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मंगलवार, 31 दिसंबर 2019
शनिवार, 28 दिसंबर 2019
गुरुवार, 26 दिसंबर 2019
मंगलवार, 24 दिसंबर 2019
बुधवार, 11 दिसंबर 2019
सोमवार, 9 दिसंबर 2019
मंगलवार, 3 दिसंबर 2019
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सोमवार, 25 नवंबर 2019
रविवार, 24 नवंबर 2019
शनिवार, 23 नवंबर 2019
गुरुवार, 21 नवंबर 2019
मंगलवार, 19 नवंबर 2019
सोमवार, 18 नवंबर 2019
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तुम दया करो गुरु देव सतगुरु रविदास कहाने वाले 2.10.19 satsang Shukrtal
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शनिवार, 27 जुलाई 2019
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शनिवार, 6 जुलाई 2019
मां दुर्गा की सच्चाई और जानकारी आप भी सुनकर हैरान हो जाएंगे
दुर्गा आठ हाथ की नही थी,दो हाथ की थी दुर्गा का जन्म कलकत्ता के सोना काछी वैश्यालय मै हुआ था??
महिषासुर कौन है ?एक मूलनिवासी राजा
दुर्गा मूर्ति बनाने के लिए बंगाल में वैश्या के घर से मिट्टी लाना जरूरी है ?? वैश्या की घर की मिट्टी के बिना दुर्गा की प्रतिमा पूजा योग्य नहीं मानी जाती है |
अब यह प्रश्न उठता है ?कि दुर्गा की मूर्ति के लिए केवल वैश्या के ही घर की मिट्टी की जरूरत क्यों ??? इसके पीछे क्या रहस्य है ???
1- महिषासुर बंगाल के सावाताल अथवा संथाल में आदिवासियों का अत्यंत बलशाली राजा था | ब्राह्मण विदेशी इसके राज्य पर कब्जा करना चाहते थे। जिसके लिए कई बार युद्ध किया | लेकिन ब्राह्मणों को हमेशा हार का ही मुँह देखना पड़ा |
2-इतिहास गवाह है कि जिसे बल से नहीं जीता जा सकता है, उसे सुरा व सुंदरी के माध्यम से जीता जा सकता है | वैसे ये ब्राह्मणों की ही शैतानी नीति है |
3- कई बार हारने के बाद ब्राह्मण महिषासुर के शक्ति को समझ गये थे |इसलिए सुरा सुंदरी वाले शैतानी नीति को अपनाया |
4- ब्राह्मणों ने दुर्गा जो कि एक अत्यंत सुंदर वैश्या थी, को षड़यंत्र के तहत, महिषासुर को अपने मायाजाल में फाँसकर हत्या करने के लिए भेजा |
5- दुर्गा ने 8 रात सुरा पिलाते हुए, कई नाटक करते हुए महिषासुर के साथ बिताई | नौवे रात को मौका मिलते ही इस वैश्या ने महिषासुर की हत्या कर दी |
इसीलिए दुर्गा की नवरात्रि मनाई जाती है |
चूँकि दुर्गा वैश्या थी, इसीलिए वैश्या के घर से मिट्टी लाने का रिवाज आज भी है |
6-मूलनिवासी राजा महिषासुर की हत्या दुर्गा ने किया जिससे ब्राह्मण उस राज्य पर कब्जा करने में कामयाब हुए | इसलिए ब्राह्मणों ने मूलनिवासियों से उनके पूर्वजों की हत्यारिनी दुर्गा का पूजा ही करवा डाला |
7-भारत के मूलनिवासी लोग आँख, अक्ल और दिमाग के इतने अंधे हैं कि उसके बारे में जानने की जरूरत नहीं समझी | बिना जाने ही हत्यारों का पूजा करना शुरू कर दिया |
किसी ने आज तक किसी भी ऐसे मनुष्य को देखा है जिसके 8 हाथ, 3 गर्दन,आधा शरीर मनुष्य का और आधा जानवर का, गर्दन हाथी का इत्यादि हो |
आदिमानव काल में भी जाऐंगे, तब भी ऐसा किसी मनुष्य का जिक्र नहीं मिलता है | फिर ऐसे प्राणियों की पूजा कैसे शुरू हो गया |
इसका मतलब साफ है कि ब्राह्मण, मूलनिवासियों के दिमाग में इतने हावी हैं। कि उनके दिमाग में बुद्धि के जगह गोबर भर दिया है | जिससे कि खुद से सोचने और समझने की शक्ति चली गयी है, अंधभक्त हो गये हैं।
8- कई लोग ऐसे अंधभक्त है कि जानने के बावजूद भी इसे अपने बाप दादाओं की परम्परा मानकर ढोते हैं | अरे तुम्हारे बाप दादाओं से पढ़ने लिखने का अधिकार छिन लिया गया था इसलिए उन्हें जो बताया गया, मानते गये |
तुम्हें तो पढ़ने लिखने का अधिकार है, पढ़ लिखकर भी गोबर को लड्डू मानकर,खाओगे तो पढ़ना लिखना सब बेकार है ।
सबूत के तोर पर स्मृति ईरानी का विडीयो सेयर सुन ले??
Jai bhim jai bharat
पाखंड मिटाओ
शासन करो
Abheya das ji
महिषासुर कौन है ?एक मूलनिवासी राजा
दुर्गा मूर्ति बनाने के लिए बंगाल में वैश्या के घर से मिट्टी लाना जरूरी है ?? वैश्या की घर की मिट्टी के बिना दुर्गा की प्रतिमा पूजा योग्य नहीं मानी जाती है |
अब यह प्रश्न उठता है ?कि दुर्गा की मूर्ति के लिए केवल वैश्या के ही घर की मिट्टी की जरूरत क्यों ??? इसके पीछे क्या रहस्य है ???
1- महिषासुर बंगाल के सावाताल अथवा संथाल में आदिवासियों का अत्यंत बलशाली राजा था | ब्राह्मण विदेशी इसके राज्य पर कब्जा करना चाहते थे। जिसके लिए कई बार युद्ध किया | लेकिन ब्राह्मणों को हमेशा हार का ही मुँह देखना पड़ा |
2-इतिहास गवाह है कि जिसे बल से नहीं जीता जा सकता है, उसे सुरा व सुंदरी के माध्यम से जीता जा सकता है | वैसे ये ब्राह्मणों की ही शैतानी नीति है |
3- कई बार हारने के बाद ब्राह्मण महिषासुर के शक्ति को समझ गये थे |इसलिए सुरा सुंदरी वाले शैतानी नीति को अपनाया |
4- ब्राह्मणों ने दुर्गा जो कि एक अत्यंत सुंदर वैश्या थी, को षड़यंत्र के तहत, महिषासुर को अपने मायाजाल में फाँसकर हत्या करने के लिए भेजा |
5- दुर्गा ने 8 रात सुरा पिलाते हुए, कई नाटक करते हुए महिषासुर के साथ बिताई | नौवे रात को मौका मिलते ही इस वैश्या ने महिषासुर की हत्या कर दी |
इसीलिए दुर्गा की नवरात्रि मनाई जाती है |
चूँकि दुर्गा वैश्या थी, इसीलिए वैश्या के घर से मिट्टी लाने का रिवाज आज भी है |
6-मूलनिवासी राजा महिषासुर की हत्या दुर्गा ने किया जिससे ब्राह्मण उस राज्य पर कब्जा करने में कामयाब हुए | इसलिए ब्राह्मणों ने मूलनिवासियों से उनके पूर्वजों की हत्यारिनी दुर्गा का पूजा ही करवा डाला |
7-भारत के मूलनिवासी लोग आँख, अक्ल और दिमाग के इतने अंधे हैं कि उसके बारे में जानने की जरूरत नहीं समझी | बिना जाने ही हत्यारों का पूजा करना शुरू कर दिया |
किसी ने आज तक किसी भी ऐसे मनुष्य को देखा है जिसके 8 हाथ, 3 गर्दन,आधा शरीर मनुष्य का और आधा जानवर का, गर्दन हाथी का इत्यादि हो |
आदिमानव काल में भी जाऐंगे, तब भी ऐसा किसी मनुष्य का जिक्र नहीं मिलता है | फिर ऐसे प्राणियों की पूजा कैसे शुरू हो गया |
इसका मतलब साफ है कि ब्राह्मण, मूलनिवासियों के दिमाग में इतने हावी हैं। कि उनके दिमाग में बुद्धि के जगह गोबर भर दिया है | जिससे कि खुद से सोचने और समझने की शक्ति चली गयी है, अंधभक्त हो गये हैं।
8- कई लोग ऐसे अंधभक्त है कि जानने के बावजूद भी इसे अपने बाप दादाओं की परम्परा मानकर ढोते हैं | अरे तुम्हारे बाप दादाओं से पढ़ने लिखने का अधिकार छिन लिया गया था इसलिए उन्हें जो बताया गया, मानते गये |
तुम्हें तो पढ़ने लिखने का अधिकार है, पढ़ लिखकर भी गोबर को लड्डू मानकर,खाओगे तो पढ़ना लिखना सब बेकार है ।
सबूत के तोर पर स्मृति ईरानी का विडीयो सेयर सुन ले??
Jai bhim jai bharat
पाखंड मिटाओ
शासन करो
Abheya das ji
शुक्रवार, 5 जुलाई 2019
गुरुवार, 4 जुलाई 2019
मंगलवार, 2 जुलाई 2019
शनिवार, 29 जून 2019
बुधवार, 26 जून 2019
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शुक्रवार, 3 मई 2019
रविवार, 28 अप्रैल 2019
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शनिवार, 30 मार्च 2019
शुक्रवार, 29 मार्च 2019
शनिवार, 23 मार्च 2019
शुक्रवार, 22 मार्च 2019
क्रमांक | जीवन परिचय बिंदु | रविदास जी जीवन परिचय |
1. | पूरा नाम | गुरु रविदास जी |
2. | अन्य नाम | रैदास, रोहिदास, रूहिदास |
3. | जन्म | 1377 AD |
4. | जन्म स्थान | वाराणसी, उत्तरप्रदेश |
5. | पिता का नाम | श्री संतोख दास जी |
6. | माता का नाम | श्रीमती कलसा देवी की |
7. | दादा का नाम | श्री कालू राम जी |
8. | दादी का नाम | श्रीमती लखपति जी |
9. | पत्नी | श्रीमती लोना जी |
10. | बेटा | विजय दास जी |
11. | मृत्यु | 1540 AD (वाराणसी) |
गुरु रविदास जी का जन्म वाराणसी के पास सीर गोबर्धनगाँव में हुआ था. इनकी माता कलसा देवी एवं पिता संतोख दास जी थे. रविदास जी के जन्म पर सबकी अपनी अपनी राय है, कुछ लोगों का मानना है इनका जन्म 1376-77 के आस पास हुआ था, कुछ कहते है 1399 CE. कुछ दस्तावेजों के अनुसार रविदास जी ने 1450 से 1520 के बीच अपना जीवन धरती में बिताया था. इनके जन्म स्थान को अब ‘श्री गुरु रविदास जन्म स्थान’ कहा जाता है.
रविदास जी के पिता राजा नगर राज्य में सरपंच हुआ करते थे. इनका जूते बनाने और सुधारने का काम हुआ करता था. रविदास जी के पिता मरे हुए जानवरों की खाल निकालकर उससे चमड़ा बनाते और फिर उसकी चप्पल बनाते थे.
रविदास जी बचपन से ही बहुत बहादुर और भगवान् को बहुत मानने वाले थे. रविदास जी को बचपन से ही उच्च कुल वालों की हीन भावना का शिकार होना पड़ा था, वे लोग हमेशा इस बालक के मन में उसके उच्च कुल के न होने की बात डालते रहते थे. रविदास जी ने समाज को बदलने के लिए अपनी कलम का सहारा लिया, वे अपनी रचनाओं के द्वारा जीवन के बारे में लोगों को समझाते. लोगों को शिक्षा देते कि इन्सान को बिना किसी भेदभाव के अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम करना चाहिए.
रविदास जी की शिक्षा (Sant Ravidas education) –
बचपन में रविदास जी अपने गुरु पंडित शारदा नन्द की पाठशाला में शिक्षा लेने जाया करते थे. कुछ समय बाद ऊँची जाति वालों ने उनका पाठशाला में आना बंद करवा दिया था. पंडित शारदा नन्द जी ने रविदास जी की प्रतिभा को जान लिया था, वे समाज की उंच नीच बातों को नहीं मानते थे, उनका मानना था कि रविदास भगवान द्वारा भेजा हुआ एक बच्चा है. जिसके बाद पंडित शारदा नन्द जी ने रविदास जी को अपनी पर्सनल पाठशाला में शिक्षा देना शुरू कर दिया. वे एक बहुत प्रतिभाशाली और होनहार छात्र थे, उनके गुरु जितना उन्हें पढ़ाते थे, उससे ज्यादा वे अपनी समझ से शिक्षा गृहण कर लेते थे. पंडित शारदा नन्द जी रविदास जी से बहुत प्रभावित रहते थे, उनके आचरण और प्रतिभा को देख वे सोचा करते थे, कि रविदास एक अच्छा आध्यात्मिक गुरु और महान समाज सुधारक बनेगा.
रविदास जी के साथ पाठशाला में पंडित शारदा नन्द जी का बेटा भी पढ़ता था, वे दोनों अच्छे मित्र थे. एक बार वे दोनों छुपन छुपाई का खेल रहे थे, 1-2 बार खेलने के बाद रात हो गई, जिससे उन लोगों ने अगले दिन खेलने की बात कही. दुसरे दिन सुबह रविदास जी खेलने पहुँचते है, लेकिन वो मित्र नहीं आता है. तब वो उसके घर जाते है, वहां जाकर पता चलता है कि रात को उसके मित्र की मृत्यु हो गई है. ये सुन रविदास सुन्न पड़ जाते है, तब उनके गुरु शारदा नन्द जी उन्हें मृत मित्र के पास ले जाते है. रविदास जी को बचपन से ही अलौकिक शक्तियां मिली हुई थी, वे अपने मित्र से कहते है कि ये सोने का समय नहीं है, उठो और मेरे साथ खेलो. ये सुनते ही उनका मृत दोस्त खड़ा हो जाता है. ये देख वहां मौजूद हर कोई अचंभित हो जाते है.
संत रविदास का आगे का जीवन (Sant Ravidas life history) –
रविदास जी जैसे जैसे बड़े होते जाते है, भगवान राम के रूप के प्रति उनकी भक्ति बढ़ती जाती है. वे हमेशा राम, रघुनाथ, राजाराम चन्द्र, कृष्णा, हरी, गोविन्द आदि शब्द उपयोग करते थे, जिससे उनकी धार्मिक होने का प्रमाण मिलता था.
रविदास जी मीरा बाई के धार्मिक गुरु हुआ करते थे. मीरा बाई राजस्थान के राजा की बेटी और चित्तोर की रानी थी. वे रविदास जी की शिक्षा से बहुत अधिक प्रभावित थी और वे उनकी एक बड़ी अनुयायी बन गई थी. मीरा बाई ने अपने गुरु के सम्मान में कुछ पक्तियां भी लिखी थी, जैसे – ‘गुरु मिलया रविदास जी..’ मीरा बाई अपने माँ बाप की एकलौती संतान थी, बचपन में इनकी माता के देहांत के बाद इनके दादा ‘दुदा जी’ ने इनको संभाला था. दुदा जी रविदास जी के बड़े अनुयाई थे, मीरा बाई अपने दादा जी के साथ हमेशा रविदास जी से मिलती रहती थी. जहाँ वे उनकी शिक्षा से बहुत प्रभावित हुई. शादी के बाद मीरा बाई ने अपनी परिवार की रजामंदी से रविदास जी को अपना गुरु बना लिया था.मीरा बाई जीवन परिचय दोहे रचनाएँ यहाँ पढ़ें.

रविदास जी लोगों को सन्देश देते थे कि ‘भगवान् ने इन्सान को बनाया है, न की इन्सान ने भगवान् को’ इसका मतलब है, हर इन्सान भगवान द्वारा बनाया गया है और सबको धरती में समान अधिकार है. संत गुरु रविदास जी सार्वभौमिक भाईचारे और सहिष्णुता के बारे में लोगों को विभिन्न शिक्षायें दिया करते थे.
रविदास जी द्वारा लिखे गए पद, धार्मिक गाने एवं अन्य रचनाओं को सिख शास्त्र ‘गुरु गोविन्द ग्रन्थ साहिब’ में शामिल किया गया है. पांचवे सिख गुरु ‘अर्जन देव’ ने इसे ग्रन्थ में शामिल किया था. गुरु रविदास जी की शिक्षाओं के अनुयायियों को ‘रविदास्सिया’ और उनके उपदेशों के संग्रह को ‘रविदास्सिया पंथ’ कहते है.
रविदास दास जी का स्वाभाव –
रविदास जी को उनकी जाति वाले भी आगे बढ़ने से रोकते थे. शुद्र लोग रविदास जी को ब्रह्मण की तरह तिलक लगाने, कपड़े एवं जनेऊ पहनने से रोकते थे. गुरु रविदास जी इन सभी बात का खंडन करते थे, और कहते थे सभी इन्सान को धरती पर समान अधिकार है, वो अपनी मर्जी जो चाहे कर सकता है. उन्होंने हर वो चीज जो नीची जाति के लिए माना थी, करना शुरू कर दिया, जैसे जनेऊ, धोती पहनना, तिलक लगाना आदि. ब्राह्मण लोग उनकी इस गतिविधियों के सख्त खिलाफ थे. उन लोगों ने वहां के राजा से रविदास जी के खिलाफ शिकायत कर दी थी. रविदास जी सभी ब्राह्मण लोगों को बड़े प्यार और आराम से इसका जबाब देते थे. उन्होंने राजा के सामने कहा कि शुद्र के पास भी लाल खून है, दिल है, उन्हें बाकियों की तरह समान अधिकार है.
रविदास जी ने भरी सभा में सबके सामने अपनी छाती को चीर दिया और चार युग सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग की तरह, चार युग के लिए क्रमश: सोना, चांदी, तांबा और कपास से जनेऊ बना दिया. राजा सहित वहां मौजूद सभी लोग बहुत शर्मसार और चकित हुए और उनके पैर छूकर गुरु जी को सम्मानित किया. राजा को अपनी बचकानी हरकत पर बहुत पछतावा हुआ, उन्होंने गुरु से माफ़ी मांगी. संत रविदास जी ने सभी को माफ़ कर दिया और कहा जनेऊ पहनने से किसी को भगवान् नहीं मिल जाते है. उन्होंने कहा कि केवल आप सभी लोगों को वास्तविकता और सच्चाई को दिखाने के लिए इस गतिविधि में शामिल किया गया है. उन्होंने जनेऊ उतार कर राजा को दे दिया, और इसके बाद उन्होंने कभी भी न जनेऊ पहना, न तिलक लगाया.
रविदास जी के पिता की मृत्यु (Guru Ravidas Father Death) –
रविदास जी के पिता की मौत के बाद उन्होंने अपने पड़ोसियों से मदद मांगी, ताकि वे गंगा के तट पर अपने पिता का अंतिम संस्कार कर सकें. ब्राह्मण इसके खिलाफ थे, क्यूंकि वे गंगा जी में स्नान किया करते थे, और शुद्र का अंतिम संस्कार उसमें होने से वो प्रदूषित हो जाती. उस समय गुरु जी बहुत दुखी और असहाय महसूस कर रहे थे, लेकिन इस घड़ी में भी उन्होंने अपना संयम नहीं खोया और भगवान से अपने पिता की आत्मा की शांति के लिए प्राथना करने लगे. फिर वहां एक बहुत बड़ा तूफान आया, नदी का पानी विपरीत दिशा में बहने लगता है. फिर अचानक पानी की एक बड़ी लहर मृत शरीर के पास आई और अपने में सारे अवशेषों को अवशोषित कर लिया. कहते है तभी से गंगा नदी विपरीत दिशा में बह रही है.
रविदास और मुगल शासक बाबर –
भारत के इतिहास के अनुसार बाबर मुग़ल साम्राज्य का पहला शासक था, जिसने 1526 में पानीपत की लड़ाई जीत कर, दिल्ली में कब्ज़ा किया था. बाबर गुरु रविदास जी के आध्यात्मिक शक्तियों के बारे में बहुत अच्छे से जानता था, वो उनसे मिलना चाहता था. फिर बाबर, हुमायूँ के साथ उनसे मिलने जाता है, वो उनके पैर छुकर उन्हें सम्मान देता है. गुरु जी उसे आशीर्वाद देने की जगह उसे दंडित करते है, क्यूंकि उसने बहुत से मासूम लोगों मारा था. गुरु जी बाबर को गहराई से शिक्षा देते है, जिससे प्रभावित होकर बाबर रविदास जी का अनुयाई बन जाता है और अच्छे सामाजिक कार्य करने लगता है.बाबर जीवन परिचय इतिहास यहाँ पढ़ें.
रविदास जी की मृत्यु (Sant Ravidas Death) –
गुरु रविदास जी की सच्चाई, मानवता, भगवान् के प्रति प्रेम, सद्भावना देख, दिन पे दिन उनके अनुयाई बढ़ते जा रहे थे. दूसरी तरफ कुछ ब्राह्मण उनको मारने की योजना बना रहे थे. रविदास जी के कुछ विरोधियों ने एक सभा का आयोजन किया, उन्होंने गाँव से दूर सभा आयोजित की और उसमें गुरु जी को आमंत्रित किया. गुरु जी उन लोगों की उस चाल को पहले ही समझ जाते है. गुरु जी वहाँ जाकर सभा का शुभारंभ करते है. गलती से गुरु जी की जगह उन लोगों का साथी भल्ला नाथ मारा जाता है. गुरु जी थोड़ी देर बाद जब अपने कक्ष में शंख बजाते है, तो सब अचंभित हो जाते है. अपने साथी को मरा देख वे बहुत दुखी होते है, और दुखी मन से गुरु जी के पास जाते है.
रविदास जी के अनुयाईयों का मानना है कि रविदास जी 120 या 126 वर्ष बाद अपने आप शरीर को त्याग देते है. लोगों के अनुसार 1540 AD में वाराणसी में उन्होंने अंतिम सांस ली थी.
रविदास जयंती 2019 में कब है? (Guru Ravidas Jayanti 2019 Date) –
रविदास जयंती को माघ महीने की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. रविदास्सिया समुदाय के लिए इस दिन वार्षिक उत्सव होता है. वाराणसी में इनके जन्म स्थान ‘श्री गुरु रविदास जनम अस्थान’ में विशेष कार्यक्रम आयोजित होते है. जहाँ लाखों की संख्या में रविदास जी के भक्त वहां पहुँचते है.
इस साल रविदास जी की जयंती 19 फरवरी 2019, दिन मंगलवार में मनाई जाएगी, जो उनका 642 वा जन्म दिवस होगा. सिख समुदाय द्वारा जगह जगह नगर कीर्तन का आयोजन किया जाता है. स्पेशल आरती की जाती है. मंदिर, गुरुद्वारा में रविदास जी के गाने, दोहे बजाये जाते है. कुछ अनुयाई इस दिन पवित्र नदी में स्नान करते है, और फिर रविदास की फोटो या प्रतिमा की पूजा करते है. रविदास जयंती मनाने का उद्देश्य यही है, कि गुरु रविदास जी की शिक्षा को याद किया जा सके, उनके द्वारा दी गई भाईचारे, शांति की सीख को दुनिया वाले एक बार फिर अपना सकें.
रविदास स्मारक (Sant Ravidas smarak park)
वाराणसी में रविदास जी की याद में बहुत से स्मारक बनाये गए है. रविदास पार्क, रविदास घाट, रविदास नगर, रविदास मेमोरियल गेट आदि..
बुधवार, 20 मार्च 2019
सोमवार, 18 मार्च 2019
शुक्रवार, 15 मार्च 2019
रविवार, 3 मार्च 2019
शनिवार, 2 मार्च 2019
शुक्रवार, 1 मार्च 2019
गुरुवार, 28 फ़रवरी 2019
सोमवार, 18 फ़रवरी 2019
शनिवार, 16 फ़रवरी 2019
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