गुरु गुरु रविदास जी महाराज की शिक्षा का वास्तविक सत्य।।
।।भाग 4।।
गुरु रविदास जी महाराज की जीवनी लिखते समय ब्राह्मण लेखकों ने गुरु रविदास जी महाराज को पिछले जन्म का ब्राह्मण सिद्ध कर के पिछले जन्मों का दण्ड भुगतने के लिए चमार जाति में चर्मकार के रूप में अत्यंत गरीब और खानाबदोश परिवार में जन्मे व्यक्ति के रूप में जिक्र किया हुआ है। इन लेखकों के अनुसार गुरु रविदास जी के माता-पिता को भी जूते बनाते हुए दिखाया गया है।छोटी आयु में ही उन की शादी कर दी गई थी परंतु गुरु रविदास जी महाराज जूते बना कर के मुफ्त में साधु, संतों, फकीरों को बांटा करते थे जिस से गुरु रविदास जी के पिता संतोष दास जी बहुत दुखी हो गए थे और दुखी हो कर के उन्होंने उन को परिवार से अलग कर दिया था। माता पिता ने उन्हें एक छोटे से जमीन के टुकड़े के ऊपर अपनी झोपड़ी बनाने के लिए दिया था। गुरु रविदास जी ने उस जमीन के टुकड़े के ऊपर एक झोपड़ी बना कर के जूते बनाने का कार्य कर के अपने परिवार का पालन पोषण करते थे।
उपरोक्त कथाओं का अगर पोस्टमार्टम किया जाए तो ब्राह्मणों की मूर्खता की पोल खुलती हुई नजर आती है क्योंकि कभी भी किसी भी मृत शरीर की आत्मा दोबारा जन्म नहीं लेती है और फिर उस आत्मा को किसी अछूत के घर में जन्म लेने का किसी का भी आदेश नहीं होता है। गुरु रविदास जी महाराज को ऐसी कल्पित कथा के माध्यम से अत्यंत निर्धन और विवेकहीन लिखा गया है, जो किसी के गले में नहीं उतरता है। गुरु रविदास जी महाराज अपनी वाणी में फरमाते हैं कि ----
चमरठा गांठी ना जानी जिस से यह सपष्ट ज्ञात होता है कि गुरु रविदास जी महाराज चमड़े के जूते गाँठना या मरम्मत करना नहीं जानते थे, फिर गुरु रविदास जी महाराज का परिवार चमड़े और कपड़े के उद्योगपति था। जिस से उन की आमदनी बहुत ही अधिक हुआ करती थी। ऐसे अमीर और संपन्न परिवार के अमीर व्यक्ति को झुग्गी-झोपड़ी में निवास करते हुए दिखाना कथा लिखने वालों की बुद्धि का दिवाला निकला हुआ नजर आता है। गुरु रविदास जी महाराज के बाबन राजा और बादशाह शिष्य थे जो अपने परिवार सहित सतगुरु रविदास जी महाराज का सत्संग सुनने के लिए जाया करते थे। जब वे सत्संग सुनने जाते थे तो गुरु जी को भेंट करने के लिए सोने, चाँदी, हीरे,और रुपये चढ़ाते थे मगर ब्राह्मणों ने गुरु रविदास जी महाराज को अत्यंत कंगाल और गरीब व्यक्ति के रूप में अपने साहित्य में वर्णित किया हुआ है।
गुरु रविदास जी का धर्म आदि धर्म:---गुरु रविदास जी महाराज दिन रात एक कर के सामाजिक परिवर्तन के लिए जगह-जगह भ्रमण किया करते थे जिस के दौरान वे गाँव गांव जा कर के अपनी ओजस्वी और क्रांतिकारी वाणी के माध्यम से सामाजिक चेतना पैदा किया करते थे। जिन अछूत लोगों को सत्संग सुनने का कोई अधिकार नहीं था उन को वे सामूहिक रूप से सत्संग सुना कर के, मूलनिवासी राजपूत, वैश्य, शूद्र और अछूत चारों वर्णों में सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक जागृति पैदा किया करते थे।
गुरु रविदास जी महाराज ने अपने धर्म के बारे में फरमाया है---
आद से प्रकट भयो जा को ना कोउ अंत।।
आदधर्म रविदास का जाने कोउ बिरला संत।।
इन शब्दों से स्पष्ट ज्ञात होता है कि गुरु रविदास जी महाराज आदधर्म को मानने वाले और आदधर्म का प्रचार करते थे मगर ब्राह्मणों ने गुरु रविदास जी महाराज को अपना हिंदू साबित करने के लिए कल्पित कथाएं घड़ी हुई हैं। जिन में गुरु रविदास जी महाराज ब्राह्मणों की तरह धोती, तिलक लगा कर के शंख बजाते हैं। छाती चीर कर के सोने, चांदी, तांबे और धागे के जनेउ निकालते हुए दर्शाए गए हैं।
गुरु रविदास जी की श्रेष्ठता का श्रेय लेने के लिए ही शारदानंद ब्राह्मण टीचर बताया गया:---
जब गुरु रविदास जी महाराज ने ब्राह्मणों के सारे ढोंगों, पाखंडों, आडंबरों का बुरी तरह से पोस्टमार्टम करके सत्य को सामने लाने का कार्य किया था, चारों वर्णों में धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक चेतना पैदा की थी, छुआछूत को खत्म करने के लिए राष्ट्रीय आंदोलन शुरू किया था, चारों वर्णों को एक पंक्ति में बैठा कर के भोजन करवाया था, राजाओं, महाराजाओं और बादशाहों से अछूतों को सारे अधिकार दिलाए थे जिस के कारण गुरु रविदास जी महाराज को संत शिरोमणि की उपाधि से विभूषित किया गया था। यही नहीं उन को गुरुओं के गुरु भी कहा गया है और विदेशी शासकों ने भी उन को अपना गुरु स्वीकार कर के अपना जीवन सफल बनाया था। गुरु जी की इन्हीं विशेषताओं का लाभ उठाने के लिए ब्राह्मणों ने गुरु रविदास जी महाराज को अपना कर के इतिहास में लिखा हुआ है।
जब गुरु रविदास जी महाराज ने ब्राह्मण के सारे काले कारनामों को उजागर कर के ब्राह्मणवाद को खत्म करने का ऐतिहासिक कार्य किया था, तो फिर ऐसा कौन ब्राह्मण था, जो गुरु रविदास जी महाराज को पढ़ने, पढ़ाने का कार्य कर सकता था? गुरु रविदास जी महाराज ब्राह्मणों की ऐसी तैसी फेर रहे थे फिर भला कौन ब्राह्मण उन को गले लगा कर अपने पाँव पर कुल्हाड़ा मार लेता।
गुरु रविदास जी महाराज के बराबर कोई भी गुरु नहीं था :--- गुरु रविदास जी महाराज के बराबर संसार में कोई गुरु नहीं था और सारा संसार रविदास जी महाराज को सर्वश्रेष्ठ गुरु स्वीकार कर बैठा था। तत्कालीन शासक गुरु रविदास जी महाराज के दर्शन करने के लिए तरसते थे जिस का उदाहरण हमें बादशाह बाबर मिलता है। जो बाबर पानीपत का युद्ध जीत कर के खुशियां मना रहा था, उस के मन में यह आया था कि मैं गुरुओं के गुरु, संत शिरोमणि गुरु रविदास जी महाराज के दर्शन करूंगा। इस से स्पष्ट सिद्ध होता है कि गुरु रविदास जी महाराज का मान सम्मान सारे संसार में फैल चुका था और इस प्रसिद्धि के कारण गुरु रविदास जी महाराज को ब्राह्मणों ने अपना शिष्य बात कर श्रेय लेने का यह प्रयास किया गया था।
राम सिंह शुक्ला