को पटखनी देकर तब सत्ता में पहुंची मायावती ने यूपी के बड़े-बड़े गुंडों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. कई अंडरग्राउंड हो गए . सख्त प्रशासन के लिए विपक्षी भी उनका लोहा मानते हैं. चाहे किसी जाति या धर्म का व्यक्ति हो, प्रदेश की आम जनता ने बसपा शासन में हमेशा सुरक्षित महसूस किया. खासकर महिलाओं ने एक महिला मुख्यमंत्री के प्रसाशन को काफी पसंद किया. 'चढ़ गुंडो की छाती पर मुहर लगेगी हाथी पर' जैसे नारे एक वक्त उत्तर प्रदेश की फिजाओं में खूब गूंजे थे. मायावती ने हमेशा से अपनी कड़क छवि के अनुरूप ही काम किया. बहुजन नायकों के सम्मान को लेकर भी मायावती हमेशा सचेत रहीं. यह तब देखने को मिला जब 2007 में उन्होंने लखनऊ के अंबेडकर स्मारक के रख रखाव में कोताही बरतने के कारण कुछ अधिकारियों को निलंबित कर दिया. मायावती का पूरा ध्यान दलितों के हित साधने में रहा. उनके द्वारा बैकलाग की भर्तियों पर बार-बार पूछताछ जारी रही. दलित कोटे को पूरा करना और महत्वपूर्ण पदों पर उन्हीं के लोगों की तैनाती इस बात को दर्शाती भी रही. अपने राजनीतिक गुरु, सचेतक और बसपा के संस्थापक मान्यवर कांशीराम जी के गुजरने के बाद मायावती को झटका लगा. लेकिन तब तक वे परिपक्व हो चुकी थीं. एक वक्त ऐसा भी आया जब कई बड़े नामों ने बसपा का साथ छोड़ दिया. इनमें बसपा को कई साल देने वाले सलेमपुर के पूर्व सांसद बब्बन राजभर हो, बलिया से ही कांशीराम के साथी पूर्व सांसद बलिहारी बाबू हो, इलाहबाद से इंडियन जस्टिस पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष कालीचरण सोनकर हो या फिर आजमगढ़ के सगड़ी के नेता मल्लिक मसूद तमाम लोग पार्टी से अलग हो गए. इसमें से कई आज कांग्रेस की शोभा बढ़ा रहे है. लेकिन कुछ ऐसे लोग भी रहें तो 'बहन जी' के पीछे साए की तरह खड़े रहें. इनमें कांशीराम के सेक्रेट्री अम्बेथ राजन व पार्टी के बिहार प्रभारी गांधी आज़ाद जैसे प्रतिबद्ध दलित कार्यकर्ता रहे हैं. अम्बेथ राजन का संगठन कांशीराम व अन्य दलितों को दिल्ली में मूलभूत सुविधाएं देता था. आज भी वे उसी प्रकार की सेवाएं बसपा का खजांची बन कर दे रहे हैं. मायावती के जीवन संघर्ष पर जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र विभाग के प्रो. विवेक कुमार ने पिछले दिनों अपने एक लेख में लिखा था, 'यह विडंबना है कि लोग आज मायावती के गहने देखते हैं, उनका लंबा संघर्ष और एक-एक कार्यकर्ता तक जाने की मेहनत नहीं देखते. वे यह जानना ही नहीं चाहते कि संगठन खड़ा करने के लिए मायावती कितना पैदल चलीं, कितने दिन-रात उन्होंने दलित बस्तियों में काटे. मीडिया इस तथ्य से आंखें मूंदे है. जाति और मजहब की बेड़ियां तोड़ते हुए मायावती ने अपनी पकड़ समाज के हर वर्ग में बनाई है. वह उत्तर प्रदेश की पहली ऐसी नेता हैं, जिन्होंने नौकरशाहों को बताया कि वे मालिक नहीं, जनसेवक हैं. अब सर्वजन का नारा देकर उन्होंने बहुजन के मन में अपना पहला दलित प्रधानमंत्री देखने की इच्छा बढ़ा दी है. दलित आंदोलन और समाज अब मायावती में अपना चेहरा देख रहा है. भारतीय लोकतंत्र को समाज की सबसे पिछली कतार से निकली एक बहुजन महिला की उपलब्धियों पर गर्व होना चाहिए l मायावती एक जांबाज लीडर हे अपने समाज के लिए अगर कोई कुछ कर सकता हे तोसिर्फ आयरन लेडी बहन मायावती हे /अभय दास deoband -
शुक्रवार, 10 अगस्त 2018
बुधवार, 8 अगस्त 2018
बुधवार, 13 जून 2018
।गुरु रविदासजी चरणछोह गंगा खुरालगढ़ इतिहास
।गुरु रविदासजी चरणछोह गंगा खुरालगढ़ इतिहास।
॥ भाग पच्चीस ॥
एक बार गुरु रविदास जी महाराज हरियाणा के शहर कुरुक्षेत्र में एक संत सम्मेलन में आए हुए थे जिसमें सतगुरु कबीर साहिब नामदेव जी मीराबाई रैदास जी जगजीवन दास ने भी शिरकत की थी ॥ सारी रात संतों ने धार्मिक प्रवचन के साथ संत सम्मेलन किया ॥ सुबह मीराबाई अपने पूज्य गुरु रविदास जी से कहने लगी , महाराज मेरा मासड़ राजा वैन यहां से नजदीक खुरालगढ़ का राजा हैँ ॥ उसके राज्य में जो भी साधु संत प्रवेश करता हैँ , उसे वह चक्की पीसने की सजा देता हैँ , मुझे ये सुन कर अत्यंत दुःख होता हैँ ॥ साधु संत भी मानसिक रूप से प्रताड़ित होते हैँ ॥ इसलिये मेरी आपसे करबद्ध प्रार्थना हैँ कि , आप खुरालगढ़ चल कर उन्हें सन्मार्ग पर लाने की कृपा करें ॥ मैं भी गुरु जी आपकी अत्यंत शुक्रगुजार हूंगी ॥ गुरु रविदास जी तो स्वयं ही उसी पापी के पापों से साधु संतों को मुक्त करने कुरुक्षेत्र आए थे ॥ गुरु जी ने मीराबाई को कहा , ठीक हैँ हम आपके साथ राजा वैन के राज्य में अवश्य चलेंगे ॥
गुरु रविदास महाराज अपने प्रिय साथियों के साथ कुरुक्षेत्र से चंडीगढ़ होते हुए भी शाम को रोपड़ पहुंचे ॥ गुरु रविदास जी और अन्य सभी संत महापुरुषों का स्थानीय संतों और संगत ने हार्दिक अभिनंदन किया ॥ थके हुए संतों ने रात को कुछ समय धार्मिक चर्चा की और सो गये ॥ सुबह पुन अपने लक्ष्य की ओर सभी संतवृन्द चल पड़े ॥ गुरु जी अपने संत वृन्द के साथ नंगल होते हुए संतोषगढ़ रुके जहाँ उन्हें पूर्णरूपेण रात हो गईं ॥ इस गांव में सभी लोग चमार जाति के रहते आए हैं ॥ गुरु रविदास जी भी हमेशा मार्शल चमार जाति के घर ही रात बिताते थे ! गांववासियों ने अपने भगवान गुरु रविदास और अन्य पूज्य गुरुओं के गांव में पधारने पर अपने आपको धन्य समझ कर सभी गुरुओं का जोरदार स्वागत किया ॥ सभी के निर्मल स्वच्छ जल से पांव धोये ॥ सभी को खाना खिलाया और आराम करने केलिये शयन व्यवस्था की ॥ सभी गुरुओं ने रात को वहां शब्द कीर्तन किया और स्थानीय जनता की सेवा का मेवा देकर उपकृत किया ॥
दूसरे दिन सभी संत खुरागढ़ केलिये रवाना हो गये ॥ वे गांव टाहलीबाल , बाथड़ी होते हुए खुरालगढ़ पहुंच गये ॥ सभी गुरुओं ने राजा वैन के राज्य में डेरा डाल दिया ॥ दोहपर का खाना वहीँ खाया ॥ उधर राजा के गुप्तचरों ने राजा को साधु संतों के राज्य में प्रवेश की सूचना देदी ॥ राजा वैन गुप्तचरों की सूचना सुनते ही आग बबूला हो गया ॥ उसनेअपने अहदियों को आदेश दिया , तुरंत साधुओं को दरबार में बुलाओ ॥ उनकी यहां प्रवेश करने की हिम्मत कैसे हुई ? अहदी तुरंत उस स्थान पर चले गये जहाँ सभी साधु संत ठहरे हुए थे ॥ अहदियों ने गुरुओं को राजा वैन का फरमान सुना कर उनके दरबार में हाजर होने केलिये कहा ॥ गुरु रविदास जी के साथ सभी साधु राजा के दरबार में हाजर हो गऐ ॥ किसी भी संत ने राजा वैन को सलाम कलाम नहीं की जिससे क्रोद्ध की भठ्ठी में जलते हुए राजा ने साधुओं को कड़े स्वर में पूछा , क्या आपको ज्ञान हैँ कि मेरे राज में जब साधु संत प्रवेश करते हैं तो उन्हें क्या करना पड़ता हैँ ? गुरु रविदास जी महाराज ने राजा वैन को उतर देते हुए कहा , नहीं राजन हम नहीं जानते ॥ राजा ने गुस्से से कहा , यहां साधुओं को चक्की में अन्न पीस कर आटा तैयार करना पड़ता हैँ ॥ गुरु रविदास जी ने राजा को हुक्म दिया आप अपने सारे राज्य का सारा आनाज तुरंत इकठ्ठा करके एक जगह ढेर लगा दो और वहीँ एक चक्की भी लगा दो ॥ जब हमारी चक्की चलेगी तो हमारे संत निरंतर रात दिन चक्की चलाएंगे ॥ काम करते समय हमें रुकावट नहीं होनी चाहिये ॥
राजा वैन ने समीप के उजाड़ बियाबान जंगल के पास नाले में चक्की लगा दी ॥ राजा ने भी राज्य का सारा अन्न वहीँ इकठ्ठा करबा दिया ॥ जब पूज्य गुरु रविदास जी वहां पहुंचे तो सभी संत गर्मी के कारण पसीने से भीग गये ॥ कबीर साहिब , गुरु रविदास जी से कहने लगे गुरु महाराज हमें प्यास बहुत सता रही हैँ ॥ प्यास इतनी लगी हुई हैँ कि जान निकली जा रही हैँ ॥ गुरु रविदास जी ने कबीर साहिब की पुकार तुरंत सुनकर अपने दाहिने पांव के अंगूठे से सूखे पठार से एक पत्थर उखाड़ा जिससे वहाँ गंगा हजार हो गईं और पानी की बौछारें निकलनी शुरू हो गईं ॥ जब राजा वैन को इस हैरतंगेज घटना का पता चला तो वह दंग रह गया ॥ उधर जब चक्की चली तो वह खुद ही चलती रही ॥ जब राजा वैन चलती चक्की देखने केलिये आता तो क्या देखता कि:--- चक्की को साधु हाथ से चला रहे हैँ जबकि चक्की स्वत ही चलती रहती थी ॥ सारा अन्न कुछ ही दिनों में पीस दिया गया ॥ जनता को इतनी भूख बढ़ गईं कि राज्य का अन्न भी खत्म होता गया ॥ जब राजा वैन को इस घटना का पता चला कि राज्य का सारा अन्न खत्म हो रहा हैँ जिससे आहत होकर वह नंगे पांव गुरु रविदास जी के पास अनुनय विनय करने लगा ॥ महाराज मैं हमेशा गलती करता आया हूँ , मुझे बख्श लो ॥ मैं तौबा करता हूँ ॥ अब मैं किसी को भी दुखी नहीं करूंगा ! मैं सभी साधुओं का आदर करूंगा ॥ मुझे माफ कर दो ॥ गुरु रविदास जी तो अपनी क्रान्तिकारी योजना के अनुसार पापियों के पाप कर्म छुड़ा रहे थे ॥ गुरु रविदास जी ने राजा वैन को माफ कर दिया मगर वह भी संन्यास लेकर गुरु जी का मुरीद बन गया ॥गुरु जी ने राजा का दिल परिवर्तित करके पंजाब के लिये प्रस्थान कर दिया ॥ राजा वैन का आज भी संतोषगढ़ कस्बे से वाया नंगड़ा ऊना जाने वाली सड़क के किनारे एक छोटा सा मंदिर हैँ ॥ ये मंदिर इसीलिये विकास नहीं कर सका कि इस का संबंध गुरु रविदास जी से हैँ अन्यथा गुरु रविदास जी किसी ब्राह्मण के मुरीद होते तो यहां आलीशन मंदिर होता ॥
रविवार, 3 जून 2018
5 Dosh
मर्ग मीन गज भुजंग पतंगा एक दोष कारण विनाश
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गुरु रविदास जी कहते हैं कि इन जीवो में एक एक दोष विद्यमान रहता है
और एक दोष के कारण अपनी जान गवानी पड़ती है और एक इंसान के अंदर पांच प्रकार के दोष पाए जाते हैं जैसे काम क्रोध मोह लोभ और तृषणा।
जैसे एक हिरण के अंदर कस्तूरी विद्यमान रहती है और उसकी सुगंध उसके दिमाग में बार-बार आती रहती है और वह उस सुगंध की वजह से पूरे जंगल को सुगंता फिरता है
मगर कस्तूरी नहीं मिलती एक दिन पर
शिकारी के जाल में फंस जाता है
इसी तरह फूल के रस को चूसता रहता है और जब शाम होती है तब तक उसके रस से उसका जी नहीं भरता और उस फूल के अंदर बंद हो जाता है इसी तरह गजमणि हाथी जब मस्त होता है तब कागज की हथनी बनाकर एक जाल में फंसा दिया जाता है इसी तरह पतंगा रोशनी की तरफ देखने की वजह से उस दीप में जलकर मर जाता है और एक मीन मछली कांटे पर लगे हुए चारे को
देखकर ललचाती है और उसको स्वाद लेने के चक्कर में कांटे में फंस जाती है इस ही तरह इंसान के अंदर 5 दोस् मिलते हैं जिस कारण उसे अपना जीवन मैं सफलता नहीं मिलती अगर हम एक एक दोस् पर भी अपना मन का संतुलन बनाए तो हमें शायद कोई कामयाबी मिल जाय अभय दास
सोमवार, 28 मई 2018
रविवार, 27 मई 2018
धर्म क्या है
धर्म क्या है यह एक बहुत बड़ा विषय है दरअसल धर्म एक पूजा पद्धति का नाम है कि हम अपने पूजा अर्चना किस प्रकार किस भांति करते हैं या किसमें हम अपने मन की आस्था रखते हैं मेरे हिसाब से इसी को धर्म कहते हैं मगर कुछ लोगों ने इसको एक बिजनेस का रुप दिया जो धर्म को बिजनेस बनाता है तब धर्म नष्ट हो जाता है धरम का मतलब जोड़ना नहीं तोड़ना भी है दरअसल हम मानव जाति का धर्म मानव धर्म है
जो कहीं हर धर्म से बड़ा धर्म है मानव सेवा सबसे बड़ी सेवा होती है जो इंसान मानव रहकर मानव के बारे में अज्ञान बना रहता है वह इंसान नहीं पशु के समान होता है और धर्म यह नहीं सिखाता कि आपस में बैर रखना मगर इंसान धर्म को खिलौना और एक खिलौने खिलौने को धर्म बताता है इसी आडंबर में हमारा भारत देश आज सदियों से झगड़ा चला रहा है जिस कारण आज देश में छुआछूत अपने चरम सीमा पर पहुंच गई मुझे तो लगता है कि आने वाले समय में कहीं आपसी कलेक्शन दर्शन हो जाए जैसे किसे कहते हैं ग्रह युद्ध और अगर ऐसा हुआ तो यह एक बड़ी पीड़ादायक विनाशलीला होगी इसलिए मैं सभी जो मानव धर्म में विश्वास रखते हैं आपस में सभी प्यार से रहे और किसी एक धर्म विशेष पर आस्था ना रखकर सभी धर्म का आदर करें क्योंकि सभी धर्म इंसान के बनाए गए हैं किसी परमात्मा ईश्वर नाम नहीं धर्म नहीं बनाए आदमी ने अपने मन की कल्पना से धर्म की व्यवस्था बनाई और मन की कल्पना से ही जीता जागता रहता है और मन मरा सबकुछ मर गया सतनाम सत साहिब जय भीम जय भारत अभय दास