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बुधवार, 24 जुलाई 2024

गुरु रविदास जी महाराज ने वेदों, पुराणों को ठुकरा कर मान्यता नहीं दी!


 गुरु रविदास जी महाराज ने वेदों, पुराणों को ठुकरा कर मान्यता नहीं दी!

मनुवादी वेदों, पुराणों, रामायण, गीता और मनुस्मृति आदि किताबों में जिस प्रकार भारत के मूलनिवासी राजपूत कंस रावण, महिसासुर, दानवीर बलि आदि वीर राजाओं वैश्यों, शूद्रों और अछूतों को कानून बना कर अछूत, राक्षस बना कर छल कपट और खून खराबे का वर्णन किया गया है, उस से यह साफ साफ ज्ञात होता है कि यह किताबें ना हो कर के मनुवादियों ने भारत के मूलनिवासियों को गुलामी की जंजीरें और बेड़ियाँ बना कर अपमानित करने के लिए काले दस्तावेज तैयार किए हुए हैं, इसलिए इन का अध्ययन करने के बाद गुरु रविदास जी महाराज ने इन को पूरी तरह रद्द करते हुए फरमाया है कि ---

वेदों, पुराणों, रामायण और गीता की विचारधारा से ना तो ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है और ना ही ज्ञान प्राप्त होता है। ये केवल भारत के मूलनिवासियों को गुलाम बनाए रखने के लिए बनाए गए संविधान मात्र हैं, जिन का उल्लंघन करने पर भारत के मूलनिवासियों को कठोर से कठोर सजा दी जाती थी और जो आज भी जारी है क्योंकि आज भी जब कोई इन के ऊपर उंगली उठाता है तो उस की आलोचना करने वालों को कानून का भय दिखा कर के पुलिस स्टेशनों और कोर्ट कचैहरियों में प्रताड़ित किया जाता है इसलिए गुरु रविदास जी महाराज ने जो सत्य को सामने लाने का प्रयास किया है, उस के बारे में पंजाबी लेखक प्रोफेसर लाल सिंह जी अपनी पुस्तक *सतगुरु रविदास जी की ऐतिहासिक जीवनी * के पृष्ठ संख्या 76 के ऊपर लिखते हैं कि----

गुरु रविदास जी महाराज ने वेदों, पुराणों के ऊपर ऐसी कठोर चोट मारी है कि समूची भगती लहर उन की विचारधारा मानने के लिए मजबूर हो गई थी, चाहे गुरु नामदेव जी भी वेदों, पुराणों को रद्द करते हैं परंतु यह कह कर कि अब मैं वेदों, पुराणों की कविता का गुणगान नहीं करूंगा परंतु उन्होंने ना गाने का कारण स्पष्ट नहीं किया हैं परंतु गुरु रविदास जी वेदों, पुराणों को इसलिए रद्द करते हैं कि इन की विचारधारा के अनुसार ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती है क्योंकि इन के ऊपर अमल करने के साथ मन शंकाओं दुविधाओं के साथ भर जाता है, इसी कारण प्रभ प्राप्ति वैसे ही संभव नहीं है जिस के परिणाम स्वरुप गुरु रविदास जी की विचारधारा समूची भगती लहर की अगवाई का शक्तिशाली साधन बन गई है। गुरु जी की इस शक्तिशाली विचारधारा ने हिंदुओं के सबसे पवित्र तीर्थ स्थान चाहे वह हरिद्वार हो या वाराणसी हो, सब से महान, प्रसिद्ध, सब से अधिक पूजी जाने वाली भगवान माता गंगा को अपने बश में कर लिया है, जब कि ब्राह्मण तो अछूत की छाया से भी भ्रष्ट हो जाते हैं फिर गंगा भगवान सतगुरु रविदास अछूत के पुराने टूटे गांठे जाने वाले छित्रों को धोने वाली पानी की कुंडी (कठौती) के बीच किस प्रकार प्रवेश कर गई? 

कोई भी भगवान किसी भी भगत की इच्छा के अनुसार अपनी विचारधारा के नियमों को नहीं तोड़ सकता फिर हिंदुओं और ब्राह्मणों की सब से पवित्र गंगा क्यों भ्रष्ट हो गई? क्यों ब्राह्मणों की भगवान गंगा खुद गुरु रविदास जी की कठौती के बीच प्रवेश करके भ्रष्ट हो गई? सब से महत्वपूर्ण परंतु हैरान करने वाली बात यह है कि गंगा मैया तो ब्राह्मणी है फिर गंगा क्यों गुरु रविदास जी की इच्छा के अनुसार कुंडी में प्रवेश कर के भ्रष्ट हो गई। 

उपरोक्त सवालों का एक ही जवाब है कि गंगा प्रभु का सृजन है, ब्राह्मण का सृजन नहीं है क्योंकि ब्राह्मण खुद प्रभ का सृजन है। वह किसी भी तरह गंगा का सृजन करने में समर्थ नहीं है। ब्रह्मांड का कण कण परमात्मा का सृजन है। ब्रह्मांड की हर शक्ति परमात्मा का सृजन है। ऋद्धियां, सिद्धियां और निधियां सब परमात्मा का सृजन है। जब जीव परमात्मा को प्राप्त कर स्वयं परमात्मा बन जाता है तो यह ऋद्धियां, सिद्धियां और निधियां अर्थात सब शक्तियां परमात्मा द्वारा बनाए गए जीव के भी अधीन हो जाती हैं। जब गुरु रविदास जी ने परमात्मा को प्राप्त कर लिया था तब उपरोक्त और ब्रह्मांड के बीच विचरण कर रही सर्वशक्तियों के वे ही मालिक बन गए और यह शक्तियां उन की सेवा के बीच तत्पर हो गई। गंगा सहित उन की पैदा की गई हर शक्ति उन की सेवा के बीच हाजर हो गई। गुरु रविदास जी इस महान सत्य को परिपक्व करते हुए फरमाते हैं----

दारीदु देखि सभ को हसै ऐसी दसा हमारी।। 

असट दसा सिधि कर तलै सभ किरपा तुमारी।।  आदि ग्रंथ पन्ना (858) 

इस महान सत्य की प्रौढ़ता गुरु रविदास जी करते हुए फरमाते हैं----

शलोक म: ३।। 

ब्रह्म बिदै तिस का ब्रहमत रहै

एक सबदि लिव जाइ।। 

नव निधि अठारह सिधि पिछै लगाईऐ फिरहि

जो हरि हिरदै सदा वसाइ।। 

परंतु गुरु रविदास जी प्रभ की शक्ति प्राप्त कर के प्रभ का सृजन कर के किसी भी अंश के साथ संपर्क कर के उस की सृष्टि और मनुष्यता के भले के लिए दिव्य शक्ति का प्रयोग कर सकते हैं, यही कारण है कि गुरु रविदास जी गंगा नदी के बीच गंगा के स्वरूप का सृजन करने में सफल रहे हैं। इस ढंग के साथ सृजित गंगा गुरु जी की सेवक बन कर के हर क्षेत्र में हर स्थान पर और हर तरह गुरु रविदास जी की सेवा में तत्पर रहती है इसी कारण गंगा उन की सेवक है। गंगा गुरु रविदास जी का ही सृजन है। प्रभ बने (संत अनंतहि अंतरु नाही।। नानक ब्रह्म गियानी आप परमेशर।।) 

गुरु रविदास जी सृष्टि सृजन की सामर्थ्य रखते हैं और वे हर चमत्कार कर सकते हैं जिस की मनुष्यता के भले के लिए जरूरत है। गंगा नदी के बीच से गंगा का सृजन कर के उसे एक चमार की दमड़ी स्वीकार करवाई जाए और उस के बदले अजीब अद्भुत और आश्चर्य चकित कर देने वाला सोने का कंगन चमार गुरु रविदास जी को भेंट किया। गुरु रविदास जी ने यह करामात इस कर के की ताकि ब्राह्मण के अहंकार को चकनाचूर कर के उन को इंसानियत का सबक सिखाया जा सके और समूचे भारत के बीच बराबरी और कुदरत के नियमों के अनुसार न्याय को स्थापित किया जा सके। प्यार से भरपूर विश्व भाईचारा सृजित किया जा सके। अनेकों लोग यह सवाल करते हैं कि क्या गंगा का सृजन किया जा सकता है? श्री गुरु ग्रंथ साहिब के बीच गुरु नामदेव जी को हम सबूत के तौर पर प्रस्तुत करके दृढ़ता के साथ कह सकते हैं कि गंगा का सृजन किया जा सकता है। 

1 विसमिली गऊ देहू जिवाई।।

नातूर गरदनि मारउ ठाइ।।२।।

2 करहि त मुई गउ देउ जीआइ।।

सभु कोई देखै पतिआइ।।१८।।

नामा प्रणवै सेल मसेल बछरा मेली।। १९।।     आदि ग्रंथ पन्ना (1166) 

अर्थः:---- सुल्तान ने गुरु नामदेव जी को कहा कि मरी हुई गाय को जिंदा करो नहीं तो मैं अभी ही तेरी गर्दन काट दूंगा! गुरु नामदेव जी प्रभु को कहते हैं कि हे प्रभ! मरी हुई गाय को जिंदा कर दो ताकि मरी हुई गाय को जिंदा देख कर सब को तसल्ली हो जाए गी कि प्रभ ने गाय जिंदा कर दी और गुरु नामदेव जी ने गाय की पिछली टांगों को रस्सी के साथ बांध कर के बछड़े को दूध चुआया और दूध भी लिया। दयालु प्रभ अपने भक्तों को अपनी शक्ति प्रदान कर के दिव्य चमत्कार करवाता है। गुरु नामदेव जी इस सिद्धांत को परिपक्व करते हैं और करामातें कर के भटके लोगों को प्रमाणिकता के साथ सत्य सिद्ध कर के दिखाते हैं। 

उपरोक्त दृष्टांत से स्पष्ट हो जाता है कि ईश्वर अपने सच्चे सुच्चे भक्तों और अनुयायियों की बात सुनते हैं और उन की इच्छा के मुताबिक ईश्वर कार्य करते हैं जिन को स्थानीय भाषा में चमत्कार या करामात कहा जाता है इसलिए यह चमत्कार उन्हें सतपुरुषों के सत्कर्मों के कारण ईश्वर को करने पड़ते हैं इसलिए गुरु रविदास जी महाराज ने जो चमत्कार किए हैं वे सभी उन की कठोर भगती की शक्ति के कारण ही हो सके हैं और उन को कोई भी माई का लाल चैलेंज नहीं कर सकता है परंतु मनुवादियों के राम और कृष्ण अपने ही परिवार और वंश के लोगों का खून बहाते हैं मगर भारत के मूलनिवासी संत, पीर, गुरु ईश्वर से ही सारे कार्य करवा लेते हैं। 

राम सिंह शुक्ला।

शनिवार, 20 जुलाई 2024

गुरु गुरु रविदास जी महाराज की शिक्षा का वास्तविक सत्य


 गुरु गुरु रविदास जी महाराज की शिक्षा का वास्तविक सत्य।।

               ।।भाग 4।।

गुरु रविदास जी महाराज की जीवनी लिखते समय ब्राह्मण लेखकों ने गुरु रविदास जी महाराज को पिछले जन्म का ब्राह्मण सिद्ध कर के पिछले जन्मों का दण्ड भुगतने के लिए चमार जाति में चर्मकार के रूप में अत्यंत गरीब और खानाबदोश परिवार में जन्मे व्यक्ति के रूप में जिक्र किया हुआ है। इन लेखकों के अनुसार गुरु रविदास जी के माता-पिता को भी जूते बनाते हुए दिखाया गया है।छोटी आयु में ही उन की शादी कर दी गई थी परंतु गुरु रविदास जी महाराज जूते बना कर के मुफ्त में साधु, संतों, फकीरों को बांटा करते थे जिस से गुरु रविदास जी के पिता संतोष दास जी बहुत दुखी हो गए थे और दुखी हो कर के उन्होंने उन को परिवार से अलग कर दिया था। माता पिता ने उन्हें एक छोटे से जमीन के टुकड़े के ऊपर अपनी झोपड़ी बनाने के लिए दिया था। गुरु रविदास जी ने उस जमीन के टुकड़े के ऊपर एक झोपड़ी बना कर  के जूते बनाने का कार्य कर के अपने परिवार का पालन पोषण करते थे। 

उपरोक्त कथाओं का अगर पोस्टमार्टम किया जाए तो ब्राह्मणों की मूर्खता की पोल खुलती हुई नजर आती है क्योंकि कभी भी किसी भी मृत शरीर की आत्मा दोबारा जन्म नहीं लेती है और फिर उस आत्मा को किसी अछूत के घर में जन्म लेने का किसी का भी आदेश नहीं होता है। गुरु रविदास जी महाराज को ऐसी कल्पित कथा के माध्यम से अत्यंत निर्धन और विवेकहीन लिखा गया है, जो किसी के गले में नहीं उतरता है। गुरु रविदास जी महाराज अपनी वाणी में फरमाते हैं कि ----

चमरठा गांठी ना जानी जिस से यह सपष्ट ज्ञात होता है कि गुरु रविदास जी महाराज चमड़े के जूते गाँठना या मरम्मत करना नहीं जानते थे, फिर गुरु रविदास जी महाराज का परिवार चमड़े और कपड़े के उद्योगपति था। जिस से उन की आमदनी बहुत ही अधिक हुआ करती थी। ऐसे अमीर और संपन्न परिवार के अमीर व्यक्ति को झुग्गी-झोपड़ी में निवास करते हुए दिखाना कथा लिखने वालों की बुद्धि का दिवाला निकला हुआ नजर आता है। गुरु रविदास जी महाराज के बाबन राजा और बादशाह शिष्य थे जो अपने परिवार सहित सतगुरु रविदास जी महाराज का सत्संग सुनने के लिए जाया करते थे। जब वे सत्संग सुनने जाते थे तो गुरु जी को भेंट करने के लिए सोने, चाँदी, हीरे,और रुपये चढ़ाते थे मगर ब्राह्मणों ने गुरु रविदास जी महाराज को अत्यंत कंगाल और गरीब व्यक्ति के रूप में अपने साहित्य में वर्णित किया हुआ है। 

गुरु रविदास जी का धर्म आदि धर्म:---गुरु रविदास जी महाराज दिन रात एक कर के सामाजिक परिवर्तन के लिए जगह-जगह भ्रमण किया करते थे जिस के दौरान वे गाँव गांव जा कर के अपनी ओजस्वी और क्रांतिकारी वाणी के माध्यम से सामाजिक चेतना पैदा किया करते थे। जिन अछूत लोगों को सत्संग सुनने का कोई अधिकार नहीं था उन को वे सामूहिक रूप से सत्संग सुना कर के, मूलनिवासी राजपूत, वैश्य, शूद्र और अछूत चारों वर्णों में सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक जागृति पैदा किया करते थे। 

गुरु रविदास जी महाराज ने अपने धर्म के बारे में फरमाया है---

आद से प्रकट भयो जा को ना कोउ अंत।।

आदधर्म रविदास का जाने कोउ बिरला संत।।

इन शब्दों से स्पष्ट ज्ञात होता है कि गुरु रविदास जी महाराज आदधर्म को मानने वाले और आदधर्म का प्रचार करते थे मगर ब्राह्मणों ने गुरु रविदास जी महाराज को अपना हिंदू साबित करने के लिए कल्पित कथाएं घड़ी हुई हैं। जिन में गुरु रविदास जी महाराज ब्राह्मणों की तरह धोती, तिलक लगा कर के शंख बजाते हैं। छाती चीर कर के सोने, चांदी, तांबे और धागे के जनेउ निकालते हुए दर्शाए गए हैं। 

गुरु रविदास जी की श्रेष्ठता का श्रेय लेने के लिए ही शारदानंद ब्राह्मण टीचर बताया गया:--- 

जब गुरु रविदास जी महाराज ने ब्राह्मणों के सारे ढोंगों, पाखंडों, आडंबरों का बुरी तरह से पोस्टमार्टम करके सत्य को सामने लाने का कार्य किया था, चारों वर्णों में धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक चेतना पैदा की थी, छुआछूत को खत्म करने के लिए राष्ट्रीय आंदोलन शुरू किया था, चारों वर्णों को एक पंक्ति में बैठा कर के भोजन करवाया था, राजाओं, महाराजाओं और बादशाहों से अछूतों को सारे अधिकार दिलाए थे जिस के कारण गुरु रविदास जी महाराज को संत शिरोमणि की उपाधि से विभूषित किया गया था। यही नहीं उन को गुरुओं के गुरु भी कहा गया है और विदेशी शासकों ने भी उन को अपना गुरु स्वीकार कर के अपना जीवन सफल बनाया था। गुरु जी की इन्हीं विशेषताओं का लाभ उठाने के लिए ब्राह्मणों ने गुरु रविदास जी महाराज को अपना कर के इतिहास में लिखा हुआ है। 

जब गुरु रविदास जी महाराज ने ब्राह्मण के सारे काले कारनामों को उजागर कर के ब्राह्मणवाद को खत्म करने का ऐतिहासिक कार्य किया था, तो फिर ऐसा कौन ब्राह्मण था, जो गुरु रविदास जी महाराज को पढ़ने, पढ़ाने का कार्य कर सकता था? गुरु रविदास जी महाराज ब्राह्मणों की ऐसी तैसी फेर रहे थे फिर भला कौन ब्राह्मण उन को गले लगा कर अपने पाँव पर कुल्हाड़ा मार लेता। 

गुरु रविदास जी महाराज के बराबर कोई भी गुरु नहीं था :--- गुरु रविदास जी महाराज के बराबर संसार में कोई गुरु नहीं था और सारा संसार रविदास जी महाराज को सर्वश्रेष्ठ गुरु स्वीकार कर बैठा था। तत्कालीन शासक गुरु रविदास जी महाराज के दर्शन करने के लिए तरसते थे जिस का उदाहरण हमें बादशाह बाबर मिलता है। जो बाबर पानीपत का युद्ध जीत कर के खुशियां मना रहा था, उस के मन में यह आया था कि मैं गुरुओं के गुरु, संत शिरोमणि गुरु रविदास जी महाराज के दर्शन करूंगा। इस से स्पष्ट सिद्ध होता है कि गुरु रविदास जी महाराज का मान सम्मान सारे संसार में फैल चुका था और इस प्रसिद्धि के कारण गुरु रविदास जी महाराज को ब्राह्मणों ने अपना शिष्य बात कर श्रेय लेने का यह प्रयास किया गया था। 

राम सिंह शुक्ला